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सामूहिक विवाह से दहेज प्रथा के खिलाफ जंग, 35 वर्ष पहले शुरू किया गया था यह अभियान

गरीब कन्याओं की शादी कराने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं लोग बिहार के अलावा यूपी और नेपाल से भी शादी के लिए पहुंचते जोड़े पहले साल तीन जोड़ों की शादी हुई।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sat, 23 Feb 2019 10:54 AM (IST)Updated: Sat, 23 Feb 2019 10:54 AM (IST)
सामूहिक विवाह से दहेज प्रथा के खिलाफ जंग, 35 वर्ष पहले शुरू किया गया था यह अभियान

बगहा, [सुनील आनंद]। सामूहिक विवाह से दहेज पर चोट। यह अभियान चल रहा है बीते 35 साल से लगुनाहा गांव में। अब तक एक हजार से अधिक जोड़े सात जन्म के बंधन में बंध चुके हैं। हर साल श्रीराम विवाहोत्सव पर होने वाले इस आयोजन के दौरान लगुनाहा में अयोध्या और जनकपुर उतर आता है। इसी नाम से दो टोलों को आयोजन के लिए सजाया जाता है। परंपरागत रूप से होने वाले इस कार्यक्रम में बिहार के अलावा यूपी और नेपाल से भी शादी के लिए जोड़े पहुंचते हैं।

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    इस पर होने वाला खर्च जन सहयोग से जुटाया जाता है। बगहा एक प्रखंड की चौतरवा पंचायत के लगुनाहा गांव स्थित खाकी बाबा आश्रम ने वर्ष 1984 में निर्धन कन्याओं की शादी के लिए सामूहिक विवाह की शुरुआत की। श्रीराम विवाहोत्सव पर इसके आयोजन का निर्णय लिया गया। आश्रम समिति के तत्कालीन सदस्यों की पहल पर पहले साल कम ही लोग बेटियों की शादी इस आयोजन में कराने को राजी हुए। पहले साल तीन जोड़ों की शादी हुई। अब तो प्रतिवर्ष दर्जनों शादियां इस समारोह में होती हैं।

खर्च की नहीं करनी पड़ती चिंता

इसमें दहेज का लेन-देन नहीं होता। बेटी की शादी के लिए निर्धन पिता को सिर्फ योग्य वर खोजने की ङ्क्षचता रहती है। बारातियों के स्वागत-सत्कार से लेकर दुल्हन की शादी का जोड़ा और फर्नीचर आदि सामग्री आश्रम की तरफ से दी जाती है। तीन दिन तक होता है उत्सव लगुनहा गांव में श्रीराम-सीता विवाहोत्सव पर हर साल होने वाले आयोजन की तैयारी भव्य रूप से की जाती है।

    तीन दिनों का विशेष उत्सव होता है। इसमें लगुनाहा के एक टोले को अयोध्या तो दूसरे को जनकपुर नगरी के रूप में विकसित किया जाता है। बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश और नेपाल से हजारों लोग जुटते हैं। पिछले साल दिसंबर में हुए आयोजन में 25 जोड़ों की शादी कराई गई थी।

जनसहयोग से खर्च की व्यवस्था 

लगुनाहा खाकी बाबा आश्रम के अध्यक्ष सुनील कुमार बताते हैं कि दहेज प्रथा खत्म करने के लिए सामूहिक विवाह की शुरुआत पिता सत्यनारायण जायसवाल ने की थी। इलाके के साधन संपन्न लोग आर्थिक सहयोग देते हैं। उपहार के रूप में वह सभी सामग्री दी जाती, जो एक संपन्न परिवार बेटी की विदाई में देता है। जैसे आभूषण, बर्तन, कपड़ा, फर्नीचर आदि। अगले साल 51 जोड़ों की शादी कराने का लक्ष्य है।

    वे कहते हैं, पहले गरीब पिता भी सामूहिक विवाह में बेटी के हाथ पीले करने में हिचकते थे। अभियान का असर हुआ। लोग आगे आते हैं।बिहार बाल संरक्षण आयोग की सदस्य प्रेमा शाह ने कहा कि निर्धन परिवार की बेटियों की शादी कराने के प्रति लोगों में जागरूकता आई है। इस तरह के आयोजन से बिहार सरकार के बाल विवाह उन्मूलन एवं दहेजबंदी अभियान को बल मिल रहा है।


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