India-Nepal Border पर फेनहारा व कन्हौली में नो मेंस लैंड गायब, बन सकता है विवाद की वजह
India-Nepal Border News फेनहारा में घुसकर नेपाल बना रहा था पुल एसएसबी ने रोका। नो मेंस लैंड पर दोनों तरफ से कब्जा गश्त करने में भी मुश्किलें।
सीतामढ़ी, जेएनएन। India-Nepal Border News : भारत-नेपाल बॉर्डर पर व्याप्त टेंशन के बीच अब खबर आ रही है कि सीतामढ़ी जिले के मेजरगंज के पास फेनहारा व सोनबरसा के कन्हौली में नो मेंस लैंड का वजूद ही खत्म हो गया है। इन दोनों जगहों पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा हो गया है। दोनों देशों से ये अतिक्रमण कायम है। हालांकि, ये कब्जा अर्से से है, मगर प्रशासन बेखबर है। इस भूमि पर मकान बन गए हैं। बाजार लगता है। दुकानें सज रही हैं। सीमा बताने वाले पिलर भी गायब हो गए हैं।
सशस्त्र सीमा बल ने काम रुकवाया
इस बीच नेपाल इस बॉर्डर पर फेनहारा के पास एक पुल बना रहा है। "नो मेंस लैंड' का वजूद मिट जाने के चलते पुल का कुछ हिस्सा भारत की भूमि तक आ गया। भारत की ओर से सीमा की सुरक्षा में तैनात सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) वालों का कहना है कि सीमा के अंदर तक पुल का हिस्सा बढ़ जाने पर उन्होंने काम रुकवा दिया। नेपाल की अथॉरिटी ने सीमा क्षेत्र की मापी कराई और उसने अपनी गलती मानकर निर्माणाधीन पुल के हिस्से को तोड़ दिया है।
'नो मेंस लैंड' पर संकट के बादल
20वीं बटालियन के कमांडेंट तपन कुमार दास का कहना है कि बात यहीं समाप्त हो चुकी है। कमांडेंट ने हालांकि यह बात स्वीकार की है कि फेनहारा में अतिक्रमण के चलते "नो मेंस लैंड' पर संकट खड़ा हो गया है। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन सीतामढ़ी व गृहमंत्रालय को भी इससे अवगत कराया जा चुका है। कमांडेंट ने यह भी माना कि फेनहारा में अतिक्रमण अर्से से कायम है और इस भूमि पर दोनों तरफ के लोगों का कब्जा है।
लोग लड़ाई-झगड़े पर उतारु हो जा रहे
एसएसबी वाले जब कभी अतिक्रमणकारियों से हटने की बात करते हैं तो वे लोग लड़ाई-झगड़े पर उतारु हो जाते हैं। वहीं सीतामढ़ी जिला प्रशासन इस मामले में बिल्कुल चुप्पी साधे हुए है। सोनबरसा के कन्हौली में एसएसबी की कंपनी तैनात है। बावजूद, यहां भी "नो मेंस लैंड' का वजूद मिट चुका है।
जिला प्रशासन व गृह मंत्रालय को कई बार लिखा गया पत्र
कमांडेंट का कहना है कि "नो मेंस लैंड' पर जब हमारी गश्त चलती है तो हम लोग कोशिश करते हैं कि उनको खाली कराएं। लेकिन, यह काम एक अकेले एसएसबी की बदौलत संभव नहीं है। प्रशासनिक मदद की जरूरत है। क्योंकि, इससे कानून-व्यवस्था का खतरा उत्पन्न हो सकता है। इसलिए हम लोग जिला प्रशासन को कहते रहते हैं कि आप इन अतिक्रमणकारियों को हटवाइए। "नो मेंस लैंड' पर दुकानें बन गई हैं, बाजार सजता है, लोगों ने घर-द्वार बना लिए हैं। "नो मेंस लैंड' को ही उन लोगों ने श्मशान घाट बना दिया है। शवों को दफनाने व अंतिम संस्कार का काम भी यहीं पर करते हैं। गाय-भैंस व अन्य मवेशियां के लिए "नो मेंस लैंड' ही चारागाह बना हुआ है।
एसएसबी जवानों को पैदल चलने में परेशानी
शौच के लिए भी लोग इसी भूमि का इस्तेमाल करते हैं। हालत इतनी खराब है कि एसएसबी जवानों को पैदल चलने या गश्त करने में भी मुश्किलें आती हैं। जब एसएसबी आई उससे बहुत पहले अतिक्रमण हो चुका था। ये समस्या सिर्फ यहीं की नहीं है। बल्कि पूरे नेपाल व भूटान बार्डर पर ये समस्या है। नेपाल की आर्म्ड पुलिस फोर्स (एपीएफ) है उनके साथ मीटिंग करते हैं, जॉईंट पेट्रोलिंग भी होती है। जितना हो सकता है हम लोग उन अतिक्रमणकारियों से मिलकर आरजू-मिन्नतें करके हटवाने की कोशिश करते हैं। मगर, कुछ चीजें पक्की बन चुकी हैं और कुछ चीजें वो हटाना नहीं चाहते। जैसे फेनहारा का उदाहरण लें तो वो पूरा का पूरा "नो मेंस लैंड' पर मार्केट ही बसा हुआ है। इस अतिक्रमण में कुछ तो अस्थायी हैं तो कुछ स्थायी निर्माण किया जा चुका है।