देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा की पूजा आज
¨हदू धर्म में बाबा विश्वकर्मा को निर्माण व सृजन का देवता माना गया है।
मुजफ्फरपुर। ¨हदू धर्म में बाबा विश्वकर्मा को निर्माण व सृजन का देवता माना गया है। कहते हैं कि पूरी दुनिया का ढाचा उन्होंने ही तैयार किया है। वे जन कल्याणकारी हैं। वे हस्तलिपि के देवता थे, जिन्होंने मनुष्य को सभी कलाओं का ज्ञान दिया है। देश में उन्हें साधन, औजार, युक्ति और निर्माण के देवता के रूप में पूजा जाता है। देश में शिल्प संकायों, कारखानों और उद्योगों में हर साल 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा का पूजनोत्सव होता है।
बाबा गरीबनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी पं.विनय पाठक बताते हैं कि भगवान विश्वकर्मा के पूजन की गाथा वेद व उपनिषदों में भी है। इनकी पूजा हर किसी को करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी कर्म सृजनात्मक हैं, उन सभी के मूल में विश्वकर्मा हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को उनका पूजन करना चाहिए। हरिसभा चौक स्थित राधाकृष्ण मंदिर के पुजारी पं.रवि झा बताते हैं कि आदि काल से ही बाबा विश्वकर्मा अपने विशिष्ट ज्ञान व विज्ञान के कारण न केवल मानव अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदित हैं। वे सृष्टि के प्रथम सूत्रधार कहे गए हैं। विष्णु पुराण में उन्हें शिल्पावतार बताया गया है।
ऐसे करें पूजन
पूजा मुहूर्त :: पंडितों के मुताबिक, इस साल वृश्चिक लग्न जो कि सुबह 10:17 से दोपहर 12:34 बजे तक है, यह मुहूर्त विशेष लाभकारी और फलदायी है। इस मुहूर्त में मंगल पराक्रम भाव में उच्च पर बैठा है। इस समय विधि-विधान से भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना विशेष फलदायी होगा।
विधि :
देवशिल्पी विश्वकर्मा की पूजा और यज्ञ विशेष विधि-विधान से बताया गया है। पूजा के दौरान यज्ञकर्ता पत्नी सहित पूजा स्थान में बैठें। विष्णु भगवान का ध्यान करें। तत्पश्चात् हाथ में पुष्प व अक्षत लेकर मंत्र पढ़ें और चारों ओर अक्षत छिड़कें। अपने हाथ में रक्षासूत्र बांधें व पत्नी को भी बांधें। पुष्प जलपात्र में छोड़ें। इसके बाद हृदय में भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें। दीप जलाएं और जल के साथ पुष्प व सुपारी लेकर संकल्प करें। शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाएं। उस पर जल डालें। इसके बाद पंचपल्लव, सप्त मृतिका, सुपारी व दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश की तरफ अक्षत चढ़ाएं। चावल से भरा पात्र समर्पित कर विश्वकर्मा बाबा की मूर्ति स्थापित करें और वरुण देव का आह्वान करें। पुष्प चढ़ाकर प्रार्थना करें - 'हे बाबा विश्वकर्मा, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए।' इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्र आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करें।