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समस्तीपुर : अब खाइए फ्लेवर्ड गुड़, स्वाद लेने के साथ ही साथ बनाएं अपना सेहत

डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा में छह महीने शोध के बाद उत्पाद तैयार। गुड़ में इलायची लेमन अदरक तुलसी हल्दी गिलोय काली मिर्च अजवाइन मेथी जलजीरा सौंफ आदि मिलाकर देखा गया। इससे औषधीय गुण बढऩे के साथ अलग-अलग स्वाद भी सामने आया।

By Ajit kumarEdited By: Published: Mon, 01 Mar 2021 08:50 AM (IST)Updated: Mon, 01 Mar 2021 08:50 AM (IST)
विज्ञानियों की टीम पिछले छह महीने से काम कर रही है। फोटो: जागरण

समस्तीपुर, [पूर्णेंदु कुमार]। देश-दुनिया में जब कोरोना का संकट छाया तो देसी उत्पाद संजीवनी बन गए। आम आदमी से लेकर विज्ञानी तक जड़ी-बूटियों में मर्ज का इलाज खोजने लगे। इन पर जब शोध हुआ तो न सिर्फ नए उत्पाद बने, बल्कि कारोबार का नया नजरिया विकसित हुआ। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा में भी ऐसा ही हो रहा। यहां फ्लेवर्ड और औषधीय गुड़ (विभिन्न स्वादयुक्त) तैयार किया जा रहा है। 

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गुड़ को फ्लेवर देने और औषधीय गुण बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय स्थित ईख अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. एके सिंह के साथ विज्ञानी अनुपम अमिताभ, अनिमेष कुमार और अन्य विज्ञानियों की टीम पिछले छह महीने से काम कर रही है। गुड़ में इलायची, लेमन, अदरक, तुलसी, हल्दी, गिलोय, काली मिर्च, अजवाइन, मेथी, जलजीरा, सौंफ आदि मिलाकर देखा गया। इससे औषधीय गुण बढऩे के साथ अलग-अलग स्वाद भी सामने आया। इस गुड़ को आकर्षक बनाने के लिए चॉकलेट, बर्फी और क्यूब का रूप दिया गया। इसके इसे बुरादे के रूप में भी बनाया गया।

बाजार भाव 100 से 120 रुपये प्रतिकिलो

शोध में जुटे विज्ञानियों का कहना है कि जितने भी औषधीय गुणों वाले पेड़-पौधे हैं, उनमें प्राकृतिक रूप से खास तरह का स्वाद होता है। गन्ने के रस के साथ जब उनका रिएक्शन होता है तो तैयार होने वाले गुड़ को एक फ्लेवर मिल जाता है। यह बिल्कुल केमिकल फ्री होता है। इस गुड़ को सामान्य तापक्रम पर एक साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है, इसलिए इसकी बिक्री सरल और सहज है। हालांकि, इसमें बाहरी अवयव मिलाने के कारण उत्पादन खर्च बढ़ेगा, इसलिए इसका बाजार भाव 100 से 120 रुपये प्रतिकिलो तक हो सकता है।

इंजीनियर‍िंग की नौकरी छोड़ शुरू किया काम

बीटेक की पढ़ाई और कुछ वर्षों तक नौकरी कर चुके कल्याणपुर, रतवाड़ा के युवा अफजल इमाम और अली फतह जैसे युवा इस तरह के प्रोडक्ट को बाजार में उतारने को तैयार हैं। विश्वविद्यालय के सहयोग और कुछ अन्य साथियों की मदद से खुद की कंपनी बनाकर इसे लांच करने की योजना है। उनका कहना है कि अपनी जमीन से जुड़े उत्पादों को लेकर बहुत संभावनाएं हैं। यह कोरोना काल में समझ आया।


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