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बिहार में AES ने दिखाया विकराल रूप, अबतक 140 बच्चों की मौत, मचा हाहाकार

बिहार में इस साल एईएस यानि एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम में बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है। अबतक इस बीमारी से मरने वाले बच्चों की संख्या 140 पहुंच गई है वहीं 440 बच्चे भर्ती हैं

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 18 Jun 2019 09:22 AM (IST)Updated: Tue, 18 Jun 2019 10:21 PM (IST)
बिहार में AES ने दिखाया विकराल रूप, अबतक 140 बच्चों की मौत, मचा हाहाकार
बिहार में AES ने दिखाया विकराल रूप, अबतक 140 बच्चों की मौत, मचा हाहाकार

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। लंबे समय तक तेज गर्मी और नमी के कारण इस वर्ष एईएस ने विकराल रूप धारण कर लिया है। इस बीमारी से पीडि़त होनेवाले बच्चों की संख्या पिछले सारे वर्षों से अधिक हो गई है। अब तक इस बीमारी से 140 बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि जिले के अस्पतालों में 443 बच्चे भर्ती कराए गए हैं, जिनका इलाज चल रहा है। बिहार में एईएस से मंगलवार को आठ और बच्चों की मौत हो गई।

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मंगलवार को सर्वाधिक प्रभावित मुजफ्फरपुर के अलावा बांका, सिवान और वैशाली से भी दुखी करने वाली खबरें आईं। मुजफ्फरपुर और आसपास के जिलों में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) का कहर जारी है। मरनेवालों और पीडि़तों के आने का सिलसिला थम नहीं रहा। भीषण गर्मी और उमस के बीच 39 नए मरीजों को इलाज के लिए लाया गया। इनमें एसकेएमसीएच में 30 और केजरीवाल में नौ मरीजों को भर्ती कराया गया है। इनमें आधा दर्जन से अधिक की हालत गंभीर बताई जा रही। इस मौसम में एसकेएमसीएच और केजरीवाल मिलाकर 120 बच्चों की मौत हो चुकी है। 443 बच्चों को पीएचसी से लेकर एसकेएमसीएच तक में भर्ती कराया जा चुका है।  

इस बीमारी से वर्ष 2014 में 342 बच्चे बीमार हुए थे। इनमें से 86 बच्चों की मौत हो गई थी। वर्ष 2012 में इस बीमारी से 120 बच्चों ने दम तोड़ दिया था। हालांकि, तब 336 बच्चे बीमार पड़े थे।

सरकार की ओर से यह कहा जा रहा कि हमने कई बच्चों को बीमारी से बचाने में सफलता हासिल की। यह संख्या सौ से अधिक है, मगर पिछले 10 वर्षों के आंकड़े को देखें तो बीमारी से पीडि़त बच्चों की दर में कमी आई थी। वर्ष 2014 में जबकि इस बीमारी का काफी कहर था, 75 फीसद बीमार बच्चों को बचा लिया गया था।

वहीं, अगले दो वर्षों 2015 व 2016 में करीब 85 फीसद बच्चों की जिंदगी बच गई। मगर इस वर्ष यह आंकड़ा कम हो गया। अब तक करीब 75 फीसद बच्चों को ही हम बचा पाए। अचानक मौत की वृद्धि का यह आंकड़ा अलर्ट कर रहा। आखिर कहां चूक रह गई।

वर्ष 2014 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने जो रणनीति बनाई उसपर अगले दो वर्षों तक अमल हुआ। जागरूकता अभियान निरंतर चलते रहे। यही कारण रहा कि बच्चे बीमार तो हुए। लेकिन उनके बचने की दर अधिक रही। इन दो वर्षों के बाद बच्चों को बचा पाने की दर कम हो रही। 

आंकड़ों को देखें तो जब जागरूकता का अभाव था, बीमार बच्चों के मरने की दर अधिक थी। वर्ष 2010 में सर्वाधिक 40 फीसद बीमार बच्चों की मौत हो गई थी। इस वर्ष यह आंकड़ा 25 फीसद है। यानी, करीब एक चौथाई बीमार बच्चों को हम नहीं बचा पा रहे। विभाग की ओर से चाहे जो दावे हो, कहीं न कहीं चूक तो हुई है। 

पिछले कई वर्षों से एईएस पीडि़त बच्चों के आंकड़े

वर्ष    बीमार    मृत    फीसद

2010   59     24     40.67

2011  121     45     37.19

2012  336    120    35.71

2013  124     39     31.42

2014   342    86     25.14

2015    75    11     14.66

2016    30    04   13.33

2017   09     04    44.44

2018   35      11    31.42

2019  450     140  25.77

2019* 440    103    23.40

* सरकारी आंकड़ा। वहीं बीमार बच्चों में एक दर्जन बच्चे गंभीर है। 

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