चंपारण से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दुनिया को दिया था सत्याग्रह का 'महामंत्र', जानें कैसे की शुरुआत East champaran News
जब दुनिया विश्वयुद्ध में उलझी थी तब गांधीजी कर रहे थे अहिंसा परमो धर्म जैसे शांति सूत्र का प्रचार। कहा- हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं।
पूर्वी चंपारण, जेएनएन। चंपारण में मोहनदास करमचंद गांधी ने बिना हिंसा अंग्रेजों को झुकाकर दुनिया को सत्याग्रह का 'महामंत्र' दिया। इसके बल पर उन्होंने अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंका। वह प्रथम विश्व युद्ध का दौर था, जब पूरी दुनिया में हिंसा और घृणा का बोलबाला था।
कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड से उनकी शुरू हुई विदेश यात्रा दक्षिण अफ्रीका ले गई। वहां नस्लभेद के शिकार हुए। अंग्रेज अधिकारी ने उन्हें ट्रेन के डिब्बे से उठाकर बाहर फेंक दिया था। उसी अंग्रेजी सत्ता को उन्होंने बिना किसी युद्ध व हिंसा के देश से उखाड़ फेंका। इसके लिए उन्होंने चंपारण को सत्याग्रह की भूमि के रूप में चुना।
15 अप्रैल 1917 को गांधीजी चंपारण आए थे। इससे पहले तक वे इस जगह के बारे में बहुत जानते नहीं थे। इससे पहले अफ्रीका से वापस आने पर देशभर में घूमे। इस दौरान वह जान गए थेकि लोगों की मन:स्थिति बदल चुकी है। उन्होंने लोगों को मंत्र दिया कि लड़ाई न अधूरी होती है और न अधूरेमन से लड़ी जाती है।
शहर के गांधीवादी विचारक प्रो. चंद्रभूषण पांडेय कहते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भी गांधीजी ने अहिंसा की आवाज बुलंद की थी। इसी प्रकार 1939 से 1945 तक चलने वाले द्वितीय विश्व युद्ध की भीषण हिंसा के समय भी वे अहिंसा परमो धर्म: जैसे शांति सूत्र का प्रचार व प्रसार करते दिखाई दिए। वे भली-भांति समझ चुके थे कि हिंसा की बात किसी भी स्तर पर क्यों न की जाए, यह किसी भी समस्या का संपूर्ण एवं स्थायी समाधान नहीं है।
हथियार के विरुद्ध विचारों का प्रयोग
पू्र्व मंत्री व गांधी संग्रहालय के सचिव ब्रजकिशोर सिंह कहते हैं कि गांधीजी हथियार के विरुद्ध विचारों का प्रयोग करने की बात कहते थे। उन्होंने अन्याय व असमानता के विरुद्ध युद्ध करने का एक ऐसा तरीका समाज को दिया, जिसमें किसी को अपना दुश्मन बनाने की जरूरत नहीं पड़ती थी और न ही हथियार उठाने की आवश्यकता थी। वे समाज को अपने विचारों से सहमत करने तथा उसका हृदय परिवर्तन करने में विश्वास रखते थे।