गांव-गिरांव: लॉकडाउन से रोजगार छिनने के बाद बढ़ा इनका आत्मविश्वास, अब खेतों की देखभाल में जुटे
Lockdown Effect कभी घर नहीं आने वाले प्रवासी अब गांव नहीं छोड़ने का ले चुके संकल्प। बाहरी मजदूर की जगह खुद खेतों पर जाकर कर रहे काम।
मुजफ्फरपुर, नीरज। जिले के सरैया प्रखंड की पोखरैरा पंचायत का पोखरैरा गांव। आईएएस अधिकारी राहुल रंजन महिवाल का गांव होने से यह चर्चित रहा है। इलाके के लोग खेती किसानी पर निर्भर हैं। गांव लौटे प्रवासी अब खेतों की देखभाल में जुटे हैं। बाहरी मजदूर की जगह वे खुद काम कर रहे हैं। और अपनी माटी में यह युवा उम्मीदों की पौध उगाने का माद्दा दिखा रहे हैं। अब गांव में ही कुछ करके भविष्य तलाश रहे हैं। कोरोना के खौफ से युवाओं में उम्मीदों की नई आस जगी है। रोजगार छीनने के बाद उनका आत्मविश्वास बढ़ा है। कभी घर नहीं आने वाले प्रवासी अब गांव नहीं छोड़ने का संकल्प ले रहे हैं। बुजुर्ग भी बच्चों को प्रदेश नहीं भेजने की शपथ ले रहे हैं।
दिख रहा पर्व-त्योहार जैसा मंजर
शहर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित दुबियाही रामकृष्ण गांव से सटा पोखरैरा गांव। लॉकडाउन के कारण प्रवासियों की घर वापसी से गांव की तस्वीर होली व छठ जैसी दिखाई दे रही है। हर घर में प्रवासियों की वापसी होने से पूरा परिवार एक साथ है। कहीं 2-3 तो कहीं चार-चार पीढ़ियां साथ साथ है। गांव में प्रवेश करते ही ग्रामीण भारत दिखाई दिया। कोरोना वायरस के चलते लोग मास्क का उपयोग व शारीरिक दूरी का पालन करते हुए आम दिनों की तरह काम करते नजर आए।
शशि रंजन कुमार बच्चों को पढ़ाते नजर आए। वह बच्चों का हाथ सेनिटाइजर से साफ करा रहे थे। कहा कि बच्चों को शिक्षा के साथ सफाई व स्वच्छता की टिप्स देना भी जरूरी है। गेहूं की दौनी करा रहे बुजुर्ग राम दिनेश महतो ने बताया कि बीमारी बड़े शहरों में है। गांव की आबोहवा ताजा होती है यहां कोई वायरस ना आया है और ना आएगा। गांव के लोग काफी जागरूक हो गए हैं। पशुओं को चारा देकर पेड़ की छांव में सुधार है जागेश्वर राय ने कहा कि अब गांव की तस्वीर बदल चुकी है युवाओं में जागृति आई है। सभी शहर छोड़ गांव आ गए हैं। बताया कि खेती किसानी से बड़ा कोई रोजगार नहीं है। लॉक डाउन से पूर्व गांव लौटे राकेश व गौरव ने बताया कि कोरोना के खाैफ से ही सही एक नई उम्मीद जगी है। अब दूसरे प्रदेश कभी नहीं जाएंगे।