यहीं से तय होती थी आंदोलन की रणनीति, जुटते थे आजादी के दीवाने
सीतामढ़ी में ऐसे कई स्थान हैं जो आजादी के संघर्ष से जुड़े रहे हैं। इसमें सबसे चर्चित है शहर के मध्य स्थित गांधी मैदान।
मुजफ्फरपुर। सीतामढ़ी जिले में ऐसे कई स्थान हैं जो आजादी के संघर्ष से जुड़े रहे हैं। इसमें सबसे चर्चित है शहर के मध्य स्थित गांधी मैदान। महात्मा गांधी द्वारा सीतामढ़ी आगमन के दौरान यहीं से आंदोलनकारियों को संबोधित किया गया था। इसके बाद से ही इस स्थल का नाम गांधी मैदान के रूप में मशहूर हो गया। यहां पहले एक झोपड़ी थी, जहां प्रमुख आंदोलनकारी जमा हुआ करते थे। आंदोलन की रणनीति तय किया करते थे। इतना ही नहीं इसी मैदान में अंग्रेज के विरूद्ध आमसभा हुआ करती थी। भारत माता का जयघोष किया जाता था। इस स्थान पर होने वाली गतिविधियों पर अंग्रेजी हुकूमत की विशेष नजर थी। झोपड़ी में बनती थी आंदोलन की रणनीति
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इस मैदान के कोने में एक महज झोपड़ी थी। जहां स्वतंत्रता सेनानी जुटते थे। आंदोलन की रणनीति तय किया करते थे। यह मैदान एक एकड़ 18 कट्ठा रकबा में था। जो जिला कांग्रेस कमेटी व देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नाम पर था। आजादी के बाद यहां कांग्रेस कार्यालय और खादी भंडार का भवन बना। समय बीता और कांग्रेस कमेटी कार्यालय का नाम ललित आश्रम रखा गया। कांग्रेस कार्यालय ललित आश्रम का रख रखाव तो किया जाता है, लेकिन खादी भंडार भवन की स्थिति जर्जर बनी हुई है। इस मैदान में शहीद स्मारक भी है, लेकिन इसकी सुधि लेने वाले नहीं हैं। विशेष मौके पर कुछ राजनीतिक कार्यकर्ता साफ-सफाई कर कोरम पूरा करते हैं। यहां जुटते थे आजादी के मतवाले
जगन्नाथ चौधरी, मोहित शर्मा, लक्ष्मीकांत मिश्र, गुलाब झा, राघव झा, ठाकुर रामानंद ¨सह, ठाकुर नबाब ¨सह, धनेश्वर झा, हंसु ¨सह, नागेंद्र प्रसाद यादव, देवेंद्र झा, विवेकानंद गिरी, रामानंद मोख्तार, कपिलदेव ¨सह, चंद्रकांत झा, महादेव ¨सह, रामफल मंडल, राजेंद्र ¨सह, ध्वजा प्रसाद साहु, सत्यनारायण शर्मा, नवल किशोर आजाद आदि दर्जनों आंदोलनकारियों के लिए यह मैदान मिलन स्थल था। इस मैदान में स्थित झोपड़ी में अंग्रेजों की नजर बचाकर आंदोलन की रणनीति तैयार की जाती थी।