प्रमोद कुमार, मुजफ्फरपुर। मौसम में बदलाव के साथ शहर में मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है। मच्छरों के दंश से शहरवासियों का जीना मुहाल है। दिन हो या रात, मच्छर पांच लाख शहरवासियों का खून पी रहे हैं। उनसे मुक्ति दिलाने का जिम्मा नगर निगम पर है, लेकिन वह सालों से मच्छरों की जगह मक्खी मार रहा है। फागिंग के नाम पर मात्र खानापूर्ति कर रहा है।
हर चुनाव में मच्छरों से मुक्ति दिलाने का वादा कर कुर्सी पाने वाले पार्षद कुर्सी मिलते ही अपना वादा भूल जाते हैं। मच्छर उन्मूलन अभियान के लिए खरीदी गईं पांच फागिंग मशीनें सिर्फ लोगों को खुश करने के लिए हैं। ये मच्छरों के नियंत्रण में पूरी तरह विफल हैं। नालियों में दवा के छिड़काव को खरीदी गई स्प्रे मशीन भी अंचलों की शोभा बढ़ा रही हैं।
पांच फागिंग मशीनों के सहारे 49 वार्डों में दो-चार माह पर अभियान चलाया जाता है। शहरवासियों को मच्छरों के दंश से मुक्ति दिलाने का निगम के पास कोई भी एक्शन प्लान नहीं है। इसलिए नई नगर सरकार के सामने शहरवासियों को मच्छरों से मुक्ति दिलाने की चुनौती है। सिर्फ फागिंग कराने से मच्छरों से निजात नहीं मिलनी वाली। इसलिए नगर सरकार को योजना बनाकर अभियान चलाना होगा।
मच्छरों के दंश से बीमार हो रहे शहरवासी
शहर एवं उसके आसपास रहने वाले लोगों की नींद हराम हो चुकी है। पहले रात में मच्छरों का दंश झेलना पड़ता था, लेकिन अब दिन में भी चैन नहीं। वे न सिर्फ शहरवासियों की नींद उड़ा रहे हैं, बल्कि मलेरिया, कालाजार, डेंगू, जापानी इंसेफेलाइटिस जैसे संक्रामक रोगों का शिकार भी लोगों को बना रहे हैं। डा.संजय कुमार के अनुसार यदि मच्छरों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो लोगों को बीमार होने से नहीं बचाया जा सकता।
किसी काम की नहीं निगम की पांच फागिंग मशीनें
मच्छरों पर नियंत्रण के लिए निगम द्वारा अप्रैल 2016 में 30 लाख खर्च कर पांच आधुनिक मशीनें खरीदी गई थीं। स्टाक में इंट्री के बाद उनमें से दो लौटा दी गईं। मशीनों को ढोने के लिए तीन ई-रिक्शा भी खरीदे गए। एक साल तक मशीन बहनखाना की शोभा बढ़ाने के काम आईं। उन्हें जब सड़क पर उतरा गया तो वह मच्छरों को मारने में कारगर साबित नहीं हुईं और कबाड़ बनकर रह गईं। बाद में पांच मिनी मशीनों की खरीद की गई। इनकी मदद से यदा-कदा अभियान चलाया जाता है, लेकिन ये कारगर साबित नहीं हो रही हैं।
इलाज व वैकल्पिक उपायों पर कट रही जनता की जेब
मच्छरों के काटने से शहरवासी मलेरिया, डेंगू जैसी संक्रामक बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। कई जान तक गंवा रहे हैं। बीमार होने पर इलाज के लिए लोगों को बड़ी राशि खर्च करनी पड़ती है। वहीं, मच्छरों से बचने की वैकल्पिक व्यवस्था अर्थात साधनों पर भी जेब ढीली करनी पड़ती है। इससे निगम प्रशासन को कोई लेना-देना नहीं है। उसे तो बस जनता से टैक्स वसूली तक मतलब है। जनता बीमार हो या उसकी जान जाए, उसे कोई मतलब नहीं।
नई सरकार, चुनौतियां बरकरार
मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है। अब तक किया गया प्रयास नाकाफी रहा है। इस पर आगे सक्रियता से काम किया जाएगा। अधिकारियों से बातचीत कर विशेष अभियान चलाया जाएगा। - निर्मला देवी, महापौर