मेहनत से मछलियों ने किया मालामाल, दूसरों के लिए बने मिसाल
सवा एकड़ तालाब से तकरीबन चार लाख की मछलियों का आनंद ने किया उत्पादन। तालाब में ऑक्सीजन बढ़ाने और अमोनिया घटाने की करते रहे व्यवस्था।
बेतिया(प.चंपारण), [शशि कुमार मिश्र]। अगर मछली पालन का गुर सीखना हो तो पश्चिम चंपारण के नरकटियागंज के सम्हौता गांव आ जाइए। यहां के आनंद सिंह मछली पालन में मिसाल बन गए हैं। सवा एकड़तालाब में आठ माह में दो लाख रुपये से ज्यादा की मछली का उत्पादन कर चुके हैं। अभी उनके तालाब में रोहू व कतला प्रजाति की करीब 10 क्विंटल मछलियां हैं। इनकी कीमत तकरीबन दो लाख होगी। यानी कुल चार लाख का मुनाफा।
मछली पालन में इस तरह का रिकॉर्ड उन्होंने आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर बनाया है।
पिछले वर्ष आई बाढ़ में आनंद के तालाब की सभी मछलियां बह गई थीं। बाढ़ के बाद उन्होंने पूरे तालाब का पानी निकालकर उसमें सोलर पंप से शुद्ध पानी डाला। एक अप्रैल 2018 से पंगेसियस मछली का जीरा डाला। ये मछलियां जब थोड़ी बड़ी हुईं तो उन्होंने 400 कतला एवं 200 रोहू के जीरे डाले। अक्टूबर में 45 क्विंटल पंगेसियस मछली की बिक्री कर तकरीबन दो लाख मुनाफा अर्जित किया। अब रोहू और कतला मछलियां करीब 10 क्विंटल हो गई हैं।
आनंद के अनुसार पूरा उत्तर बिहार मछली पालन के लिए उपयुक्त है। मछलियों का अधिक से अधिक उत्पादन लेने के लिए किसानों को तालाब में आक्सीजन की मात्रा बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। मछलियों के मल-मूत्र से तालाब में बने अमोनिया की मात्रा को घटाना चाहिए। आहार के लिए तालाब में प्राकृतिक भोजन की मात्रा बढ़ाने एवं गोबर देने की जरूरत है।
ऐसे किया मत्स्य पालन
आनंद ने 1.25 एकड़ तालाब को खाली कर 15 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट डाला। सोलर पंप से छह फीट तक शुद्ध जल भरा। फिर पंगेसियस मछली के 10 हजार जीरे डाले। मछलियां 100 से 200 ग्राम की हुईं तो 400 कतला एवं 200 रोहू के जीरे डाले। अमोनिया गैस की मात्रा तालाब से घटाने के लिए प्रत्येक 15 दिन पर सात से आठ किलोग्राम जीयोलाइट जल शुद्धिकरण के रूप में उपयोग किया। ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिए ऑक्सीजन गोली का इस्तेमाल किया।
दो बार 25 किलोग्राम मिनरल मिक्सचर का इस्तेमाल किया। नियमित अंतराल पर तालाब में दाने दिए। तालाब में प्राकृतिक भोजन की मात्रा बनाए रखने (प्लांटन) के लिए गोबर, ङ्क्षसगल सुपरफास्फेट, यूरिया और दो किलोग्राम सरसों की खली का घोल प्रत्येक 15 दिनों में इस्तेमाल किया।
मत्स्य पालन महाविद्यालय, ढोली के मुख्य वैज्ञानिक सह एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शिवेंद्र कुमार का कहना है कि इस तरह मछली पालन अन्य के लिए प्रेरणादायक है।
जिला मत्स्य पालन पदाधिकारी सह मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी मनीष श्रीवास्तव कहते है कि आनंद सिंह ने मछली उत्पादन में बेहतर तकनीक का इस्तेमाल किया है। इससे अन्य मत्स्य पालकों को प्रेरणा लेनी चाहिए। इससे वे अच्छी आमदनी कर सकते हैं।