नई तकनीक से बढ़ेगा भूगर्भ जलस्तर, जलसंकट से निजात पाने में मिलेगी मदद Samastipur News
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा का अनुसंधान। इस तकनीक पर खर्च हुए हैं सवा लाख रुपये विवि में जुलाई से हो रहा उपयोग।
समस्तीपुर, [पूर्णेन्दु कुमार]। भूमिगत जल के रिचार्ज के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा ने नई तकनीक विकसित की है। विश्वविद्यालय में इसका प्रयोग किया गया है। जुलाई से यह सफलतापूर्वक कार्य कर रही है। जलसंकट से निजात पाने में इससे काफी मदद मिलेगी।
जल संरक्षण वैज्ञानिक व कुलपति डॉ. आरसी श्रीवास्तव के नेतृत्व में विकसित यह रेन वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक काफी सरल और सस्ती है। इसे सामान्य लोग भी अपना सकते हैं। इस परियोजना से जुड़े इंजीनियर रवीश चंद्रा ने बताया कि इसके लिए 150 से 200 फीट की बोरिंग करानी होगी। बोरिंग के चारों ओर बड़ा चैंबर और उसके बगल में छोटे चैंबर का निर्माण कराना होगा। बारिश का पानी नाली या पाइप के जरिए छोटे चैंबर में पहुंचेगा। वहां से छनकर बड़े चैंबर में जाएगा। जहां बोरिंग से जमीन के अंदर पहुंच जाएगा। अगर पहले से पुरानी व खराब बोरिंग है तो उसमें भी यह तकनीक अपनाई जा सकती है। इसके लिए 10 फीट लंबी व पांच फीट चौड़ी जगह की जरूरत होगी। खेत में अधिक जलजमाव होने पर उस पानी को बोरिंग के माध्यम से भूगर्भ जल रिचार्ज में इस्तेमाल कर सकते हैं।
जल संग्रह के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत
विश्वविद्यालय अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत विकसित इस तकनीक पर सवा लाख रुपये खर्च हुए हैं। इसके माध्यम से विश्वविद्यालय परिसर में वर्षा से जमा पानी लगभग एक घंटे में जमीन के अंदर चला जाता है। कुलपति ने बताया कि हमारा प्रयास है कि विश्वविद्यालय उतने ही जल का दोहन करे, जितना वर्षा जल हम भूगर्भ तक पहुंचा सकें। उन्होंने बताया कि आने वाले समय में देश में पानी की बड़ी समस्या उत्पन्न होगी। इससे निपटने के लिए हमें जल संग्रह की दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए। यह तकनीक गांव एवं शहरों में मकान बनाने से पूर्व जलसंचय के लिए अपनाई जानी चाहिए। गांव के प्रत्येक वार्ड में भूगर्भ जल रिचार्ज तकनीक की आवश्यकता है।