सभ्यता और संस्कृति गुलाम बनाने के उपकरण नहीं : डा. प्रमोद
बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के पीजी हिदी विभाग में दिनकर की साहित्य साधना विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का सोमवार को समापन हो गया।
मुजफ्फरपुर : बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के पीजी हिदी विभाग में दिनकर की साहित्य साधना विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का सोमवार को समापन हो गया। अंतिम दिन अलग-अलग शैक्षिक सत्रों में वक्ताओं ने दिनकर का संस्कृति विमर्श पर चर्चा की। ड.शिवनारायण ने कहा कि दिनकर की कविता संस्कृति का सबसे सुंदर स्मारक है। 'साहित्य-यात्रा' पत्रिका के संपादक डा.कलानाथ मिश्र ने कहा कि दिनकर का संपूर्ण साहित्य भारतीय संस्कृति का प्रतिबिंब है। दिनकर स्वयं भारतीय संस्कृति की प्रतिमूर्ति थे। मुख्य वक्ता डा.शैलेंद्र कुमार चौधरी ने संस्कृति के केंद्रीय अर्थ पर बात की। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ प्राध्यापक डा. प्रमोद कुमार ने कहा कि सभ्यता और संस्कृति गुलाम बनाने के उपकरण नहीं हैं। यदि ऐसा हुआ तो दिक्कतें बढें़गी। दिनकर ने संस्कृति के चार अध्याय में समाज के भविष्य को लेकर जो आशंकाएं व्यक्त की थीं वह आज सही साबित हो रही हैं।
उन्होंने कहा कि 1813 में जब मैकाले ने शिक्षा नीति की शुरुआत की तो उस समय से ही उनलोगों ने सांस्कृतिक रूप से साम्राज्य कायम करने की कोशिश की। इन लोगों ने यह बताया कि जो सभ्यतागत रूप से उन्नत होगा वही सांस्कृतिक रूप से उन्नत होगा। यहां के लोग उनकी संस्कृति की ओर प्रभावित हो गए और उनलोगों ने सभ्यता संस्कृति को गुलाम बनाने के उपकरण के रूप में उपयोग किया। हमारी सभ्यता और संस्कृति से जो आत्मबल मिलता है वह पराई सभ्यता संस्कृति में नहीं मिल सकती। इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन डा.हेमा कुमारी ने किया।
द्वितीय सत्र में संचालन डा.सुशांत कुमार ने किया। सत्र में विशिष्ट वक्ता के रूप में डा.कलानाथ मिश्र, डा.शिवनारायण, डा.पूनम सिंह, डा.राजीव कुमार झा ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के तृतीय सत्र 'दिनकर की काव्य-कृतियां' विषय पर केंद्रित रहा। इसका संचालन डा.पुष्पेंद्र कुमार ने किया। विशिष्ट वक्ता डा.तारकेश्वर पंडित, डा.संत साह, डा.वीरेंद्र कुमार सिंह व मुख्य वक्ता डा.राजेंद्र साह रहे। अध्यक्षता डा.रामनरेश पंडित ने की। धन्यवाद ज्ञापन डा.सुशांत कुमार ने किया। समानांतर सत्र में शोधार्थियों ने अपने शोध-आलेख प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में विभाग एवं देश के अन्य विश्वविद्यालयों से आए शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया। इनमें पल्लवी झा, शारदा, आरती कुमारी, सुजाता कुमारी, रूपम कुमारी, वीणा द्विवेदी ने अपने शोध-पत्रों की प्रस्तुति दी। संचालन डा.आरले श्रीकांत लक्ष्मण राव एवं धन्यवाद ज्ञापन विभाग के प्राध्यापक डा.उज्ज्वल आलोक ने किया।
आम जनता की अवहेलना कर नहीं बना जा सकता बड़ा कवि :
समापन सत्र के विशिष्ट वक्ता डा.मृगेंद्र कुमार तथा मुख्य वक्ता प्रो.अरुण कुमार रहे। समापन भाषण प्रो. रवीन्द्र कुमार 'रवि' ने दिया। अध्यक्षता प्रो. त्रिविक्रम नारायण सिंह ने की। प्रो. रवीन्द्र कुमार 'रवि' ने कहा कि आम जनता की अवहेलना करके कोई बड़ा कवि नहीं बन सकता। वे निश्चित रूप से जनकवि हैं। सत्र का संचालन आयोजन-सचिव डा.कल्याण कुमार झा और विद्वतजनों का धन्यवाद ज्ञापन हिदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. सतीश कुमार राय ने किया।