Gandhi Jayanti 2021: गांधीजी की प्रेरणा से ग्रामीणों ने बना दिया था नाला
औराई प्रखंड के भरथुआ में भी ऐसा ही हुआ था। यहां के चौर में बागमती नदी का पानी भर गया था। आसपास की जमीन ऊंची होने से पानी का निकलना मुश्किल था। धीरे-धीरे पानी काला होने लगा। उसमें गिरे पेड़-पौधों और जानवरों के सडऩे से महामारी की आशंका हो गई।
औराई (मुजफ्फरपुर), [शीतेश कुमार]। 15 जनवरी, 1934 को उत्तर बिहार में आए भूकंप से मुजफ्फरपुर मेें भीषण तबाही हुई थी। शहर से लेकर गांवों तक में बर्बादी का दृश्य था। झटकों ने घरों को ध्वस्त कर दिया था। नदियों की धारा तक बदल गई थी। औराई प्रखंड के भरथुआ में भी ऐसा ही हुआ था। यहां के चौर में बागमती नदी का पानी भर गया था। आसपास की जमीन ऊंची होने से पानी का निकलना मुश्किल था। धीरे-धीरे पानी काला होने लगा। उसमें गिरे पेड़-पौधों और मरे जानवरों के सडऩे से महामारी की आशंका हो गई। उस दौर में गांधीजी मुजफ्फरपुर में लोगों की सेवा में पहुंचे थे। भरथुआ के लोगों की दुर्दशा सुनकर वहा भी पहुंचे और ग्रामीणों के सहयोग से जलनिकासी की व्यवस्था की।
रामवृक्ष बेनीपुरी ने की थी पहल
भूकंप के तत्काल बाद डा. राजेंद्र प्रसाद को बिहार सेंट्रल रिलीफ कमेटी का प्रमुख बना दिया गया था। वे भरथुआ से सटे बेदौल में कैंप कर रहे थे। इधर, गांधीजी और कस्तूरबा गांधी मुजफ्फरपुर शहर से सटे इलाकों में पीडि़तों की सेवा में जुटे थे। फरवरी के बाद भरथुआ की स्थिति और खराब हो चुकी थी। उस दौरान रामवृक्ष बेनीपुरी भी पीडि़तों की सेवा में जुटे थे। उन्होंने राजेंद्र बाबू से मुलाकात की और गांधीजी को भरथुआ लाने का विचार दिया। राजेंद्र बाबू ने गांधीजी के नाम एक पत्र लिखा। उस पत्र के सहारे विद्यालंकार जी ने गांधीजी से संपर्क किया था। गांधीजी वहां की स्थिति सुनकर चलने को राजी हो गए। गांव पहुंचकर नाव से भ्रमण किया। कहा कि प्रशासन जब मदद करेगा, तब करेगा। अभी मुश्किल दौर से निकलना है। बेनीपुर गांव के 75 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक शिवकुमार सिंह, वयोवृद्ध रामाधार सिंह और चंदेश्वर सिंह बताते हैं कि गांधीजी ने अंग्रेजों पर दबाव बनाकर गांववालों की मदद से नाला निकलवाया था जो धनौर के पास लखनदेई नदी में मिला दी गई थी। धीरे-धीरे इस क्षेत्र से पानी निकलना शुरू हुआ। कालांतर में वह नाला बागमती नदी में मिल गया।
दिया था साफ-सफाई का मंत्र
मार्च, 1934 में गांव के आसपास के इलाकों मेें पानी जमा होने से कई तरह की बीमारियां पनपने लगी थीं। भरथुआ में मलेरिया का प्रकोप फैला था। गांव के हर घर में एक-दो लोग बीमार थे। चिकित्सा शिविरों में इलाज की व्यवस्था तो थी, पर गांधीजी इलाज के साथ जड़ को भी खत्म करना चाहते थे। वहां कुछ दिन ठहरे और गांव की साफ-सफाई कराई।