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आश्वासन तो मिला पर लहठी को उद्योग का दर्जा नहीं, हुनर ने शहर को दी विशिष्ट पहचान

नहीं हो सका लहठी बाजार का विकास। इस्लामपुर के लहठी बाजार का जयपुर के बाद देश में है दूसरा स्थान। सालाना एक अरब रुपये से अधिक का व्यवसाय इस मंडी से होता है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sun, 17 Mar 2019 02:17 PM (IST)Updated: Sun, 17 Mar 2019 02:30 PM (IST)
आश्वासन तो मिला पर लहठी को उद्योग का दर्जा नहीं, हुनर ने शहर को दी विशिष्ट पहचान
आश्वासन तो मिला पर लहठी को उद्योग का दर्जा नहीं, हुनर ने शहर को दी विशिष्ट पहचान

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। मुजफ्फरपुर में लाह से चूड़ी गढऩे के हुनर ने शहर को विशिष्ट पहचान दी है। यहां बनी रंग-बिरंगी लहठियों की देश की प्रमुख मंडियों के साथ विदेशों में भी भारी मांग है। देश-विदेश में शाही लीची के बाद मुजफ्फरपुर को यदि याद किया जाता है तो लहठी के लिए। सचिन तेंदुलकर और अमिताभ बच्चन केपरिवार की महिलाओं को यहां की लहठी पसंद है। मिस यूनिवर्स ऐश्वर्या राय की शादी में उनकी कलाइयों पर भी यहां की लहठी का कब्जा रहा है।

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इस्लामपुर स्थित लहठी मंडी की बात करें तो जयपुर के बाद देश में यह दूसरा स्थान रखता है। छह दशक पूर्व स्थापित इस व्यवसाय से पांच सौ से अधिक छोटे-बड़े व्यवसायी जुड़े है। दस हजार से अधिक कारीगर लाह की चूड़ी बनाकर अपने परिवार की रोजी-रोटी चला रहे है। शहर के इस्लामपुर, रामबाग, तिलक मैदान रोड, पंखा टोली, एवं शहर के बाहर ग्रामीण क्षेत्रों में चैनपुर बंगरा, केरमा, लदौरा, ढोली, बखड़ी, मुशहरी समेत दर्जनों गांव के सैकड़ों परिवार लाह की चूड़ी बनाने में लगे हैं। सालाना एक अरब रुपये से अधिक का व्यवसाय इस मंडी से होता है।

बावजूद इसके विकास के लिए किसी भी सांसद ने पहल नहीं की और न ही किसी राजनीतिक दल ने अपने एजेंडे में इसे शामिल किया। तीन साल पहले सूबे की सरकार के मुखिया ने जिले के लहठी व्यवसाय को नजदीक से देखा और इसे लघु उद्योग के रूप में विकसित करने, कारीगरों को प्रशिक्षण देने और व्यवसायियों केा ऋण की सुविधा उपलब्ध कराने की घोषणा की थी। लेकिन, उनकी घोषणा भी हवाई साबित हुई।

मंडी के व्यवसायी मो. मुस्तफा उर्फ पप्पू बताते है कि उद्योग का दर्जा तो दूर मंडी में बुनियादी सुविधा भी किसी ने उपलब्ध नहीं कराई। बरसात की कौन कहे, सालों पर मंडी में जलजमाव की स्थिति बनी रहती है। यहां न शौचालय की सुविधा है और ही पीने के पानी की। लहठी व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि यदि इस व्यवसाय को आर्थिक मदद मिलती , कारीगरों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती एवं इसके व्यापार में लगे व्यवसायियों को प्रोत्साहन दिया गया होता तो शहर के आर्थिक विकास में लहठी व्यवसाय मिल का पत्थर साबित होता है हजारों बेरोजगारों को रोजगार के अवसर प्राप्त होते। आसन्न चुनाव में लहठी व्यवसाय की अनदेखी चुनावी मुद्दा बनेगी।  


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