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Happy Holi 2021: बिहार के भिरहा में वृंदावन वाली होली, समरसता की पिचकारी से बरसता उल्लास का रंग

Holi 2021 देश स्तर पर होती रही है भिरहा के होली महोत्सव की चर्चा। यहां दिखता है सांप्रदायिक सद्भाव का नजारा। पूर्व में कर्पूरी ठाकुर जगन्नाथ मिश्र बिन्देश्वरी दुबे जगजीवन राम एवं रामविलास पासवान के साथ-साथ राष्ट्रकवि दिनकर कविवर आरसी प्रसाद सिंह व सुरेन्द्र झा सुमन उठा चुके इसका आनंद।

By Ajit KumarEdited By: Published: Tue, 23 Mar 2021 09:25 AM (IST)Updated: Mon, 29 Mar 2021 01:09 PM (IST)
Happy Holi 2021: बिहार के भिरहा में वृंदावन वाली होली, समरसता की पिचकारी से बरसता उल्लास का रंग
इस होली महोत्सव में वृंदावन की झलक आज भी मिलती है। सभी फाइल फोटो

समस्तीपुर, [शंभूनाथ चौधरी]। Holi 2021: बिहार के समस्तीपुर जिला अंतर्गत भिरहा में वृंदावन की तर्ज पर होली समारोह का आयोजन होता है। कोविड महामारी के साये में इस बार आयोजन का स्वरूप थोड़ा अलग होगा। लेकिन, समरसता और सद्भाव में कोई कम नहीं। यहां के तीन दिनी होली की चर्चा पूरे देश में होती है। 15 दिन पहले से ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। तीन टोले क्रमश: पश्चिम बारी टोल, उत्तर बारी टोल और पूरब बारी टोले में बंटे इस गांव को होली के मौके पर दीपावाली की तर्ज रंग-बिरंगी लाइट से सजाया जाता है। इसके बाद गांव के बीच में स्थित फगुआ पोखर की साफ-सफाई की जाती है। तीनों टोलों की ओर से अलग-अलग राज्यों से बेहतरीन बैंड बुलाए जाते हैं। इस बार यह जबलपुर, जयपुर और पटना से बुलाए जा रहे हैं, जबकि नृत्यांगनाएं मुजफ्फरपुर और पटना की होंगी। पूरी तैयारी पर करीब 30 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं। होली की रात नृत्य और बैंड की प्रतियोगिता होती है। इसमें विजेता को अलग से पुरस्कृत किया जाता है। इसमें सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं। सुबह होते ही पोखर में लाल रंग घोल दिया जाता है। इसके बाद शुरू होता है पिचकारी चलाने का दौर। बुजुर्गों का कहना है कि वर्षों पूर्व यहां की टोली होली का आनंद लेने वृंदावन गई थी। वहां से लौटने के बाद से ही भिरहा में होली महोत्सव की परंपरा स्थापित की गई। इस होली महोत्सव में वृंदावन की झलक आज भी मिलती है। बच्चे हों या बुजुर्ग या किसी भी जाति-धर्म के लोग, पूर्ण अनुशासन के बीच होली के रंगों में डूबकर सांप्रदायिक सौहार्द का भी संदेश देते हैं।

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कई राजनीतिक हस्तियां उठा चुकीं इसका आनंद

होली की प्रसिद्धि का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के कई राजनीतिक व सामाजिक हस्तियां यहां पहुंच होली का आनंद उठा चुके हैं। जिसमें मुख्य रूप से कर्पूरी ठाकुर, जगन्नाथ मिश्र, बिन्देश्वरी दुबे, जगजीवन राम एवं रामविलास पासवान के साथ-साथ राष्ट्रकवि दिनकर और कविवर आरसी प्रसाद सिंह व सुरेन्द्र झा सुमन प्रमुख हैं। ग्रामीणों की माने तो होली महोत्सव से गदगद हुए राष्ट्रकवि ने भी कहा कि वृंदावन तक नहीं पहुंचने वाले लोग भिरहा में भी वहां की झलक देख सकते हैं।

कई स्तर पर होती है तैयारी

प्रतिवर्ष होली के एक माह पूर्व से ही गांव में तैयारियां शुरू हो जाती हैं। इस वर्ष भी अब महोत्सव की तैयारी चरम पर है। तीन टोले में बंटे गांव के लोगों द्वारा विभिन्न राज्यों से एक से बढ़कर एक बैंड पार्टी एवं नृत्यांगनाओं को बुलाया गया है। बैंड पार्टी जहां जबलपुर, जयपुर एवं पटना से, वहीं नृत्यांगनाएं भी मुजफ्फरपुर और पटना की होंगी। संपूर्ण गांव को दीपावली की तर्ज पर रंग-बिरंगी बत्तियों से सजाने की भी योजना है। वहीं फगुआ पोखर की साफ-सफाई अभी से ही प्रारंभ कर दी गई है। तीनों होली समिति के सदस्यों द्वारा आपसी चंदा भी किया जा रहा है।

पूरे पोखरा का पानी हो जाता है गुलाबी

भिरहा के चर्चित फगुआ पोखर के चारों तरफ से पिचकारियां चलती हैं। जिसकी वजह से देखते ही देखते संपूर्ण पोखरे का रंग ही गुलाबी हो जाता है। बताते चलें कि तीनों टोलों में सांस्कृतिक कार्यक्रम के पश्चात् अलग-अलग रास्ते बैण्ड-बाजे के साथ सभी होली के दोपहर बाद फगुआ पोखर पहुंचते हैं। वहां पहुंच हजारों लोग दो भागों में बंट एक-दूसरे पर पिचकारियां चलाते हैं।

बैंड पार्टियों के बीच होती है प्रतियोगिता

विभिन्न राज्यों से पहुंचे नामचीन बैंड पार्टियों के बीच प्रतियोगिता का भी आयोजन कराया जाता है। होलिका दहन के पश्चात् गांव के उच्च विद्यालय परिसर में उमड़े हजारों लोगों के बीच बैंड पार्टियों के बीच प्रतियोगिता का आयोजन कराया जाता है। घंटों चले इस प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान पर आए इन पार्टियों को पुरस्कृत भी किया जाता है। वहीं टोलों में सजी महफिल के बीच नृत्यांगनाओं को भी पुरस्कृत करने का दौर जारी रहता है।

वर्ष 1835 से चली आ रही होली महोत्सव की यह परंपरा

गांव के बुजुर्गों की मानें तो सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां के प्रबुद्ध होली का आनंद लेने वृंदावन गए थे। वहां से वापस लौटने के बाद उसी तरह होली मनाने का निर्णय लिया गया। उसके बाद से आज तक प्रतिवर्ष भिरहा में पारंपरिक होली महोत्सव का आयोजन किया जाता है। हालांकि आज की होली में भौतिकतावादी चकाचौंध निश्चित रूप से बढ़ गई है। लेकिन गांव के लोग आज भी इस महोत्सव को उत्साह और उमंग के बीच ही मनाते हैं।

रोसड़ा संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. रामविलास राय कहते हैं कि करीब दो सौ वर्ष पूर्व पूर्वजों द्वारा इस पंरपरा को प्रारंभ किया गया और आज तक हम ग्रामवासी उसे निभाने का अथक प्रयास करते हैं। यहां की होली सामाजिक समरसता का आदर्श है। यहां प्रेम की पराकाष्ठा शिखर पर है। प्रेम की धारा गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम की तरह प्रवाहित होती रहती है।

युवक संघ भिरहा के अध्यक्ष सेवानिवृत्त शिक्षक महेश चन्द्र राय कहते हैं कि ब्रज की होली की छंटा हमारे गांव में आज भी दिखती है। सभी वर्गों के लोग इसमें भाग लेकर अनेकता में एकता का पैगाम देते हैं। महोत्सव के बीच गांव पहुंचने वाले अतिथि पूरे गांव के कुटुम्ब होते हैं। सैकड़ों वर्षों से चलने वाली परंपरागत होली में कई राजनेताओं के साथ-साथ राष्ट्रकवि दिनकर व कविवर आरसी प्रसाद सिंह व सुरेन्द्र झा सुमन भी भिरहा पहुंच कर यहां का मान बढ़ा चुके हैं। 


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