Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कर्पूरी देवी: मधुबनी पेंटिंग काे दी अंतर्राष्‍ट्रीय पहचान, सात दशक की कला यात्रा पर लगा विराम

    By Amit AlokEdited By:
    Updated: Wed, 31 Jul 2019 09:57 PM (IST)

    कर्पूरी देवी अब नहीं रहीं। उन्‍होंने मधुबनी पेंटिंग को खास पहचान दी। उनकी कला ने सीमाओं के पार दूर-दूर तक परचम लहराया। तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उनकी मुरीद रहीं।

    कर्पूरी देवी: मधुबनी पेंटिंग काे दी अंतर्राष्‍ट्रीय पहचान, सात दशक की कला यात्रा पर लगा विराम

    पटना/ मधुबनी [जागरण स्‍पेशल]। मधुबनी पेंटिंग और सुजनी कला को दुनिया के मानचित्र पर स्थापित करने वाली कर्पूरी देवी अब नहीं रहीं। मंगलवार तड़के 90 वर्ष की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली। बुधवार को वे पंचतत्व में विलीन हो गईं। लेकिन सात दशक की उनकी कला यात्रा अमर रहेगी। मधुबनी पेंटिंग में कचनी और भरनी, दोनों शैलियों का मिश्रण उनकी कला की विशेषता रही।
    बचपन में मां से मिला कला का हुनर
    केवल सातवीं कक्षा तक पढ़ी-लिखी कर्पूरी देवी का जन्म 28 अप्रैल 1929 को मधुबनी के बेनीपट्टी स्थित पंडौल गांव में हुआ था। वे अपने पीछे एक पुत्र और एक पुत्री सहित भरा-पूरा परिवार छोड़ गयी हैं। बच्‍ची थीं तो मां से आंगन में अरिपन बनाना और गोबर लिपे मिट्टी के भीत पर पारंपरिक कृतियाें को बनाना सीखा था। मां ने ही मधुबनी पेंटिंग की बारीकियों से अवगत कराया।
    परंपरागत समाज से निकल बनाई पहचान
    यहीं से फूटी कर्पूरी देवी की कला ने आगे देश-विदेश तक धूम मचा दी। उनकी यह उपलब्धि इसलिए भी खास है कि उन्‍होंने उस समाज से निकलकर दुनिया में अपनी पहचान बनाई, जहां बहू-बेटियां घूंघट में कैद रहकर जीवन गुजार देतीं हैं। उन्होंने इस मिथक को तोड़कर मिथिलांचल की बेटियों के लिए रास्‍ता दिखाया।
    मिले कई पुरस्‍कार, इंदिरा गांधी ने भी सराहा
    कर्पूरी देवी को केंद्र के कपड़ा मंत्रालय ने 1986 में सुजनी कला के लिए राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार दिया। इसके पहले 1980-81 में बिहार सरकार ने उन्‍हें श्रेष्ठ शिल्पी का राज्य पुरस्कार प्रदान किया था। 1983 में बिहार सरकार ने उन्हें श्रेष्ठ शिल्पी के रूप में ताम्रपत्र और मेडल से नवाजा था। साल 1986 में भारत सरकार से उन्होंने प्रतिभा प्रमाण पत्र दिया। इसके अलावा भी उन्हें दर्जनों पुरस्कार व सम्मान पत्र आदि हासिल थे। बिहार व केंद्र सरकारों के अलावा उन्‍हें कई अन्‍य राज्यों ने भी पुरस्कारों से नवाजा।
    कर्पूरी देवी की कला की मुरीद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी थीं। परिजनों ने 1969 में उनकी इंदिरा गांधी से मुलाकात की तस्वीर को संभालकर रखा है।

    सीमाओं के पार दूर-दूर तक लहराया परचम
    कर्पूरी की कला ने देश की सीमाओं को पार कर दूर-दूर तक अपना परचम लहराया। जापान के हासीगावा स्थित मिथिला संग्राहलय में उनकी बनाई कई पेंटिंग्‍स आकर्षण के केंद्र हैं। दरअसल, जापान से उनका विशेष लगाव था। 1988 में पहली बार वे जापान में हासीगावा के मिथिला संग्राहलय के उद्घाटन समारोह की मुख्य अतिथि थीं। तब वे अपनी जेठानी व मधुबनी पेंटिंग की एक अन्‍य महान कलाकार महासुंदरी देवी के साथ वहां महीनों तक रहीं थीं। कर्पूरी देवी जापान के अलावा अमेरिका व यूरोप के कई देशों में गईं तथा वहां मधुबनी पेंटिंग को लोकप्रिय बनाया। कहना न होगा कि उनके प्रशंसक आज  दुनियाभर में फैले हैं।
    जमीन से जुड़ा सरल स्‍वभाव, सादगी रही पहचान 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कर्पूरी देवी की सफलता के पीछे उनका लंबा संघर्ष रहा। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ मजबूती से खड़ी हुईं, लेकिन अपना संस्कार नहीं भूलीं। सफलता के बावजूद सरल स्‍वभाव की कर्पूरी देवी जमीन से जुड़ी रहीं। सादगी उनकी पहचान रही। भतीजे विमल लाल दास और धीरेन्द्र लाल दास के अनुसार वे सरल स्‍वभाव की थीं। बच्चों से उन्‍हें विशेष लगाव था। भतीजे नवीन कुमार दास व प्रवीण कुमार दास के अनुसार वे बेहद उदार थीं।
    लंबी बीमारी के बाद ली अंतिम सांस
    अपनी कला से पूरी दुनिया में धूम मचाने वाली कर्पूरी देवी लंबे समय से बीमार चल रहीं थीं। करीब छह साल से हृदय रोग से पीडि़त थीं। डेढ़ माह पूर्व उनकी हालत बिगड़ी तो कोमा में चली गईं। फिर मंगलवार को उन्‍होंने अंतिम सांस ली। इसके बाद बुधवार को रांटी गांव में ही उनका अंतिम संस्‍कार किया गया। मुखाग्नि दिल्ली से पहुंचे इकलौते पुत्र आइएएस अफसर विनय भूषण ने दी।

    कला यात्रा समाप्‍त पर छोड़ गईं विरासत
    कर्पूरी देवी की मौत के साथ सात दशक की उनकी कला यात्रा समाप्‍त हो गई। रांटी निवासी शिक्षक कृष्णकांत दास से विवाह के बाद जेठानी महासुंदरी देवी के साथ उन्‍होंने मधुबनी पेंटिंग को जो मुकाम दिया, वह अब सिर्फ यादों में ही रहेगा। हालांकि, वे अपनी शिष्या दुलारी देवी सहित कइयों में अपनी कला की विरासत छोड़ गईं हैं। उनकी बेटी मोती कर्ण भी इस कला में राष्‍ट्रीय पहचान बना चुकीं हैं।

    अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप