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लड़ाई-झगड़े में लड़खड़ाया नगर निगम, विकास के साथ नहीं कर सका कदमताल

राजनीतिक वाद-विवाद अनियमितताओं घोटालों और आरोप-प्रत्यारोप के बीच नगर निगम के वर्तमान बोर्ड के दो साल पूरे। जनता की उम्मीदों पर खड़ा नहीं उतर पाएं वार्ड पार्षद।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 10 Jun 2019 09:29 AM (IST)Updated: Mon, 10 Jun 2019 09:29 AM (IST)
लड़ाई-झगड़े में लड़खड़ाया नगर निगम, विकास के साथ नहीं कर सका कदमताल
लड़ाई-झगड़े में लड़खड़ाया नगर निगम, विकास के साथ नहीं कर सका कदमताल

मुजफ्फरपुर, [प्रमोद कुमार]। लड़ाई-झगड़े, राजनीतिक वाद-विवाद, अनियमितताओं, घोटालों और आरोप-प्रत्यारोप के बीच नगर निगम के वर्तमान बोर्ड के दो साल बीत गए। इस अंतराल में निगम की सरकार विकास की राह पर दो कदम भी नहीं चल पाई। जिन उम्मीदों को लेकर शहरवासियों ने पार्षदों को चुनकर निगम में भेजा, वह पूरा नहीं हो पाया। विकास की जगह जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के बीच वर्चस्व व अधिकारों को लेकर टकराव होता रहा। मामला केस-मुकदमा तक भी पहुंचा।

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 आइएएस नगर आयुक्त के रहते भी न विकास कार्यों को गति मिल पाई और ना ही निगम की कार्य संस्कृति में बदलाव आया। सशक्त स्थायी समिति एवं बोर्ड की बैठकों में सिर्फ फैसले लिए जाते रहे। विकास की बड़ी-बड़ी घोषणाएं की जाती रहीं, लेकिन वे जमीन पर नहीं उतर पाईं। कुछ हुआ हो या नहीं, लेकिन निगम अनियमितताओं, घोटालों, लूट-खसोट एवं मनमानी की जांच में फंसा रहा। यह अलग बात है कि दो साल में एक की भी जांच रिपोर्ट सामने नहीं आ पाई। विकास की बात करें तो शहर की सड़कें और गलियां जरूर एलईडी लाइट से रोशन हुईं, लेकिन इसमें निगम का कम सरकार का योगदान अधिक रहा।

 सड़क एवं नाला निर्माण की कुछ योजनाओं पर टुकड़ों में काम हुआ। जलापूर्ति येाजनाओं के नाम पर सिर्फ सबमर्सिबल लगाए गए, लेकिन उससे लोगों के घरों तक पानी नहीं पहुंचा। सरकार ने नगर आयुक्त की मदद के लिए एक अपर नगर आयुक्त एवं तीन उपनगर आयुक्त भी निगम को दिए, बावजूद बीते दो साल में निगम की गाड़ी विकास की पटरी पर नहीं आ पाई। 

बोर्ड व समिति की बैठक बुलाने में बरती गई उदासीनता

सशक्त स्थायी समिति एवं निगम बोर्ड की बैठक के महत्व को निगम सरकार ने नहीं समझा। बैठक बुलाने में उदासीनता बरती गई। इतना ही नहीं, बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007 के प्रावधानों का उल्लंघन किया गया। दो साल में जहां सशक्त स्थायी समिति की 48 बैठकें होनी चाहिए थीं, वहां सिर्फ 14 हुईं। बोर्ड की बैठकें भी जहां 24 होनी चाहिए थीं, वहां सिर्फ 11 ही हो सकीं। अधिनियम में बोर्ड की बैठक हर माह एवं समिति की बैठक हर 15 दिन पर करने का प्रावधान है। जो बैठकें हुईं, उनमें भी विकास पर चर्चा कम, विवाद ज्यादा हुआ।

दो साल में हुईं निगम बोर्ड की बैठकें :

15 जुलाई 2017

16 अगस्त 2017

28 दिसंबर 2017

24 फरवरी 2018

28 अप्रैल 2018

02 जुलाई 2018

31 जुलाई 2018

08 सितंबर 2018

03 नवंबर 2018

21 जनवरी 2019

07 मार्च 2019

सशक्त स्थायी समिति की बैठकें

05 जुलाई 2017

28 अगस्त 2017

16 अक्टूबर 2017

24 दिसंबर 2017

29 जनवरी 2018

22 फरवरी 2018

28 मार्च 2018

30 जून 2018

05 सितंबर 2018

27 अक्टूबर 2018

22 नवंबर 2018

18 जनवरी 2019

02 मार्चा 2019

20 अप्रैल 2019

फैसले तो हुए पर अनुपालन नहीं

सशक्त स्थायी समिति हो या फिर निगम बोर्ड की बैठकें, कई फैसले हुए लेकिन उनका अनुपालन नहीं हुआ।

कुछ प्रमुख फैसले, जिनका दो साल में नहीं हुआ अनुपालन 

-पार्षदों के बैठने के लिए पार्षद कक्ष का निर्माण।

-मोतीझील ओवरब्रिज के नीचे सार्वजनिक शौचालय।

-आधुनिक सुविधाओं से लैस निगम का कार्यालय भवन का निर्माण।

-मिल्क पार्लरों से प्रतिमाह एक हजार रुपये शुल्क की वसूली।

-केबल ऑपरेटरों पर पांच लाख रुपये वार्षिक शुल्क की वसूली।

-स्कूल एवं कोचिंग को निगम शुल्क के दायरे में लाना।

-पानी का व्यवसाय करनेवालों के लिए लाइसेंस अनिवार्य करना।

-शहर के सभी मकानों का फिर से मूल्यांकन।

-निगम की खाली जमीन पर मॉल एवं मार्केट का निर्माण।

-शहर के सभी वार्डों में डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन।

-शहर को अतिक्रमण से मुक्त करना।

-मच्छरों के दंश एवं पशुओं की मार से शहरवासियों को मुक्ति दिलाना।

-शहर के पोखर एवं तालाबों का जीर्णोद्वार।

-शहर को खुले में शौच से मुक्ति दिलाना।

बेहतर नहीं हुई स्वच्छता सर्वेक्षण रैंकिंग

वर्तमान निगम बोर्ड के कार्यकाल में दो बार स्वच्छता सर्वेक्षण हुआ। निगम की निष्क्रियता के कारण रैंकिंग में सुधार नहीं हो पाया। वर्ष 2017 में शहर स्वच्छता रैंकिंग में देश भर के शहरों में 304 वें स्थान पर था। जबकि, वर्ष 2018 में 348वें तथा वर्ष 2019 में 387 वें स्थान पर रहा। राज्य स्तर पर रैंकिंग में भी शहर पिछड़ गया। इस वर्ष वह राज्य के शहरों में नौवें स्थान पर रहा।

इन कारणों से चर्चित रहा निगम 

-निगम बोर्ड की बैठक में उपमहापौर एवं नगर आयुक्त के बीच हुए टकराव और केस-मुकदमा।

-नगर आयुक्त के खिलाफ वार्ड पार्षदों का अनिश्चितकालीन अनशन।

-महापौर एवं नगर आयुक्त के बीच बात-बात पर टकराव।

-महापौर ने नगर आयुक्त के खिलाफ सरकार को लिखा एक दर्जन पत्र।

-निगम के कनीय अभियंता क्यामुद्दीन अंसारी को हटाने पर पार्षदों एवं महापौर में टकराव।

-निगम में हुए ऑटो टीपर घोटाले की निगरानी जांच।

-सबमर्सिबल पंप एवं पाइपलाइन विस्तार घोटाले की जांच।

-विभागीय कार्य को लेकर नगर आयुक्त एवं जनप्रतिनिधियों के बीच विवाद।

-महापौर, नगर आयुक्त एवं सशक्त स्थायी समिति के अधिकारों को लेकर टकराव।

-महापौर द्वारा नगर आयुक्त पर बार-बार लगाया गया अनदेखी का आरोप।

-महापौर की गाड़ी के भाड़ा भुगतान में कटौती को लेकर विवाद।

-नगर निगम के कर्मचारियों के तबादले को लेकर महापौर एवं नगर आयुक्त में विवाद।

काम नहीं आई नगर विकास मंत्री की क्लास

निगम में होनेवाले विवाद एवं टकराव को रोकने के लिए नगर विकास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा लगातार प्रयासरत रहे। उन्होंने निगम कर्मचारियों, अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों की कई बार क्लास लगाई और उन्हें समझाने का प्रयास किया। लेकिन, उनके क्लास का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। 

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