Kargil Vijay Diwas: शहादत को याद कर आज भी गर्व से सीना हो जाता चौड़ा Muzaffarpur News
कारगिल की लड़ाई में दुश्मनों के बंकर को ध्वस्त कर शहीद मेजर चंद्रभूषण ने कई को मार गिराया था। नहीं मिला उचित सम्मान जिले में नहीं है कोई तोरणद्वार।
शिवहर, जेएनएन। कारगिल की लड़ाई में जिले के एक सपूत ने भी योगदान दिया था। उन्होंने अपनी वीरता से दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। ऊंची चोटी पर बैठे दुश्मनों पर काल बनकर टूटे थे। मेजर चंद्रभूषण द्विवेदी की वीरगाथा याद कर आज भी जिले के लोगों की आंखें नम हो जाती हैं। गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है। लेकिन, जिले के लोगों को मलाल है कि सरकार की तरफ से शहीद की उपेक्षा की जा रही। उनके नाम पर जिले में कोई तोरणद्वार नहीं है। पैतृक गांव में बना स्मारक उपेक्षित है।
शिवहर जिले के पुरनहिया प्रखंड स्थित चंडीहा गांव में जन्मे चंद्रभूषण द्विवेदी को कर्नल के पद पर प्रोन्नति मिली थी। उस समय वे जम्मू में मेजर के पद पर कार्यरत थे। इन्हें ग्वालियर जाना था। इसी बीच फरमान आया कि कारगिल में युद्ध शुरू है। वहां जाना है। फरमान मिलते ही उन्होंने कमान संभाली और युद्ध में कूद पड़े। दो जुलाई 1999 को वीरता के साथ लड़ते हुए ऊंची पहाड़ी पर दुश्मनों के एक बंकर को ध्वस्त कर दर्जनभर को मार गिराया था। उसी लड़ाई में वे शहीद हो गए। जैसे ही यह सूचना मिली, चंडीहा गांव में सन्नाटा पसर गया। परिजन दुख के सागर में डूब गए। लेकिन, उन्हें इस बात की खुशी थी कि बेटा देश के काम आया। मातृभूमि के लिए शहीद हुआ। छह जुलाई 1999 को शहीद का पार्थिव शरीर गांव पहुंचा। यहां पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ।
उपेक्षित है शहीद का गांव
देश के लिए जान देने वाले विंदेश्वर द्विवेदी के पुत्र शहीद चंद्रभूषण को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। 16 जुलाई 1999 को तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने शहीद की पत्नी भावना द्विवेदी को मेडल एवं 10 लाख रुपये की सहायता राशि दी थी। वहीं, घोषणा की गई थी कि शहीद के नाम पर गल्र्स हाईस्कूल, सामुदायिक भवन एवं गांव के पथ का नामकरण किया जाएगा। लेकिन, घोषणाएं पूरी नहीं हुईं। मशक्कत के बाद गांव में एक स्मारक का निर्माण हुआ जो चारदीवारीविहीन है। उक्त स्थल तक जाने के लिए आज भी संपर्क पथ नहीं है। गांव में एक सामुदायिक भवन के ऊपर शहीद का नाम अंकित कर दिया गया है।
नहीं है एक भी शहीद द्वार
जिले के एकमात्र कारगिल शहीद के नाम पर कहीं भी न द्वार है और न ही स्तंभ। शुरुआत के वर्षों में प्रशासनिक अधिकारी राष्ट्रीय त्योहारों पर शहीद के स्मारक तक पहुंचते भी थे, लेकिन बीते 10 वर्षोंं से न कोई जनप्रतिनिधि और न ही अधिकारी आता है। शहीद के बड़े भाई सेवानिवृत्त शिक्षक श्यामसुंदर द्विवेदी अपने प्रयास से विभिन्न अवसरों पर कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
दिल्ली में रहते हैं शहीद के परिजन
शहीद मेजर चंद्रभूषण की प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई थी। उसके बाद सैनिक स्कूल झुमरी तिलैया से पढ़ाई पूरी की। 1982 में एनडीए की परीक्षा पास की। 1989 में उनकी शादी भावना कुमारी से हुई, जिससे दो बेटियां हैं। एक नेहा द्विवेदी मुंबई में डॉक्टर हैं। उनके पति रोहिनी छिब्बर लेफ्टिनेंट कर्नल हैं। यह शादी शहीद की इच्छा के अनुसार हुई, क्योंकि वे चाहते थे कि बड़ी बेटी की शादी किसी मिलिट्री ऑफिसर से हो। दूसरी पुत्री दीक्षा विदेश से मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई कर दिल्ली में एक वेबसाइट की निदेशक हैं। शहीद की पत्नी भावना द्विवेदी सरकार की ओर से दिल्ली के द्वारका में आवंटित फ्लैट में रहती हैं। रोहिणी में एक पेट्रोल पंप है, जिसका संचालन करती हैं।