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BRA Bihar University : बोले प्रो.रत्नेश्वर मिश्र, इतिहासकार हरारे ने वायरस के खतरे से बहुत पहले किया था आगाह

BRA Bihar University विवि के पीजी इतिहास विभाग की ओर से वेबिनार का आयोजन। इतिहास मानव समाज की विकास यात्रा को विश्लेषित करने की विधा है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 10:22 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 10:22 PM (IST)
BRA Bihar University : बोले प्रो.रत्नेश्वर मिश्र, इतिहासकार हरारे ने वायरस के खतरे से बहुत पहले किया था आगाह
BRA Bihar University : बोले प्रो.रत्नेश्वर मिश्र, इतिहासकार हरारे ने वायरस के खतरे से बहुत पहले किया था आगाह

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की ओर से आधुनिक इतिहास लेखन की चुनौतियां और सुझाव विषय पर वेबिनार हुआ। मुख्य वक्ता चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर आराधना ने कहा कि आजादी के सात दशक बाद भी यदि शिक्षण संस्थाओं में 1857 की क्रांति को सिपाही विद्रोह, क्रातिकारियों द्वारा धन संग्रहण की घटना को काकोरी ट्रेन डकैती कांड, क्रांतिकारियों के लिए आतंकवादी शब्द का प्रयोग और वनवासियों के आंदोलन को आदिवासी विद्रोह के रूप में चित्रित किया जा रहा है तो वह गंभीर चिंता का विषय है।

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अध्यक्षता करते हुए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.रत्नेश्वर मिश्र ने कहा कि इतिहास मानव समाज की विकास यात्रा को विश्लेषित करने की विधा है। मानव सभ्यता आदिकाल से महामारी व युद्ध से संकट में रही है, लेकिन इन तमाम खतरों पर हमने विजय प्राप्त की है। कोरोना महामारी के बहुत पहले इतिहासकार हरारे ने इसकी संभावना व्यक्त कर दी थी कि दुनिया के सामने सबसे बड़ा संकट तब खड़ा होगा जब मानव निर्मित वायरस युद्ध का हथियार बनेगा।

कुलपति प्रो.हनुमान प्रसाद पांडेय ने कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इतिहास लेखन के क्षेत्र में अनवरत होने वाले बदलावों ने भारत सहित विश्व के अन्य देशों में वैचारिकी के स्तर पर जो बदलाव आए उससे कई समस्याएं और चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। भारत में इतिहास लेखन की कुप्रवृत्तियों को रोकने के लिए इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो.अजीत कुमार ने पेशागत मूल्यों के पालन तथा शोध संबंधी अनुशासन को प्राथमिकता देने की सिफारिश की। संचालन डॉ.अंशु त्यागी, संदेश वाचन डॉ.गौतम चंद्रा तथा तकनीकी विषयों का संपादन अमर सुंदरम ने किया। इसमें इतिहास विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो.अर्पणा कुमारी सहित 261 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।  


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