Disputed statement over menstrual cycle : धर्म का महिलाओं के पीरियड्स से कोई कनेक्शन नहीं, बदलें नजरिया
पीरियड्स पर एक धर्मगुरु ने कहा कि इस दौरान पति के लिए खाना पकाने वाली महिला का पुनर्जन्म कुत्ते के रूप में होगा जबकि उसका बनाया खाना खानेवाला बैल के रूप में पैदा होगा।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। पीरियड्स पर गुजरात में एक धर्मगुरु ने विवादित बयान दिए। कहा कि इस दौरान पति के लिए खाना पकाने वाली महिला का पुनर्जन्म कुत्ते के रूप में होगा, जबकि उसका बनाया खाना खाने वाला पति अगले जन्म में बैल के रूप में पैदा लेगा। यह 21वीं सदी का हमारा समाज है। जहां नारी सशक्तीकरण और नारी उत्थान को लेकर हजार दावे किए जाते हैं लेकिन, जब सही अर्थ में उनको सम्मान देने की बात आती है तो इस तरह की सोच सामने आने लगती है।
ऐसा नहीं है कि इस दिशा में हमारी सोच नहीं बदली है, बहुत हद तक सुधार हुआ है लेकिन और सुधार की जरूरत है। खासकर पीरियड्स को धर्म से जोड़ने वाले मुद्दे पर। इसके लिए सभी को आगे आने की जरूरत है।
हार्मोनल परिवर्तन का परिणाम
इस संबंध में Dietician (आहार विशेषज्ञ) प्रियंवदा कहती हैं कि मासिक धर्म चक्र (menstrual cycle) महिला शरीर में हार्मोनल परिवर्तन का परिणाम है। यह गर्भधारण की संभावना के लिए एक महिला के शरीर में परिवर्तन की मासिक श्रृंखला है। इस दौरान आराम और देखभाल की आवश्यकता होती है। व्यक्तिगत स्वच्छता का खास ख्याल रखना पड़ता है। परिवार को भी इसमें सहयोग करना चाहिए। लेकिन, इस दौरान खाना बनाने समेत अन्य दैनिक दिनचर्या के लिए महिलाओं को प्रतिबंधित करने का कोई औचित्य नहीं है।
नजरिया में बदलाव की जरूरत
लेखिका सह सामाजिक कार्यकर्ता सौम्या ज्योत्सना इस तरह के विचारों को खारिज करती हैं। कहती हैं कि जो पवित्रता को पीरियड्स से जोड़कर देखते हैं उनको तो पूरी पृथ्वी पर पवित्रता नहीं मिल सकती। धरती मातृस्वरूप हैं यानी महिला हैं। जन्म के समय भी यही लाल रंग का खून लगता है। ऐसे में तो पूरी दुनिया ही अपवित्र है। गंगा स्नान भी इस अपवित्र मानसिकता से दूर नहीं कर सकता। क्योंकि गंगा भी तो मां हैं। इसलिए नजरिया में बदलाव की जरूरत है। महिलाओं को विचारों में भी सम्मान देने का वक्त आ गया है।
मूल भावना को समझना होगा
आध्यात्मिक गुरु व ज्योतिषविद गुरुदेव नीरज बाबू ने कहा कि मैं बैल या कुत्ता के रूप में पुनर्जन्म को नहीं मानता। जहां तक धार्मिक मान्यताओं की बात है तो उसके पीछे की मूल भावना को समझना होगा। इस अवस्था में स्त्री अस्वस्थ हो जाती हैं। अधिक थकान और परेशानी भी होती है। ऐसे में यदि काम का पूरा बोझ डाल दिया जाए तो स्वास्थ्य और खराब हो सकता है। इस स्थिति से बचने के लिए और महिलाओं को आराम देने के लिए पुराने समय में उन्हें काम नहीं करने देने की व्यवस्था बनाई गई होगी। यदि कोई अपने को स्वस्थ्य महसूस करती हैं तो स्वच्छता मानक का ख्याल करते हुएकाम कर सकती हैं।
व्यवहार निंदनीय
बड़कागांव के पंडित रवींद्र मिश्र ने कहा कि सभी धर्मों के नियम बने हुए हैं। लेकिन, अभद्रता पूर्ण बयान देना और छात्राओं के साथ किया गया व्यवहार निंदनीय है। यदि ऐसा नियम है खाना पकाने या खिलाने के लिए पुरुष की बहाली करनी चाहिए।
परिप्रेक्ष्य को समझने की जरूरत
इस संदर्भ में कर्मकांड विशेषज्ञ पंडित विवेक तिवारी ने कहा कि छात्राओं के साथ इस तरह का व्यवहार उचित नहीं है। पुराने समय में पीरियड के दौरान धार्मिक स्थलों पर प्रवेश या पूजन अनुष्ठान में महिलाओं को दूर रहने की सलाह दी जाती थी। आज के परिप्रेक्ष्य में इसको देखने और समझने की जरूरत है। जहां तक खाना बनाने या भोजन परोसने की बात है तो इसके लिए पहले से ही नियम बनाना चाहिए।
कहने का अंदाज गलत
इस बारे में आचार्य अभिनव पाठक ने कहा कि पीरियड को लेकर गुजरात के धर्मगुरु के कहने का अंदाज गलत है। धार्मिक मान्यताओं में इसका उल्लेख देखने को मिलता है लेकिन, उसे वर्तमान संदर्भ में कहना जरूरी है। यह तो सच है कि मासिक के दौरान प्राकृतिक रूप में महिलाएं खुद को थोड़ा अस्वस्थ महसूस करती हैं। ऐसे में उन्हें राहत देने के लिए ऐसी व्यवस्था की गई होगी।
वर्तमान संदर्भ का ध्यान रखना उचित
आध्यात्मिक गुरु व कर्मकांड विशेषज्ञ पंडित कमलापति त्रिपाठी 'प्रमोद ' कहते हैं कि मासिक धर्म को लेकर पुरानी मान्यताओं में स्पर्श दोष से अन्न अशुद्ध और व्यक्ति के ब्रह्महत्या के भागी होने की बात कही जाती है । लेकिन, वर्तमान संदर्भ में इसको उसी रूप में लागू करना उचित नहीं है।