मुजफ्फरपुर : लीची की बाग में लहरा रही सरसों, कम लागत में किसानों को हो रहा ज्यादा मुनाफा
Muzaffarpur News राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र में सरसों का पौधा लहलहा रहा है। इसको देखने के लिए प्रतिदिन किसान पहुंच रहे है। अनुसंधान केन्द्र लीची के साथ अंर्तवर्तीय खेती को लगतार बढ़ावा दे रही है। किसान अंर्तवर्तीय फसल को लगाकर अधिक लाभ कमा सकते है।
मुजफ्फरपुर [अमरेन्द्र तिवारी ]। लीची के साथ सरसों की खेती कर किसान अपनी आमदनी को बढ़ा सकते है। अभी राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र में सरसों का पौधा लहलहा रहा है। इसको देखने के लिए प्रतिदिन किसान पहुंच रहे है। अनुसंधान केन्द्र लीची के साथ अंर्तवर्तीय खेती को लगतार बढ़ावा दे रही है। जानकारों की माने तो लीची की बगवानी लगाने के बाद फल के लिए चार से पांच साल इंतजार करना पड़ता है। इस बीच किसान अंर्तवर्तीय फसल को लगाकर अधिक लाभ कमा सकते है। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डा.विशाल नाथ ने कहा कि लीची बागवानी लगाने के साथ किसान सरसों, ओल, शकरकंद, गेंहू की खेती कर सकते है। उन्होंने कहा कि जो किसान सरसों की खेती करते है तो उसमें लगने वाले झुलसा, सफेद रतुआ तथा डाउनीमिल्डयु रोग प्रमुख रूप से लगते है। झुलसा रोग अध्याधिक हानिकारक होती है। इससे लक्षण है पहले पत्तियों पर गोलाकार काले धब्बे बनना तथा बाद में पूरे तने शाखाओं व फलियों पर फैल जाता है। यदि यह लक्ष्य हो तो अविलंब विशेषज्ञ से मिलकर उचित दवा का छिड़काव करना चाहिए।
लागत कम मुनाफा ज्यादा
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डा.विशाल नाथ ने बताया कि अगर आप लीची के बाग में सरसों की फसल लगाते है तो एक हेक्टेयर में 8 हजार के खर्च आता है। सारे खर्च काटने के बाद 31 हजार मुनाफा हो रहा है। वह खुद अपने परिसर में इसका प्रयाेग कर रहे है। कई लीची उत्पादक किसान इस मॉडल पर काम कर मुनाफा कमा रहे। डा.विशाल नाथ ने कहा कि सरसों बुआई के लिए जुताई पर 2000 प्रति हेक्टेयर, पांच किलो बीज कीमत पांच सौ रुपए, सिंचाई में एक हजार प्रति हेक्टेयर, निराई में 2 हजार 4 सौ रुपए प्रति हेक्टेयर, खाद पर दो हजार एक सौ रूपए प्रति हेक्टेयर, उत्पादन 1300 किलोग्राम व कीमत 31 हजार प्रति हेक्टेयर। खर्च आठ हजार काटकर मुनाफा 31 हजार रूपए प्रति हेक्टेयर।