गोपाष्टमी महोत्सव आज, खुशियों से भर जाता गौ सेवा करने वालों का जीवन
उत्तम फलदायक है गोपाष्टमी महोत्सव। इस दिन गौ और गोविंद की पूजा-अर्चना करने से धन और सुख-समृद्धि में होती वृद्धि।
मुजफ्फरपुर (जेएनएन)। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस बार यह गुरुवार, 15 नवंबर को है। यह महोत्सव उत्तम फलदायक है। कहते हैं कि इस दिन गाय और गोविंद की पूजा-अर्चना करने से धन और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार गाय चराई थी। यशोदा मईया भगवान श्रीकृष्ण को प्रेमवश कभी गौ चराने के लिए नहीं जाने देती थीं। लेकिन एक दिन कन्हैया ने जिद पर मईया ने महर्षि शांडिल्य से मुहूर्त निकलवाया और पूजन के बाद अपने कन्हैया को गौ चराने के लिए भेजा। तभी से इस दिन गाय की पूजा की जाती है। बाबा गरीबनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी पं.विनय पाठक बताते हैं कि गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास माना गया है। इसलिए गौ पूजन से सभी देवता प्रसन्न होते हैं।
गाय का किया जाता है शृंगार
आचार्य विष्णु शर्मा बताते हैं कि जो लोग नियम से कार्तिक स्नान करते हुए जप, होम व पूजा-अर्चना का फल पाना चाहते हैं, उन्हें गोपाष्टमी पूजन अवश्य करनी चाहिए। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में गाय और उसके बछड़े को नहलाकर उन्हें सुन्दर आभूषण से सजाते हैं। यदि आभूषण संभव न हो तो उनके सींगों को रंग अथवा पीले पुष्पों की माला से सजाएं। उन्हें हरा चारा और गुड़ खिलाना चाहिए। उनकी आरती करते हुए उनके पैर छूने चाहिए। साथ ही गौशाला के लिए दान दें। गोपाष्टमी की शाम जब गाय घर लौटती हैं, तब फिर उनकी पूजा की जाती है। खासतौर पर इस दिन गाय को हरा चारा, हरा मटर एवं गुड़ खिलाया जाता है। जिन श्रद्धालुओं के घरों में गाय नहीं हैं, वे लोग गौशाला जाकर गाय की पूजा करते हैं। मान्यता है कि गौ सेवा करने वाले का जीवन धन-धान्य और खुशियों से भर जाता है। इसलिए गौमाता की पूजा व सेवा करनी ही चाहिए।
चकबासु लेन निवासी राजेश उर्फ मुन्ना शास्त्री ने बताया कि गोधन की परिक्रमा करना अति उत्तम कर्म है। गोपाष्टमी को गऊ पूजा के साथ गौ रक्षकों के रक्षक ग्वाले या गोप को भी तिलक लगा कर उन्हें मीठा खिलाएं। गौ उपासक घर में लक्ष्मी का वास होता है।