दावों में स्वास्थ्य व्यवस्था चकाचक, धरातल पर भगवान भरोसे, मरीजों को हो रही परेशानी
1969-70 में वैशाली शिक्षा प्रतिष्ठान की देखरेख में हुई श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज की स्थापना। 150 सीट की व्यवस्था थी शुरुआती दौर में।
मुजफ्फरपुर, (अमरेंद्र तिवारी/अरुण कुमार शाही) । तमाम सरकारी दावों के बावजूद स्वास्थ्य सेवा भगवान भरोसे है। आलम यह कि इलाज शुरू होने से पहले ही मरीज की आधी जान रजिस्ट्रेशन, ट्रॉली और बेड तलाशने में निकल जाती। इन बाधाओं को पार कर लिया तो फिर जांच कराने की भागदौड़ शुरू होती। यदि जांच निजी लैब से कराना पड़ गया तो वे खून ही चूस लेते। समझ से परे है कि हर साल चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार के नाम पर लाखों-करोड़ों खर्च होनेवाली राशि आखिर कहां चली जाती है?
मरीजों के अनुपात में नहीं बढ़ीं सुविधाएं
मुजफ्फरपुर में 1969-70 में वैशाली शिक्षा प्रतिष्ठान की देखरेख में श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल की स्थापना हुई। पूर्व केंद्रीय मंत्री एलपी शाही और पूर्व मंत्री रघुनाथ पांडेय के नेतृत्व में कॉलेज बना। शुरुआती दौर में 150 सीट थी, लेकिन जब इसका सरकारीकरण हुआ तो पढ़ाई 50 सीट पर आकर थम गई। काफी मशक्कत के बाद 100 सीटों पर पढ़ाई हो रही। यहां की चिकित्सा व्यवस्था सवालों के घेरे में है। शुरुआती दौर में बेहतर चिकित्सा सेवाएं थीं। अब कैंपस हमेशा से मरीजों से खचाखच भरा रहता है।
मरीज भी भगवान भरोसे आ रहे। पानी, शौचालय, सफाई के कारण भी परेशानी है। परिसर में किचेन शेड नहीं रहने से उनके परिजन को खाना बनाने तथा विश्रामालय नहीं रहने से रहने में परेशानी होती है। अस्पताल में कैंटीन नहीं रहने से चाय-नाश्ते के लिए बाहर जाना पड़ता है।
दलालों का बोलबाला, संकट में मरीज
मरीजों की शिकायत है कि चिकित्सक और स्वास्थ्यकर्मी एप्रन में नहीं रहते। उन्हें पहचानने में कठिनाई होती है। परिसर में दलालों का बोलबाला रहता है। आए दिन हंगामा होता है। मरीजों को निजी अस्पताल में पहुंचाने की शिकायत मिलती है। पिछली बार तो निजी अस्पताल में ले जाने के कारण हंगामा हुआ। आक्रोशित लोगों ने एंबुलेंस को ही फूंक दिया था।
मुख्य गेट से ही लग जाती लंबी लाइन
सरस्वती देवी दवा लेने आई हैं। लंबी लाइन के कारण इधर-उधर भटक रहीं। किसी को बिना दवा के लौटाया जा रहा था तो किसी को दवा के लिए इंतजार करने की बात काउंटर पर तैनात कर्मी कह रहे थे। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था, करना क्या है। परिसर में मूंगफली बेचने वाले 65 वर्षीय कुशेश्वर मंडल कहते हैं, पहले जब कॉलेज बना था तो परिसर में गाय-भैंस यानी जानवर ही जानवर दिखते थे।
जैसे किसी संस्था को शुरू करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत होती है वैसे ही इसे बनाए रखने के लिए भी बेहतर इच्छा शक्ति की जरूरत होती है। मंडल ने स्वीकार किया कि सुविधाएं पहले से बहुत बढ़ी हैं। इसके कारण अब पड़ोसी देश नेपाल, शिवहर, सीतामढ़ी, दरभंगा के पूर्वी इलाके, मोतिहारी, वैशाली से मरीज यहां पर आकर इलाज कराते है।
प्लास्टर लगाकर छोड़ दिया
रुन्नीसैदपुर पुनवारा के अमरजीत का पांव टूट गया। परिजन उसको प्लास्टर के लिए आए थे। प्लास्टर रूम से कच्चा प्लास्टर करने के बाद बच्चे को परिजन के हवाले कर दिया। मां उसको गोद में लेकर परिसर से बाहर जाने को मजबूर। परेशान परिजन को देखकर पकौड़ी लाल मदद को आगे आए। उन्होंने परिजन की मदद की। पकौड़ी लाल इसी परिसर में रहते हैं, कोई मजबूर आता तो उसकी मदद करते हैं।
दवा मांगी तो मिली धमकी
एचआइवी के इलाज को चल रहे एआरटी सेंटर पर भी मरीजों की लंबी कतार। वहां पर दवा वितरण सही तरीके से नहीं चल रहा था। भगवानपुर इलाके से दवा लेने पहुंचे एक युवक ने बताया कि चार दिन से दवा नहीं मिलने से लौट रहे। कार्ड बना है। दवा नहीं मिलने की शिकायत पर जवाब मिला कि ज्यादा हल्ला करोगो तो यहां से बनारस रेफर कर देंगे। युवक चिकित्सक से चिरौरी करता रहा, लेकिन उसकी कोई भी बात सुनने को तैयार नहीं। एआरटी प्रभारी से जब बात हुई तो उनकी अलग पीड़ा रही। प्रभारी डॉ. दुर्गेश दिवाकर कहते हैं कि यहां पर चिकित्सक, पारा मेडिकल स्टाफ नहीं हैं। खुद इलाज व दवा की निगरानी करती पड़ती है। कितनी बार इसकी जानकारी वरीय अधिकारी को दी, लेकिन उस पर कोई एक्शन नहीं हुआ। वह बाहर आकर बताने लगे कि एक आदमी यहां सप्ताह भर से पड़ा हुआ है, यहां पर काम करना मुश्किल है। एआरटी के अंदर जहां अस्त-व्यस्त सबकुछ दिखा। वहीं, बाहर भी स्वच्छता अभियान की ऐसी-तैसी वाली हालत दिखी।
अपने भरोसे इलाज को मजबूर
इमरजेंसी में भर्ती मरीज का इलाज चल रहा, लेकिन उसको समय से वार्ड में शिफ्टिंग नहीं हो पा रहा है। तिलकताजपुर के सुरेश भगत ने बताया कि उसके मरीज को सीने में दर्द की शिकायत रही। उसके बाद उसको इमरजेंसी में लाकर भर्ती किया गया। भर्ती के समय ही एक दलाल उसको निजी अस्पताल में ले जाकर भर्ती करा दिया। उस समय वह अस्पताल में नहीं आए थे। लेकिन, बात में जब वह खोजते हुए एसकेएमसीएच आए तो पता चला कि यहां पर नहीं हैं। वह निजी अस्पताल में जाकर हंगामा किए तो उसको वापस किया। चार दिन से इमरजेंसी में भर्ती है। दवा तो मिल रही इलाज भी हो रहा। लेकिन, वहां के स्टाफ समय पर दवा अपने मन से नहीं देते। चिरौरी करनी पड़ती है। कोई सुनने वाला नहीं है।
दिखाया बाहर का रास्ता
मीनापुर के राकेश कुमार बताते हैं कि आउटडोर पर पर्ची कटाया। चिकित्सक मिले दवा लिख दी। जब काउंटर पर आया तो दवा नहीं दी। कफ सीरप मांगा तो पर्ची लौटाते हुए बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। राकेश ने आरोप लगाया कि एक दूसरे मरीज को बिना मांगे ही दवा दे दी। अस्पताल में आनेवाले मरीज को स्ट्रेचर नहीं मिलती है। सीमा देवी को स्ट्रेचर नहीं मिला तो किसी की मदद से अस्पताल तक लाया गया। एसकेएमसीएच में जहां चिकित्सक सहित अन्य पद के लिए 1601 पद सृजित हैं जिसमें से 942 रिक्त पड़े हैं। पद नहीं भरने के कारण किसी तरह से काम चल रहा है।
पद-स्वीकृत-रिक्त
अधीक्षक-1-1
प्रशासी पदाधिकारी-1-1
एसआर व जेआर-453-356
चिकित्सा पदाधिकारी-12-12
लिपिक-39-19
लैब टेक्नीशियन-27-14
ओटी सहायक-29-18
नर्सिंग सिस्टर-86-86
ए ग्रेड नर्स-561-304
अस्पताल अधीक्षक ने कहा-पूरी कोशिश रहती कि जो मरीज आए उसका बेहतर इलाज हो
अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सुनील शाही ने कहा कि अस्पताल पर मरीजों का लोड बढ़ा है। अभी संसाधन कम है। उसके लिए पहल की जा रही है। लेकिन यहां पर जो मरीज आते हैं उसका इलाज होता है। प्रतिदिन आउटडोर में 1300-1400 मरीज तो इमरजेंसी में 150-200 मरीज आते हैं। पूरी कोशिश रहती कि जो मरीज आए उसका बेहतर इलाज हो। आयुष्मान भारत के तहत कॉलेज ने बिहार में टॉप किया। यानी 1968 मरीजों का इलाज हुआ।