वैश्वीकरण के लिए संस्कृत अध्ययन आवश्यक, आचरण के द्वारा समाज में मिलती पहचान
दो दिवसीय संस्कृत प्रांत सम्मेलन का दीप प्रज्जवलित कर हुआ विधिवत उद्घाटन संस्कृत भाषा के अध्ययन से व्यवहार में होता है परिवर्तन!
By Ajit KumarEdited By: Published: Sat, 23 Feb 2019 05:34 PM (IST)Updated: Sat, 23 Feb 2019 05:34 PM (IST)
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। वैश्वीकरण के इस दौर में संस्कृत भाषा की अहमियत बहुत ज्यादा बढ़ गई है। कुछ लोग संस्कृत को मृत भाषा कहते हैं। लेकिन उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि यह सैकड़ों भाषाओं की जननी है जो कभी मृत हो ही नहीं सकती। संस्कृत में भारत की आत्मा बसती है। बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड की अध्यक्ष डा. भारती मेहता ने शनिवार को भारती शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालय सदातपुर के सभागार में आयोजित दो दिवसीय संस्कृत प्रांत सम्मेलन को संबोधित करते हुए उपरोक्त बातें कहीं।
बिहार में संस्कृत को एक बार फिर प्रतिष्ठा दिलाने के लिए सबको मिलजुल कर काम करने का संकल्प दिलाने के साथ कहा कि संस्कृत विद्यालयों का वातावरण संस्कृतमय बने इसके लिए संस्कृत भारती के कार्यकर्ताओं का सहयोग जरूरी है। इसके लिए संस्कृत विद्यालय के परीक्षा परिणाम को नियमित किया जा रहा है। कहा कि 17 साल बाद आज इस तरह के सम्मेलन में पहुंच कर अपना अध्ययन काल याद आ गया।
आत्मज्ञान के लिए संस्कृत जरूरी
संस्कृत भारती के राष्ट्रीय महामंत्री शिरीष देव पुजारी ने कहा कि संस्कृत के ज्ञान के बिना आत्मज्ञान असंभव है। आज विश्व में संस्कृत की मांग तेजी से बढ़ी है। क्योंकि संस्कृत न सिर्फ सबसे प्राचीन भाषा है, बल्कि वैज्ञानिक भाषा भी है। इतिहास में भारतीय संस्कृति पर हुए कई कुठाराघातों के कारण हमने संस्कृत को भुला दिया, लेकिन आज एक बार फिर भारत की इस महान भाषा का महत्व समझ में आ रहा है और पूरा विश्व इसके प्रति नतमस्तक है।
संस्कृत बने जन-जन की भाषा
संस्कृत भारती के क्षेत्र मंत्री श्रीप्रकाश पाण्डेय ने कहा कि संस्कृत को जन-जन की भाषा बनाने केउद्देश्य से पूरे देश में संस्कृत भारती द्वारा आम लोगों को संस्कृत बोलने का प्रशिक्षण दिया जाता है। बिहार के कार्यकर्ताओं को एक बार फिर इस कार्य के लिये जागृत करने के उद्देश्य से यह दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया है। उन्होंने संस्कृत को संस्कृत में ही पढ़ाने पर बल दिया। कार्यक्रम संयोजक डॉ.दिप्तांशु भास्कर ने संचालन तो स्वागत भाषण डॉ.रामसेवक झा व धन्यवाद ज्ञापन डॉ.कुमार मृत्युंजय ने किया।
इनकी रही भागीदारी
समाजसेवी प्रफुल्ल कुमार ठाकुर, संस्कृत भारती के प्रांतीय मंत्री डॉ.रमेश कुमार झा,डॉ.रामसेवक झा, डॉ.त्रिलोक झा,डॉ.सुनील ठाकुर,डॉ.प्रतीक कुमार मिश्र,डॉ.कृष्ण कुमार मिश्र,गोविन्द कुमार झा,अंशु कुमारी कुन्दन कुमार,मुकुन्द कुमार,दीपक कुमार,अभिनीत कुमार,कुमार मृत्युंजय ,प्रभात मिश्र आदि मुख्य रूप से शामिल रहे तथा सहयोग किया।
बिहार में संस्कृत को एक बार फिर प्रतिष्ठा दिलाने के लिए सबको मिलजुल कर काम करने का संकल्प दिलाने के साथ कहा कि संस्कृत विद्यालयों का वातावरण संस्कृतमय बने इसके लिए संस्कृत भारती के कार्यकर्ताओं का सहयोग जरूरी है। इसके लिए संस्कृत विद्यालय के परीक्षा परिणाम को नियमित किया जा रहा है। कहा कि 17 साल बाद आज इस तरह के सम्मेलन में पहुंच कर अपना अध्ययन काल याद आ गया।
आत्मज्ञान के लिए संस्कृत जरूरी
संस्कृत भारती के राष्ट्रीय महामंत्री शिरीष देव पुजारी ने कहा कि संस्कृत के ज्ञान के बिना आत्मज्ञान असंभव है। आज विश्व में संस्कृत की मांग तेजी से बढ़ी है। क्योंकि संस्कृत न सिर्फ सबसे प्राचीन भाषा है, बल्कि वैज्ञानिक भाषा भी है। इतिहास में भारतीय संस्कृति पर हुए कई कुठाराघातों के कारण हमने संस्कृत को भुला दिया, लेकिन आज एक बार फिर भारत की इस महान भाषा का महत्व समझ में आ रहा है और पूरा विश्व इसके प्रति नतमस्तक है।
संस्कृत बने जन-जन की भाषा
संस्कृत भारती के क्षेत्र मंत्री श्रीप्रकाश पाण्डेय ने कहा कि संस्कृत को जन-जन की भाषा बनाने केउद्देश्य से पूरे देश में संस्कृत भारती द्वारा आम लोगों को संस्कृत बोलने का प्रशिक्षण दिया जाता है। बिहार के कार्यकर्ताओं को एक बार फिर इस कार्य के लिये जागृत करने के उद्देश्य से यह दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया है। उन्होंने संस्कृत को संस्कृत में ही पढ़ाने पर बल दिया। कार्यक्रम संयोजक डॉ.दिप्तांशु भास्कर ने संचालन तो स्वागत भाषण डॉ.रामसेवक झा व धन्यवाद ज्ञापन डॉ.कुमार मृत्युंजय ने किया।
इनकी रही भागीदारी
समाजसेवी प्रफुल्ल कुमार ठाकुर, संस्कृत भारती के प्रांतीय मंत्री डॉ.रमेश कुमार झा,डॉ.रामसेवक झा, डॉ.त्रिलोक झा,डॉ.सुनील ठाकुर,डॉ.प्रतीक कुमार मिश्र,डॉ.कृष्ण कुमार मिश्र,गोविन्द कुमार झा,अंशु कुमारी कुन्दन कुमार,मुकुन्द कुमार,दीपक कुमार,अभिनीत कुमार,कुमार मृत्युंजय ,प्रभात मिश्र आदि मुख्य रूप से शामिल रहे तथा सहयोग किया।
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