Move to Jagran APP

ब‍िहार के इस श्मशान में गाए जाते मंगल गीत, है न आश्चर्यजनक, आइये, जानेें कब से जारी है यह परंपरा

देश के लिए अनोखी है बिहार के दरभंगा राज परिवार की श्मशान भूमि जहां होती हैं शादियां।मिथिलांचल की हृदयस्थली दरभंगा में स्थापित माधेश्वर मंदिर परिसर और परिसर में स्थापित देवी श्यामा मंदिर समेत करीब सात मुख्य मंदिर लोगों के दामन में खुशियां भरने के लिए विख्यात हैं।

By Ajit kumarEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 02:44 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 08:00 AM (IST)
ब‍िहार के इस श्मशान में गाए जाते मंगल गीत, है न आश्चर्यजनक, आइये, जानेें कब से जारी है यह परंपरा
1970 के दशक के बाद से यहां शादियां हो रही हैं। फोटो : जागरण

दरभंगा [ संजय कुमार उपाध्याय]। दुनियाभर में प्रसिद्ध बिहार के दरभंगा राजघराने की श्मशान भूमि पर आने के साथ मन को शांति मिलती है। आदमी शांत चित से अराधना करने को आतुर हो जाता है। सिद्धि पाने की इच्छा होती है। मन यहीं रम जाने को कहता है। यात्री मन यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि श्मशान भूमि भी ऐसी होती है। कहने और सुनने में अटपटा जरूर है। लेकिन, मिथिलांचल की हृदयस्थली दरभंगा में स्थापित माधेश्वर मंदिर परिसर और परिसर में स्थापित देवी श्यामा मंदिर समेत करीब सात मुख्य मंदिर लोगों के दामन में खुशियां भरने के लिए विख्यात है। लोग इस परिसर को श्मशान से ज्यादा मंगल भूमि मानते हैं। वजह साफ है यहां आने पर श्मशान भूमि इतिहास के तौर पर मिलता है। यदि सामने और मन को शांति देती है तो माता श्यामा की दिव्य मूर्ति। 1970 के दशक के बाद से यहां शादियां हो रही हैं। 250 साल पुराने इतिहास को अपने दामन में समेटे यह पवित्र स्थान शांति और सिद्धि के लिए मानक था। लोग यहां शांति और सिद्धि की खोज में आते थे।

loksabha election banner

दरभंगा बनी खंडवाला राजवंश की राजधानी तभी बना मंदिर

राज परिवार के जानकार बिहार विधान परिषद के प्रशाखा पदाधिकारी रमण दत्त झा बताते हैं कि खंडवाला राजवंश के महाराज माधव सिंह ने जब अपनी राजधानी मधुबनी के भौरागढ़ी से दरभंगा में स्थापित की तभी मंदिर निर्माण की रूप-रेखा तय हो गई। उन्होंने अपने शासनकाल (1775-1807) में दरभंगा आने के साथ माधेश्वर मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर के अग्रभाग में एक तालाब की खोदाई कराई। बताते हैं- जबतक महाराज जीवित रहे, उनकी सुबह माधेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग के ध्यान और मंदिर की गुंबद पर लगे त्रिशूल के दर्शन से होती थी। उन्होंने जीवन पर्यंत महादेव की अराधना की। जीवन के अंतिम क्षणों में वे वाराणसी चले गए। वहां भी उन्होंने महादेव का एक मंदिर बनवाया था। वहीं पर उन्होंने अपने शरीर का त्याग किया। उनके उतराधिकारी ने उनकी चिता की थोड़ी राख माधेश्वर मंदिर के सामने रखवाई।

चिता की राख पर बना पहला रूद्रेश्वरी काली मंदिर

दरभंगा के महाराज रूद्र सिंह का जब निधन हुआ तो उनके उत्तराधिकारी महाराज महेश्वर सिंह ने अपने पिता की चिता भूमि पर रूद्रेश्वरी काली मंदिर की स्थापना कराई। तभी से यह भूमि दरभंगा राज परिवार की श्मशान भूमि हो गई। इसके बाद से इसी भूमि पर दरभंगा राज परिवार के लोगों की अंत्येष्टि होने लगी।

उतराधिकारियों ने लगातार मंदिर बनवाए

रुद्रेश्वरी काली मंदिर निर्माण के बाद से जब भी राज परिवार में किसी का निधन हुआ तो उनके उतराधिकारियों ने लगातार मंदिर बनवाए। महाराज क्षत्र सिंह ने महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह की याद में उनकी चिता पर बनवाया लक्ष्मीश्वर तारा मंदिर। जब दरभंगा के तत्कालीन महाराज रामेश्वर सिंह का निधन हुआ तो दरभंगा के अंतिम महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह अपने पिता की चिता भूमि पर श्यामा मंदिर का निर्माण कराया। राजमाता धनवंती देवी की चिता भूमि पर अन्नपूर्णा मंदिर की स्थापना हुई। इसके बाद दरभंगा के अंतिम महाराज कामेश्वर सिंह के निधन के पश्चात उनकी धर्मपत्नी बड़ी महारानी राजलक्ष्मी ने कामेश्वरी श्यामा मंदिर का निर्माण कराया। इसके निर्माण में उन्होंने अपने आभूषणों की भी आहुति दी।

तंत्र में महाराज रामेश्वर सिंह को थी सिद्धि

इस परिसर का सबसे चर्चित मंदिर तंत्र साधना के महारथी रामेश्वर सिंह की चिता पर उनके पुत्र महाराज कामेश्वर सिंह ने 1933 में लाल पत्थर से बनवाई। नाम है श्यामा मंदिर। यहां देवी श्यामा की विशाल प्रतिमा राजनगर के काली मंदिर के अलावा देश में शायद कहीं देखने को मिले। दावा यह किया जाता रहा है कि ऐसी प्रतिमा देश में नहीं है। मंदिर रुद्रेश्वरी काली मंदिर के ठीक सामने तालाब के दूसरे किनारे पर पूर्वमुखी है जिसके आगे विशाल घंटा घर है। देवी की प्रतिमा दिव्यता की बखान करते लोग नहीं अघाते। माता की दाहिनी ओर महाकाल तथा बाईं तरफ गणपति विराजमान हैं. इसके अलावा मंदिर में बटुक भैरव की प्रतिमा भी स्थापित है। मां के गले में मुंड के साथ-साथ उसमें देवनागरी वर्णमाला अक्षरों के बराबर मुंड हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि देवनागरी वर्ण माला सृष्टि का प्रतीक है। चार हाथों से सुशोभित मां काली की इस भव्य प्रतिमा में मां के बायीं ओर के एक हाथ में खड्ग, दूसरे में मुंड तो वहीं दाहिनी ओर वह दोनों हाथों से अपने पुत्रों को आशीर्वाद वरदान देने की मुद्रा में विराजमान हैं. ऐसे में यह अत्यंत शुभकारी है।

परिसर से खाली हाथ नहीं लौटता कोई

इस परिसर में स्थापित सभी मंदिरों की वास्तु कला अपने आप में अनोखी है। इस परिसर से कोई अबतक खाली हात नहीं लौटा। दरभंगा कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र विभाग के अध्यक्ष सह श्यामा मंदिर न्यास समिति के सह सचिव श्रीपति त्रिपाठी बताते हैं- तांत्रिक पूजा पद्धति में श्मशान भूमि सिद्ध भूमि मानी गई है। यहां लोग सिद्धि प्राप्त करते हैं। यहां होनेवाले सभी मांगलिक आयोजन सफल होते हैं। यहां होनेवाली शादियां सफल होती हैं। सो, यह परिसर लोगों के लिए श्रद्धा का केंद्र रहा है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.