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भुगतान के अभाव में शौचालय निर्माण से विमुख हो रहे लोग

फिर लोटा लेकर खुले में शौच जाने को ग्रामीण विवश। जीरो टैगिंग के नाम पर छह माह से नहीं मिल रहा भुगतान।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 04 Mar 2019 10:24 PM (IST)Updated: Tue, 05 Mar 2019 08:23 AM (IST)
भुगतान के अभाव में शौचालय निर्माण से विमुख हो रहे लोग
भुगतान के अभाव में शौचालय निर्माण से विमुख हो रहे लोग

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। गांवों में लोहिया स्वच्छता मिशन का असर अब मिटता दिख रहा है। पंचायत के ओडीएफ होने तक अभियान चलता रहा, लेकिन जैसे ही पंचायत ओडीएफ हुई, सब कुछ बदल गया। जीविका द्वारा लाभार्थियों को भुगतान नहीं किए जाने से वंचित लोगों ने शौचालय बनवाने का इरादा ही छोड़ दिया। नतीजन लोग अब भी लोटा लेकर खुले में शौच जाने को विवश हो रहे हैं।

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 प्रखंड की लोहसरी पंचायत में 13 वार्ड हैं। पंचायत में एक दर्जन से अधिक गांव है। इस पंचायत को 13 अगस्त 2018 को ओडीएफ घोषित कर दिया गया। घोषणा के दौरान पंचायत के 2381 घरों में शौचालय बनने की बात कही गई थी। लेकिन इसका कितना लोग उपयोग कर रहे, यह नहीं दर्शाया गया। चार सौ से अधिक लोगों ने सिर्फ प्रोत्साहन राशि लेने की ललक से शौचालय निर्माण कराया। लेकिन उनके खुले में शौच जाने से इसकी पोल खुलने लगी है।

 कुछ लोगों ने जीविका कर्मियों की मिलीभगत से ऋण तो लिया लेकिन आज तक शौचालय निर्माण नहीं कराया। पंचायत में ओडीएफ घोषणा होने के सात माह बाद भी 70 फीसदी घरों में ही शौचालय का निर्माण कराया गया। 30 फीसदी घरों में शौचालय निर्माण लंबित है। वहीं, 10 फीसदी घरों में शौचालय निर्माण आधा अधूरा कर छोड़ दिया गया। प्रोत्साहन राशि की लेटलतीफ को देख 30 फीसद लोगों ने शौचालय निर्माण का इरादा छोड़ दिया।

 हालांकि पंचायत के किसी वार्ड में दस तो किसी वार्ड में 40 फीसदी ही लाभार्थियों को भुगतान मिला है। पंचायत में 45 फीसदी लोगों को ही इसका लाभ मिला है। वहीं 55 फीसदी लोगों का शौचालय निर्माण के बाद भी राशि नही मिलने का मलाल है। जीविका द्वारा जीरो टैगिंग के नाम पर लाभुकों को दौड़ाने का भी मामला सामने आया है। गांव के मोहन पासवान, प्रमोद पासवान, जय प्रकाश राय, दीपक कुमार, अबध पासवान, राकेश कुमार, संतोष कुमार आदि ने बताया कि शौचालय निर्माण जो लोग करा चुके हैं, उनका भुगतान जीविका को करना है।

 भुगतान के नाम पर किसी वार्ड में एक हजार तो किसी वार्ड में दो से तीन हज़ार रुपये रिश्वत ली जा रही है। जो लोग जीविका कर्मी को रिश्वत देते हैं, उनका भुगतान किया जाता है। जो लोग इसका विरोध करते है उन्हें जीरो टैगिंग का हवाला दिया जाता है।

 इस अवस्था में गरीब मजदूर कैसे कर्ज लेकर शौचालय का निर्माण कराए। मुखिया रामाकांत पासवान ने बताया कि पंचायत में 70 फीसदी लोगों के घरों में शौचालय निर्माण हो चुका है। लगभग 50 फीसदी लोगों का भुगतान लंबित है।जिसके पास पैसा नहीं था, उन्हें जीविका समूह से ऋण दिया गया। कुछ लोगों ने निर्माण कराया तो कुछ लोग ऋण लेने के बावजूद निर्माण नहीं करा सके।

इस बारे में बीडीओ नीलकमल ने कहा कि भुगतान जीविका को करना है। शौचालय निर्माण के बाद भी राशि नहीं मिलने की शिकायत मिली है जिसमें जीविका की लापरवाही मिली है। लिखित शिकायत मिलते ही मामले की जांच कर डीएम को कार्रवाई के लिए लिखा जाएगा।


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