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बचपन में ही मिली थी सेवा की सीख, बड़े होने पर समझ में आई इसकी सार्थकता

जुबानों की आवाज बनने को होम कर दी जिंदगी, 1974 के जेपी आंदोलन से लेकर अब तक महिलाओं की आवाज बन कर रहीं काम।

By Ajit KumarEdited By: Published: Wed, 23 Jan 2019 02:14 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jan 2019 03:00 PM (IST)
बचपन में ही मिली थी सेवा की सीख, बड़े होने पर समझ में आई इसकी सार्थकता
बचपन में ही मिली थी सेवा की सीख, बड़े होने पर समझ में आई इसकी सार्थकता

मोतिहारी, [संजय कुमार उपाध्याया]। सेवा की सीख मोतिहारी के मिस्कॉट मोहल्ला निवासी ममता रानी वर्मा को बचपन में ही मिली थी, लेकिन इसकी सार्थकता बड़े होने के बाद समझ में आई। विशेषकर, बेजुबानों की आवाज बनने के बाद। चाहत पूरी होने के बाद उनके चेहरे पर मौजूद संतुष्टि का भाव उन्हें स्वर्गिक सुख देने लगा। 1997 में लॉ की पढ़ाई पूरी होने के बाद अभिव्यक्ति की इस लड़ाई को और आगे बढ़ाने का एक हथियार हाथ लग गया। उसके बाद से यह क्रम अब तक जारी है।

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ममता रानी ने अक्टूबर 1999 में मोतिहारी सिविल कोर्ट में अधिवक्ता के तौर पर काम शुरू किया। इस तरह पीडि़तों की मदद के लिए अपेक्षाकृत बड़ा मंच मिल गया। अब तक करीब दो दर्जन से अधिक ऐसी महिलाओं और युवतियों को इंसाफ दिलाने में वे कामयाब रहीं जो अपनी परेशानी किसी को सही-सही बता नहीं पाती थीं। जिन्हें अपनी बात को सही ढंग से रखने का तरीका नहीं पता। जिनकी जुबान कोई बनने को तैयार नहीं।

        जिले के ही ढाका में सालों एक घर में कैद रही 'सिमरन ' के अधिकारों के लिए आंदोलन किया। उसका इलाज हुआ और फिर बयान कराने में ममता कामयाब रहीं। जिसके बाद उसे न्याय मिल सका। रामगढ़वा प्रखंड की एक लड़की के साथ उसके ग्रामीण ने अमानवीय कृत्य किया। जब उसकी आवाज दबाई जाने लगी तो को फिर उन्होंने आंदोलन का सहारा लिया। पीडि़ता की आवाज प्रदेश स्तर तक पहुंचाई। राजधानी पटना से जांच के लिए महिला आयोग की विशेष टीम आई और पीडि़ता को इंसाफ दिलाने का रास्ता साफ हुआ। 

न्यायिक प्रक्रिया को करना होगा और सख्त

ममता रानी स्थानीय स्तर पर कई आंदोलन व सामाजिक कार्यों का हिस्सा रहीं। सबसे अहम रहा 1974 का जेपी मूवमेंट। इन्होंने इस आंदोलन में अहम योगदान दिया था। इसके बाद से लगातार समाजिक रूप से सक्रिय हैं। 1982 में महिलाओं की एक टोली तैयार की। नाम दिया चैतन्य नारी समिति। समिति की महिलाएं आपस में चंदा जुटाती थीं और वैसी महिलाओं को सबल बनने के लिए धन देती थीं जो अपने अधिकार को समझे और खुद के व्यापार को आगे बढ़ाए।

    इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि सिर्फ अभिव्यक्ति का अधिकार दे देने से सामाजिक सिस्टम में बदलाव नहीं आएगा। इसके लिए न्यायिक प्रक्रिया को सख्त करना होगा और आर्थिक स्तर ऊंचा करना होगा।

परिवार व कार्य में रखा सामंजस्य

ममता बताती हैं कि अपने सामाजिक आंदोलन के दौरान परिवार व समाज के बीच सामंजस्य कायम करना चुनौतीपूर्ण था, लेकिन इसको किया। पहले पुत्र अभिनव नवनीत, पुत्री डॉ. अभिव्यक्ति नवगीत और पुत्र आकर्षण आदित्य को उनके इच्छित मुकाम तक पहुंचने में मदद की। अभिनव फिलहाल लेफ्टिनेंट कर्नल हैं।

    पुत्री फिजियोथेरेपिस्ट हैं और छोटे पुत्र आकर्षण सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं। उन्होंने कहा कि बेजुबानों की आवाज बनने के लिए ताउम्र काम करूंगी। उन पीडि़तों की जुबान बनूंगी, जो अपनी पीड़ा तक बता पाने में अक्षम हैं। 


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