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बिहार विवि में वर्षों से चल रहा है 'मेधा घोटाला'

आंख मूंदकर उत्तर पुस्तिकाओं की जांच की खबर छपने पर कुलसचिव ने कहा, होगी विस्तृत जांच।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sun, 21 Oct 2018 11:52 PM (IST)Updated: Mon, 22 Oct 2018 10:00 AM (IST)
बिहार विवि में वर्षों से चल रहा है 'मेधा घोटाला'
बिहार विवि में वर्षों से चल रहा है 'मेधा घोटाला'

मुजफ्फरपुर (जेएनएन)। बिहार विद्यालय परीक्षा समिति में कई वर्षों से मेधा घोटाला होता रहा। विषय का नाम तक नहीं बताने वाली रूबी कुमारी टॉपर में शामिल थी। कुछ इसी तरह का खेल बीआरए बिहार विवि में भी चल रहा। उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन उत्तर पढ़कर नहीं बल्कि आंख मूंदकर की जा रही। इस तरह हो रहे मूल्यांकन कार्य का वीडियो भी सामने आया है। इसमें स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि कैसे परीक्षक बस कॉपियों पर सही का निशान लगाते जा रहे। इसके बाद अंतिम रूप से एक बार अंक चढ़ा दिया जा रहा। दैनिक जागरण द्वारा यह सच्चाई सामने लाने पर कुलसचिव अजय राय ने जांच कराने की बात कही है। वहीं विवि के प्रॉक्टर व मूल्यांकन निदेशक डॉ. विवेकानंद शुक्ला ने भी जांच कराए जाने की बात कही। मगर, पूर्व से होते आ रहे इस 'मेधा घोटालेÓ को दबाने के लिए कारगर कार्रवाई की जरूरत है। ताकि, आगे छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ नहीं हो सके। क्योंकि इससे पहले भी माक्र्स फाइल में व्हाइटनर लगाकर अंक बढ़ाने का मामला सामने आया था। इसमें राशि लेकर मनचाहा अंक देने की बात सामने आई थी। मगर, विवि के स्तर से इसपर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

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समन्वयक भी नहीं पकड़ते गलतियां

परीक्षक द्वारा जांची गई उत्तर पुस्तिकाओं पर निगरानी रखने के लिए एक समन्वयक को नियुक्त किया जाता है। उनकी जिम्मेदारी होती है कि उत्तर पुस्तिकाओं को सरसरी निगाहों से देख लें कि सबकुछ सही है या नहीं। लेकिन, आमतौर पर यह भी नहीं होता है। समन्वयक आमतौर पर कॉपियों की दोबारा जांच ही नहीं करते। अगर जांच भी करते तो महज खानापूरी के लिए।

कार्रवाई से बेपरवाह

चैलेंज मूल्यांकन में 80 प्रतिशत कमियां परीक्षक की सामने आ जाती हैं। लेकिन, विश्वविद्यालय की ओर से परीक्षक पर कोई कार्रवाई ही नहीं की जाती है। ऐसे में परीक्षकों को किसी भी तरह का डर नहीं होता और वे मनमाने तरीके से अपना काम जारी रखते हैं।


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