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जमीन तिरहुत नहर की, बन गए इंदिरा आवास व आगनबाड़ी केंद्र

करीब पाच दशक पहले तैयार तिरहुत मुख्य नहर की रूपरेखा विभागीय लापरवाही उदासीनता और अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई।

By JagranEdited By: Published: Wed, 29 Sep 2021 02:21 AM (IST)Updated: Wed, 29 Sep 2021 02:21 AM (IST)
जमीन तिरहुत नहर की, बन गए इंदिरा आवास व आगनबाड़ी केंद्र

मुजफ्फरपुर : करीब पाच दशक पहले तैयार तिरहुत मुख्य नहर की रूपरेखा विभागीय लापरवाही, उदासीनता और अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई। नहर का निर्माण मुरौल और सकरा अंचल में बाधित हो गया है। अधिग्रहित जमीन पर सैकड़ों परिवारों ने घर बना लिया है। इनमें इंदिरा आवास से बने मकान भी हैं। मुरौल की मीरापुर पंचायत में ही करीब 300 इंदिरा आवास हैं। इस जमीन पर आगनबाड़ी केंद्र भी चल रहे हैं। नहर का काम बाधित होने से रतवारा नहर प्रमंडल के अधीक्षण अभियंता ने डीएम प्रणव कुमार को पत्र लिखकर पूरी जानकारी दी है।

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1974 में हुआ था जमीन का अधिग्रहण : पश्चिम चंपारण के वाल्मीकिनगर से मुजफ्फरपुर के महमदपुर गोखुल तक 241 किमी तिरहुत नहर का निर्माण हो चुका है। दूसरे चरण में महदमपुर गोखुल से समस्तीपुर के दलसिंहसराय तक निर्माण बाकी है। वर्ष 1974 में नहर के लिए जमीन का अधिग्रहण तो किया गया, मगर वर्षो तक काम नहीं होने से लोगों ने अतिक्रमण शुरू कर दिया। स्थिति यह हो गई कि जमीन की खरीद-बिक्री और जमाबंदी भी कई स्तर तक हो गई। जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव द्वारा जनवरी में निरीक्षण के बाद हलचल शुरू हुई। प्रशासनिक दबिश बढ़ने पर करीब चार दर्जन परिवार ने इंदिरा आवास हटाने पर आत्मदाह तक की चेतावनी दे रखी है।

इन गावों से हटाया जाना है अतिक्रमण : मुरौल के मीरापुर उर्फ गोपालपुर मुरौल, सादिकपुर मुरौल, हरसिंगपुर लौतन, इटहा रसूल नगर और मालपुर अंगरेल। सकरा के मालपुर चक हजरत एवं दुबहा बुजुर्ग।

भूमि अधिग्रहण कानून का दिया जा रहा हवाला : जमीन पर निर्माण करने वालों की ओर से वर्ष 2013 में पारित भू-अधिग्रहण कानून का हवाला दिया जा रहा है। उनका कहना है कि अगर अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू करने के पाच साल के अंदर सरकार जमीन पर कब्जा नहीं लेती। साथ ही, मुआवजा नहीं देती तो अधिग्रहण रद माना जाएगा। किसान नेता वीरेंद्र राय का कहना है कि जब जमीन का अधिग्रहण हुआ, तब 200 रुपये कट्ठा कीमत थी। आज यह 10 से 15 लाख रुपये हो गई है। इधर, जिला भू-अर्जन पदाधिकारी मो. उमैर की मानें तो जब किसी जमीन के अधिग्रहण का नोटिफिकेशन हो जाता है तो वह संबंधित विभाग की मानी जाती है। वहां किसी तरह का निर्माण या अन्य कार्य भू-धारी को नहीं करना चाहिए।

इन स्तरों पर चूक से उठ रहे सवाल

- जमीन अधिग्रहण हुए 47 वर्ष बीत गए। विभाग ने अधिग्रहित जमीन का म्यूटेशन अपने नाम नहीं कराया।

- जमीन पर पक्का निर्माण होते रहे और विभाग के पदाधिकारी व कर्मचारियों ने संज्ञान नहीं लिया।

- भूमिहीनों को इंदिरा आवास दिए जाने से पहले भूमि का स्थानातरण किया जाता है। यहा सवाल उठ रहा कि नहर के लिए अधिग्रहित जमीन को इसका एनओसी किस स्तर से दिया गया।

- अधिग्रहित जमीन पर आगनबाड़ी केंद्र के संचालन की स्वीकृति किस स्तर से दी गई।

- नहर की जमीन की जमाबंदी भी दूसरे के नाम से कायम हो गई। निबंधन कार्यालय से लेकर अंचल कार्यालय ने कभी रोक क्यों नहीं लगाई?


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