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World Tourism Day 2019 : गांधी की कर्मभूमि चंपारण में ऐतिहासिक स्थलों की कमी नहीं, विकास की जरूरत

चंपारण के कोने-कोने में ऐतिहासिक महत्व के स्थल मौजूद। कई स्थल के विकास को चल रही सरकारी योजनाएं। उपेक्षित स्थलों का विकास होने पर बढ़ेगी पर्यटकों की संख्या।

By Ajit KumarEdited By: Published: Fri, 27 Sep 2019 01:37 PM (IST)Updated: Fri, 27 Sep 2019 01:37 PM (IST)
World Tourism Day 2019 : गांधी की कर्मभूमि चंपारण में ऐतिहासिक स्थलों की कमी नहीं, विकास की जरूरत
World Tourism Day 2019 : गांधी की कर्मभूमि चंपारण में ऐतिहासिक स्थलों की कमी नहीं, विकास की जरूरत

मोतिहारी, जेएनएन। जिले के कोने-कोने में पर्यटक स्थल भरे पड़े हैं। जरूरत है इसका समुचित विकास हो। वैसे तो चंपारण बापू की कर्मभूमि के रूप में जाना जाता है। बापू से जुड़े स्थलों के अलावा यहां एक तरफ भगवान बुद्ध से जुड़ा बौद्ध स्तूप केसरिया में शान से खड़ा है। अरेराज में बाबा सोमश्वरनाथ मंदिर उत्तर बिहार के भक्तों का आस्था का केंद्र है। अरेराज के लौरिया में अशोक स्तंभ जिले का शान बढ़ाता है। पीपरा स्थित सीता कुंड की यादें माता सीता से जुड़ी है। सुगौली में संधि स्थल की यादें बिखरी पड़ी है।

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 ढाका के बड़हरवा लखनसेन में बापू द्वारा स्थापित पहला बुनियादी विद्यालय है। चंद्रहिया जहां बापू ने सत्याग्रह आंदोलन का बीज अंकुरित कराया था वहां विकास हुआ है, पर पर्यटन स्थल के रूप में यहां सुविधाएं उपलब कराने की दरकार है। इसके अलावा दर्जनों स्थल ऐसे हैं जहां सरकार पहल करे तो यहां पर्यटक आकर यहां के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व धार्मिक महत्व के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।   

केसरिया बौध स्तूप के दर्शन के लिए आते विदेशी पर्यटक 

पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र केसरिया बौद्ध स्तूप कई मायने में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक के रूप में अपनी वैश्विक पहचान बना चुका है। करीब 60 प्रतिशत हिस्से का उत्खन्न हो चुका है। यहां आवासीय सुविधा के साथ कैफेटेरिया एवं आकर्षक पार्क का निर्माण कार्य यहां चल रहा है। स्तूप परिसर में भी वाशरूम बनाए जा रहे हैं। याद रहे कि इस स्तूप के उत्खनन का काम वर्ष 1998 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा शुरू किया गया था। यह लगातार चल रहा है। कहा जाता है कि वैशाली से महापरिनिर्वाण के लिए कुशीनगर जाने के क्रम में महात्मा बुद्ध ने एक दिन यहां बिताया था।

 यहीं पर उन्होंने अपना अंतिम उपदेश भी दिया था। यह स्थान इसलिए भी खास हो जाता है कि बुद्ध ने वैशाली से साथ चल रहे अपने शिष्यों को यहीं से वापस लौट जाने को कहा था। साथ ही अपने प्रिय शिष्य आनंद को अपना भिक्षा पात्र स्मृति चिह्न के रूप में देकर उन्हें लौटाया था। इस घटना की याद में कालांतर में तत्कालीन शासकों द्वारा स्तूप का निर्माण कराया गया। इस स्तूप की ऊंचाई वर्ष 1934 में आई विनाशकारी भूकंप से पूर्व 150 फीट से अधिक थी। भूकंप के कारण इस स्तूप को काफी क्षति पहुंची थी। वर्तमान स्वरूप में स्तूप की ऊंचाई 104 फीट से ज्यादा है, जो इसकी वैश्विक श्रेष्ठता का पैमाना है।

 यहां प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में विदेशी पर्यटक आते हैं। इनमें जापान, कोरिया, थाईलैंड, तिब्बत, म्यामार, श्रीलंका सहित अन्य देशों के पर्यटक शामिल हैं। हालांकि इनके लिए अभी स्तूप के आसपास आवश्यक सुविधाओं का अभाव है। मगर इस दिशा में सरकारी स्तर पर काम चल रहा है। 

सोमेश्वर धाम अरेराज से जुड़ी है लोगों की आस्था 

अनुमंडल मुख्यालय स्थित सोमेश्वर नाथ महादेव मंदिर के चलते अरेराज बिहार का एक मात्र सुप्रसिद्ध व प्राचीन तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है। बिहार व झारखंड के बंटवारे के बाद बाबा बैद्यनाथ मंदिर झारखंड में चला गया। उसके बाद एक मात्र प्राचीन व सुप्रसिद्ध तीर्थस्थल के रूप में यह स्थल जाना जाने लगा। यहां वर्ष में लगभग आधा दर्जन से ज्यादा बड़े मेले का आयोजन होता है। यहां सालोंभर श्रद्धालु भक्त आते-जाते रहते हैं। जिसके चलते सोमेश्वर नाथ महादेव मंदिर श्रद्धा व भक्ति का प्रमुख केंद्र बना है।

 पौराणिक ग्रंथों के अनुसार यहां भगवान राम से लेकर महाभारत काल में वनवास की पीड़ा झेल रहे युधिष्ठिर ने भी अपने बंधु बांधवों के साथ सोम द्वारा स्थापित शिव लिंग की पूजा-अर्चना की थी। ऐसा माना जाता है कि यहां आने वाले लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती है।

  इस मंदिर के महत्व को देख सांसद राधामोहन ङ्क्षसह, विधायक राजू तिवारी, महंत रविशंकर गिरी, जिला व अनुमंडल प्रशासन द्वारा अरेराज को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए की गई पहल पर कार्य शुरू हुआ है। नगर पंचायत द्वारा शिव नगरी को स्वच्छ बनाए रखने में मिल का पत्थर साबित हो रहा है। अनंत चतुर्दशी मेला साल का सबसे बड़ा मेला माना जाता है। सावन महीने में भी भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।  महंत रविशंकर गिरी द्वारा अरेराज मठ का जीर्णोद्धार भी कराया गया है। 

सीताकुंड धाम से जुड़ी है राम व सीता की यादें 


चकिया प्रखंड के पीपरा राजमार्ग संख्या 28 से उत्तर दिशा में करीब दो किमी की दूरी पर स्थित पवित्र सीताकुंड धाम चंपारण के स्वर्णिम अतीत को संजोए हुए है। इस स्थल से भगवान श्रीराम व माता सीता से जुड़ी यादें शामिल हैं। ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व को अपने दामन में समेटे सीताकुंड धाम पर पर्यटन के विकास की संभावनाएं हैं। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया व चंपारण गजेटियर 1960 में सीताकुंड धाम का वर्णन है। इस स्थल को सीता व राम की चौठारी का रस्म पूरा करने का गौरव प्राप्त है। कुशध्वज द्वारा निर्मित इस कुंड में सीता ने स्नान व पूजा कर शिवङ्क्षलग को स्थापित कर पूजा-अर्चना की थी।

 ऐसी मान्यता है कि इस कुंड के जल से शिवङ्क्षलग पर अभिषेक करने से सभी मन्नतें पूरी होती है। सीताकुंड धाम दुर्गापूजा समिति के संस्थापक अध्यक्ष शिवचंद्र सिंह बताते हैं कि वर्ष 2003 में यहां चंपारण महोत्सव का आयोजन हुआ था। उस समय तत्कालीन जिलाधिकारी एस शिवकुमार ने आयोजन समिति की पहल पर इस स्थल के जीर्णोद्धार के लिए कदम बढ़ाया गया था।

 सीढ़ी व घाट का निर्माण हुआ लेकिन फिर आगे सकारात्मक पहल नहीं हो सकी। बाद में इस स्थल को रामायण सर्किट व धार्मिक न्यास बोर्ड से जोडऩे का प्रस्ताव भेजा गया है। दो बार अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल ने इस स्थल का निरीक्षण भी कर चुके हैं। दो वर्ष पूर्व पर्यटन विकास विभाग नई दिल्ली की 5 सदस्यीय टीम ने बिहार सरकार के मंत्री प्रमोद कुमार की पहल पर स्थल का निरीक्षण कर पार्क आदि के विकास की रिपोर्ट सौंपी थी।


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