शराबबंदी के बाद बदल गई गांव की तस्वीर, पहले खुलेआम चलता था देशी शराब का धंधा
पिपरासी के इस गांव की महिलाओं ने शराबबंदी को दिया समर्थन विकास की राह पर लौटा गांव मेहनत के बल पर परिवार की गाड़ी खींच रहे लोग शराबबंदी से काफी खुश हैं।
बगहा, जेएनएन। सूबे में पूर्ण शराबबंदी के बाद गंडक पार के पिपरासी प्रखंड के एक गांव की तस्वीर बिल्कुल बदल गई है। पिपरासी के मंझरिया पंचायत का बहरी स्थान गांव कभी शराब के अवैध धंधे के लिए बदनाम था। महिलाएं शराब बनाकर रोजी का जुगाड़ करती थीं। पुरुष परदेश में काम करने को विवश थे। लेकिन अब यहां शराब नहीं बनती। महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत पहले लोगों को रोजगार मिलता था, अब स्वरोजगार से आर्थिक समृद्धि आई है।
मेहनत मजदूरी के बल पर परिवार की गाड़ी खींच रहे लोग शराबबंदी से काफी खुश हैं। पहले जो पुरुष शराब के नशे में धुत्त रहते थे, वे अब खेती किसानी कर परिवार के खेवनहार बने हैं। गांव के चंद्रभानु कुशवाहा, पूर्व उपप्रमुख अहिल्या देवी, उमेश कुशवाहा, दिनेश गुप्ता आदि बताते हैं कि शराबबंदी के पूर्व गांव के 90 फीसदी परिवार शराब के अवैध धंधे में संलिप्त थे। पुलिस और उत्पाद विभाग की कार्रवाई के बावजूद यह धंधा बंद नहीं हुआ।
इस गांव से होकर गुजरने वाले शक के दायरे में आ जाते थे। शराब पीने से वर्षो पूर्व कुछ लोगों की मौत भी हुई। पर, कारोबारियों पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। इस बीच सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने शराबबंदी की घोषणा की। इसके बाद पुलिस सख्त हुई और महिलाओं ने शराबबंदी के महत्व को समझा। तो सबकुछ बदलता गया। परदेश में रहने वाले युवक घर लौट आए। महिलाओं ने शराब बनाने का धंधा छोड़ स्वरोजगार की दिशा में प्रयास शुरू किए।
स्वयं सहायता समूहों ने महिलाओं की मदद की। अब गांव में खुशहाली है। खेत लहलहा रहे हैं। बच्चे स्कूल जा रहे हैं। माहौल बिल्कुल बदल गया है। शराबबंदी का असर देखना हो तो यहां आइए...। मुखिया छोटेलाल प्रसाद ने कहा कि यहां पूर्व में शराब बनती थी। अब तस्वीर बदल गई है। विकास कार्यो में महिलाएं साथ दे रही हैं।
घर-घर शौचालय बन चुके हैं। लोगों को रोजगार मुहैया कराने का प्रयास किया जा रहा है। पिपरासी थानाध्यक्ष संजय कुमार यादव ने कहा कि पुलिस सख्त है, लोगों में भी जागरूकता आई है। बहरी स्थान गांव के लोगों ने शराब के धंधे से नाता तोड़कर मिसाल पेश की है।