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..ये वक्त है साहब, बदलता जरूर है

लॉकडाउन के चलते महानगरों में फंसे प्रवासियों की घर वापसी का सिलसिला जारी है। इसी क्रम में शुक्रवार को भी दिल्ली व मुंबई से सैकड़ों प्रवासी विशेष श्रमिक ट्रेनों से मुजफ्फरपुर जंक्शन पहुंचे।

By JagranEdited By: Published: Sat, 30 May 2020 02:08 AM (IST)Updated: Sat, 30 May 2020 02:08 AM (IST)
..ये वक्त है साहब, बदलता जरूर है
..ये वक्त है साहब, बदलता जरूर है

मुजफ्फरपुर। लॉकडाउन के चलते महानगरों में फंसे प्रवासियों की घर वापसी का सिलसिला जारी है। इसी क्रम में शुक्रवार को भी दिल्ली व मुंबई से सैकड़ों प्रवासी विशेष श्रमिक ट्रेनों से मुजफ्फरपुर जंक्शन पहुंचे। आंखों में लॉकडाउन की पीड़ा और घर वापसी की खुशी लिए लौटे प्रवासी जंक्शन से यात्री बस से अपने घर के लिए रवाना हुए। इस दौरान सबकुछ लुटा जिंदगी बचाकर महानगरों से लौटे प्रवासियों ने लॉकडाउन के दौरान की पीड़ा और जिंदगी बचाने के लिए की गई मशक्कत की दर्दभरी दास्तान सुनाई। कहा- जिदंगी के सबसे बुरे दौर और कभी नहीं भूलने वाले गम के साथ घर वापसी हुई है। मुंबई से लौटे पूर्वी चंपारण के फतेहा निवासी 50 वर्षीय शेख इमाम ने बताया कि 30 वर्ष से परेल के इलाके में रहते थे। एक्सपोर्ट इंपोर्ट कंपनी में काम करते थे। इस दौरान मायानगरी में कई बड़े हमले भी हुए। लेकिन, खौफ की ऐसी तस्वीर कभी नहीं देखी। अपनों के बीच इतनी बड़ी दूरियां नहीं देंखी। मददगारों के मुंह मोड़ने की ऐसी तस्वीर नहीं दिखी। लगा, मानों साया भी साथ छोड़ गया हो। कहा- वक्त बदलेगा साहब। शेख इमाम ने शायराना अंदाज में कहा 'कितना भी समेट लो हाथों से फिसलता जरूर है, ये वक्त है साहब बदलता जरूर है'।

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हर रात सुनाई देती थी मौत की आहट : मुंबई से लौटीं मुजफ्फरपुर के पारू की सबीना खातून, आरती देवी, अमित साह, धर्मेद्र गुप्ता आदि ने बताया कि वे टेक्सटाइल कंपनी में काम करते थे। लॉकडाउन के बाद कंपनी बंद हो गई। बाजार और दुकानें बंद होने से भोजन का संकट उत्पन्न हो गया। सबसे बड़ी परेशानी पानी को लेकर थी। जैसे-तैसे वक्त कट रहा था। दिन और रात काटना मुश्किल हो रहा था। नहीं लगता था कि अगली सुबह भी देख पाएंगे। हर रात मौत की आहट सुनाई पड़ती थी। दिल्ली से लौटे सीतामढ़ी के रून्नीसैदपुर के अरुण राम, चंदन कुमार व सविता देवी ने बताया कि आरकेपुरम के पास प्लास्टिक बैग बनाने की कंपनी में मजदूरी करते थे। सपरिवार पुरानी दिल्ली की बस्ती में रहते थे। लॉकडाउन होते ही मकान मालिक मकान खाली कराने पर अड़ गया। वहीं, पैसा समाप्त होने से दाने-दाने को मोहताज हो गए थे। पड़ोसियों ने घर वापसी के लिए ट्रेन चलने की सूचना दी। सपरिवार पैदल ही जंक्शन पर पहुंच गए। अब घर वापसी हुई है।

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नेपाल ने नहीं दी पनाह, लौट रहे उत्तर प्रदेश : पड़ोसी देश नेपाल ने यूपी के मजदूरों को पनाह नहीं दी। यूपी के शाहजहांपुर जिले के फैजानपुर थाना के विलसंदी खुर्द निवासी राम लाल, राम बहादुर, राम प्रताप, राजा राम, संजीत, उदय, सुमन, सुखदेव व हरेंद्र समेत 30 से अधिक मजदूर नेपाल के महोत्तरी जिले के जलेश्वर में ईट बनाने का काम करने गए थे। जनवरी में सभी महोत्तरी पहुंचे थे। लेकिन, भारी बारिश से काम नहीं मिला। इसी बीच लॉकडाउन लागू हो गया। बाद में उन्हें घर वापस जाने का निर्देश दिया गया। वे परिवार व बच्चों के साथ यूपी के लिए निकले। चार दिन व चार रात बॉर्डर पर इंतजार करने के बाद उन्हें सीतामढ़ी में प्रवेश मिला। वहां से बस से शुक्रवार सुबह सभी मुजफ्फरपुर जंक्शन पहुंचे। यहां देर शाम तक लखनऊ जाने के लिए ट्रेन का इंतजार करते रहे। राम बहादुर ने बताया कि आए थे कमाने, जा रहे खाली हाथ। घर पहुंच जाएं, बस यही तमन्ना रह गई है।

जंक्शन पर आरपीएफ का दिख रहा मानवीय चेहरा : मुजफ्फरपुर जंक्शन पर आरपीएफ का मानवीय चेहरा दिख रहा है। रोज पहुंच रहे प्रवासियों को आरपीएफ सुरक्षा उपलब्ध करा रही है। साथ ही प्रवासियों के बीच बिस्किट व पानी का भी वितरण कर रही है। आरपीएफ के अधिकारी व कर्मी समेत 50 लोग ट्रेन की बोगियों में बच्चों और वृद्धों की सेवा कर रहे हैं। प्रवासी भी आरपीएफ की इस पहल की सराहना कर रहे हैं।


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