पढ़ाई के साथ फोटो फ्रेमिंग का काम कर रही रुस्तम, पिता को मिला बेटी से बल
10 साल की उम्र में फोटो फ्रेमिंग जैसे काम में हाथ बंटाने का निर्णय लियां। बड़े भाई की मौत के बाद पिता के काम में शुरू किया था हाथ बंटाना। आज फोटो फ्रेमिंग में पूरी तरह कुशल।
समस्तीपुर, [कुमोद प्रसाद गिरि]। हौसले की उड़ान से बेटियां आज हर क्षेत्र में काम कर रहीं। सरायरंजन बाजार निवासी राम उदगार सिंह की 18 वर्षीय बेटी रुस्तम कुछ ऐसी ही है। पढ़ाई के साथ पिछले आठ साल से फोटो फ्रेमिंग का भी काम कर रही। इसमें इतनी महारत है कि दूर-दराज के लोग फोटो फ्रेमिंग करवाने आते हैं। जब वह अपने हाथ से फोटो फ्रेम पर आरी या हथौड़ी चलाती है तो देखते बनता है।
इस तरह हुई शुरुआत
वर्ष 2011 में रुस्तम के बड़े भाई का सड़क दुर्घटना में आकस्मिक निधन हो गया। वे पिता के साथ फोटो फ्रेमिंग का काम करते थे। इससे परिवार को काफी मदद मिल जाती थी। उनके निधन के बाद परिवार पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। पिता का कारोबार भी धीमा पड़ गया। कर्ज का बोझ बढऩे लगा। उस समय रुस्तम की उम्र महज 10 साल थी। इतनी कम उम्र में फोटो फ्रेमिंग जैसे काम में हाथ बंटाने का निर्णय लियां। पिता ने पहले तो इस पर हिचकिचाहट दिखाई, बाद में बेटी की जिद के आगे विवश हो गए।
फिर तो रुस्तम स्कूल से आने के बाद प्रतिदिन पिता की दुकान पर पहुंच जाती थी। उनके एक-एक काम को बारीकी से देखती थी। धीरे-धीरे उसने आरी और हथौड़ी चलाना सीख लिया। फ्रेम काटने लगी। शुरू में रुस्तम को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। समाज के लोग उसे अजीब नजरों से देखते थे। आरी-हथौड़ी चलाने में भी उसे परेशानी होती थी। पर, उसके संकल्प के चलते काम आसान होता गया।
अब तो वह इसमें पूरी तरह निपुण हो गई है। जो लोग पहले उस पर व्यंग कसते थे, अब प्रशंसा करते हैं। उसने अथक परिश्रम से पिता के कारोबार को दोगुना कर दिया है। फिलहाल उसकी मासिक आय 10 से 12 हजार रुपये है। स्नातक के बाद स्वरोजगार करने की चाहत रखने वाली रुस्तम कहती है, हिम्मत हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं।
लोग काम की करते तारीफ
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, सरायरंजन के हेडमास्टर रविंद्र कुमार ठाकुर कहते हैं कि उन्होंने स्कूल के महापुरुषों के फोटो की फ्रेमिंग करवाई है। रुस्तम का काम काफी अच्छा है। सरायरंजन बाजार निवासी मंटू चौधरी भी उसके काम की कुछ इसी तरह तारीफ करते हैं।
स्थानीय विधायक व बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी कहते हैं, फोटो फ्रेङ्क्षमग का काम आमतौर पर पुरुष करते हैं। रुस्तम जैसी बहादुर बेटी का इस रोजगार से जुडऩा समाज की रूढिय़ों पर प्रहार है। वह आगे बढ़े और लक्ष्य पाने में सफल हो।