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जानें ऐसा क्या हुआ कि University के Professors को भी 'मिड-डे मील' की मांग करनी पड़ रही

Bihar University 10 से पांच बजे तक की ड्यूटी की अनिवार्यता के फैसले से कॉलेज से लेकर विश्वविद्यालय शिक्षकों में हाय-तौबा। विवि से कॉलेज तक में कैंटीन नहीं लंच ब्रेक भी नहीं।

By Ajit KumarEdited By: Published: Thu, 14 Nov 2019 02:19 PM (IST)Updated: Thu, 14 Nov 2019 02:19 PM (IST)
जानें ऐसा क्या हुआ कि University के Professors को भी 'मिड-डे मील' की मांग करनी पड़ रही
जानें ऐसा क्या हुआ कि University के Professors को भी 'मिड-डे मील' की मांग करनी पड़ रही

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। कॉलेज से विश्वविद्यालय तक के शिक्षकों से दस से पांच बजे तक यानी सात घंटे डयूटी लेने की अनिवार्यता के बाद हंगामा बरपा हुआ है। पीजी टीचर्स एसोसिएशन ने गुरुवार को इस सिलसिले में शिक्षकों की बैठक बुलाई है। विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग में यह बैठक होगी जिसमें विचार-विमर्श और अगली रणनीति फैसला लिया जाएगा। इस फैसले को लेकर शिक्षकों में अलग-अलग राय है।

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कुछ शिक्षक जहां ये कह रहे हैं उन्हें सात घंटे ड्यूटी से गुरेज नहीं है, मगर छात्र-छात्राओं के लिए भी अनिवार्यता लागू हो। जबकि, कुछ शिक्षक ऐसे भी हैं जिनका कहना है कि इतने घंटे क्लास या विभाग में डटे रहने के लिए मिड-डे मील (दोपहर का खाना) का इंतजाम करने की मांग कर रहे हैं।

 एलएस कॉलेज के प्राचार्य प्रो. ओमप्रकाश राय से एक शिक्षक ने ऐसी ही मांग रखी। दूसरे शिक्षकों ने सुर मे सुर मिलाया। इधर, रसायन विभागाध्यक्ष प्रो. शशि कुमारी सिंह ने पूछे जाने पर कहा कि ड्यूटी पूराने के लिए सात घंटे बैठे रहने का कोई तूक नहीं है। अभी तक 10 से चार बजे तक ही क्लास होती है। खाने-पीने के लिए लंच ब्रेक तो चाहिए ही। टिफिन आवर पहले होता था। कैंटीन भी होती थी। मगर, आज किसी भी कॉलेज में ये नहीं है। क्लास आवर में एक दो घंटी लीजर रहने पर शिक्षक लंच कर लेते थे।

ड्यूटी को लेकर ऊहापोह में शिक्षक

पीजी टीचर्स एसोसिएशन के महासचिव डॉ. विपिन कुमार राय का कहना है कि सात घंटे ड्यूटी की अनिवार्यता को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां उत्पन्न हो रही हैं। शिक्षक लगातार पूछताछ कर रहे हैं। लिहाजा, आमसभा बुलाकर उसमें विचार-विमर्श किया जाना है।

प्रो. शशि कुमार सिंह का कहना है कि पहले दो पीरियड ट््यूटोरियल क्लास भी होती थी। जिसमें विद्यार्थियों को अगर कुछ नहीं समझ में आ रहा तो वो शिक्षकों से पूछा करते थे। दो-तीन क्वेश्चन इतने समय में विद्यार्थी शिक्षकों से पूछकर हल कर लिया करते थे। वो परंपरा नहीं रही। शिक्षकों के लिए अगर सात घंटे की अनिवार्यता लागू होती है, तो विद्यार्थियों पर भी सख्ती बरती जाए कि वे क्लास में उपस्थित रहें। तभी शिक्षकों के होने का कोई मतलब होगा। छात्रों की उपस्थिति कम होने पर उनको फॉर्म भरने से रोका जाए।

लैब पर ध्यान नहीं

प्रयोगशाला के लिए डेमोस्ट्रेटर हुआ करते थे मगर ये पोस्ट खत्म होने के बिना प्रैक्टिकल विद्यार्थी परीक्षा पास कर रहे हैं। बिना डेमोस्ट्रेटर व लैब टेक्नीशियन के लैब कैसे चलेगा। इसपर भी ध्यान देने की जरूरत है। 


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