नरक निवारण चतुर्दशी आज, नरक की यातना और पाप कर्मों के कुप्रभावों से यह बचाता है, जानें अन्य मान्यताएं
Naraka Nivaran Chaturdashi भगवान शिव को विशेष रूप से है प्रिय नरक निवारण चतुर्दशी। इसी दिन हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती के विवाह का प्रस्ताव भगवान शिव के पास भेजा था।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक निवारण चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत रखकर जो व्यक्ति भगवान शिव सहित मां पार्वती और गणपति की पूजा करते हैं, उन पर भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं। इस बार यह 23 जनवरी, गुरुवार को है।
हरिसभा चौक स्थित राधाकृष्ण मंदिर के पुजारी पं.रवि झा व रामदयालु स्थित मां मनोकामना देवी मंदिर के पुजारी पंडित रमेश मिश्र बताते हैं कि यह चतुर्दशी भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। नरक की यातना और पाप कर्मों के प्रभाव से बचने के लिए एवं स्वर्ग में सुख-वैभव की कामना को लेकर किया जाने वाला यह व्रत फलदायी बताया गया है।
शास्त्रों में बताया गया है कि इसी दिन हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती के विवाह का प्रस्ताव भगवान शिव के पास भेजा था। इस तिथि से ठीक एक माह बाद फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव का देवी पार्वती के साथ विवाह संपन्न हुआ।
ज्योतिषविद् विमल कुमार लाभ बताते हैं कि वैसे तो प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि शिवरात्रि के समान खास है, लेकिन उनमें माघ और फाल्गुन मास की चतुर्दशी शिव को सबसे अधिक प्रिय है। नरक निवारण चतुर्दशी के दिन भक्तों को भगवान शिव को बेलपत्र और खासतौर पर बेर जरूर भेंट करनी चाहिए। शिव का व्रत रखने वाले को पूरे दिन निराहार रहकर शाम में व्रत खोलना चाहिए। व्रत खोलने के लिए सबसे पहले बेर खाने का विधान है।
कहा जाता है कि इस व्रत के करने से व्यक्ति के पाप कट जाते हैं और व्यक्ति स्वर्ग में स्थान पाने का अधिकारी बनता है। लेकिन सिर्फ व्रत से ही काम नहीं चलेगा। हमें यह भी प्रण करना होगा कि मन, वचन और कर्म से जान बूझकर कभी किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएंगे। क्योंकि केवल भूखे रहने से नहीं, बल्कि नियम पालन से व्रत पूरा होता है।