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शहर में दम तोड़ चुकी पांच दशक पूर्व बनी ड्रेनेज व्यवस्था

शहर से बारिश का पानी निकालने के लिए पांच दशक पूर्व ड्रेनेज सिस्टम विकसित किया गया था। बढ़ती आबादी और अतिक्रमणकारियों के पैर फैलाने से वर्षो पूर्व बनी यह व्यवस्था धीरे-धीरे मृतप्राय हो गई। पुरानी नालियों का दम निकल चुका है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 05 Sep 2020 02:06 AM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2020 06:16 AM (IST)
शहर में दम तोड़ चुकी पांच दशक पूर्व बनी ड्रेनेज व्यवस्था

मुजफ्फरपुर। शहर से बारिश का पानी निकालने के लिए पांच दशक पूर्व ड्रेनेज सिस्टम विकसित किया गया था। बढ़ती आबादी और अतिक्रमणकारियों के पैर फैलाने से वर्षो पूर्व बनी यह व्यवस्था धीरे-धीरे मृतप्राय हो गई। पुरानी नालियों का दम निकल चुका है। फरदो नाला बारिश का पानी निकालने में हांफ रहा है। वहीं, पानी टंकी से हरिसभा होते कल्याणी चौक तक बना अंडरग्राउंड नाला जमीन में दफन हो चुका है।

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निगम के सेवानिवृत्त अभियंता उदय शंकर प्रसाद सिंह बताते हैं कि शहर की जलनिकासी व्यवस्था 55 साल पहले बने नालों पर निर्भर है। वर्ष 1964 में पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता सूर्य नारायण ने शहर से जलनिकासी की योजना बनाई थी। उसके तहत फरदो समेत अन्य नालों का निर्माण कराया गया था। जिस समय योजना बनी थी, शहर की आबादी मात्र 54 हजार थी और पांच से दस हजार मकान ही थे। अब आबादी दस गुना बढ़ गई है और मकानों की संख्या 60 हजार से अधिक। वार्डो की संख्या भी तीन गुना हो गई है। इसका परिणाम यह हुआ कि हर साल शहर बारिश के पानी में डूब जाता है। शहर के अधिकतर इलाके दो माह तक टापू में तब्दील हो जाते हैं।

दम खींच रहा फरदो, अंडरग्राउंड नाला ध्वस्त : लोगों के घरों से निकलने वाला गंदा पानी हो या फिर बारिश का पानी, इसे शहर से बाहर निकालने के लिए वर्ष 1974 में फरदो नाला का निर्माण कल्याणी चौक से पंखाटोली, छाता चौक, मझौलिया, खबरा गांव होते हुए फरदो नदी तक कराया गया था। शहर की सभी छोटी-बड़ी नालियों को उससे जोड़ा गया था। धीरे-धीरे शहर का क्षेत्रफल और आबादी बढ़ी। मकानों की संख्या भी बढ़ती चली गई। इसके साथ ही फरदो नाला ने दम तोड़ना शुरू कर दिया। इसका परिणाम यह निकला कि फरदो से शहर का पानी निकालना तो दूर अब उसके पानी से ही शहर का एक हिस्सा डूबने की कगार पर है।

फरदो नाला के निर्माण के एक साल बाद शहर के उत्तरी भाग का पानी निकालने के लिए इससे जोड़ते हुए कल्याणी, चपड़ापुल, गरीब स्थान, गोलाबांध रोड होते हुए बालूघाट स्लूस गेट तक नाला का निर्माण कराया गया था। इस नाले की मदद से शहर के एक बड़े भू-भाग का पानी बूढ़ी गंडक नदी में गिराया जाता था। लेकिन, बाद में लोगों ने धीरे-धीरे नाले पर अतिक्रमण कर बहाव को बाधित कर दिया। अब नाला का अधिकतर भाग समाप्त हो चुका है। कल्याणी चौक से हरिसभा चौक होते हुए पानी टंकी चौक तक बनाया गया अंडर ग्राउंड नाला दम तोड़ चुका है। बीबीगंज होते हुए फरदो तक जाने वाला नाला भी पूरी तरह से जलनिकासी में अक्षम साबित हो रहा है।

बंद होते गए आउटलेट, अनदेखी करता रहा निगम : शहर से बारिश का पानी निकालने के लिए बने सभी आउटलेट बंद होते चले गए। लेकिन, निगम का ध्यान इस ओर नहीं गया। अब इसके गंभीर परिणाम शहरवासी जलजमाव के रूप में भुगत रहे हैं।

शहर के पश्चिमी भाग का पानी दामोदरपुर रेल गुमटी होकर बाहर निकलता था। लेकिन, दामोदरपुर गुमटी के पास दामोदरपुर गांव के लोगों ने नाला बंद कर दिया है। वे शहर का पानी अपने इलाके में आने देने को तैयार नहीं हैं। इससे एक बड़े इलाके में जलजमाव की समस्या हो गई।

शहर के पूर्वी भाग का पानी बालूघाट स्लूस गेट के माध्यम से बाहर निकलता है। लेकिन, आधा दर्जन लोगों ने इस निकासी मार्ग पर अतिक्रमण कर लिया है। इससे बहाव बाधित हो रहा है। नारायणपुर-दिघरा रोड का निर्माण कर रहे पथ निर्माण विभाग द्वारा सड़क चौड़ीकरण के नाम पर नाला को पूरी तरह से भर दिया गया है। इससे बेला-दिघरा आउटलेट स्थायी रूप से बंद हो गया है। शहर के पूर्वी भाग के दस वार्डो यथा वार्ड नंबर 25, 34, 35, 36, 37, 38, 39, 47, 48 व 49 का पानी बेला स्थित बियाडा से धिरनपट्टी होकर दिघरा मन में जाता है। लेकिन, मिठनपुरा चौक से बियाडा होते हुए दिघरा तक कोई सुगम नाला नहीं है। इससे उक्त वार्डो में जलजमाव रहता है।

मेंहदी हसन चौक के असगर हुसैन ने कहा कि हर साल बारिश के पानी में शहर डूबता रहा, लेकिन ड्रेनेज सिस्टम को लेकर निगम गंभीर नहीं हुआ। सालों पहले बनी व्यवस्था ध्वस्त हो गई। नया ड्रेनेज सिस्टम विकसित नहीं होने का गंभीर परिणाम शहरवासी भुगत रहे हैं।

जवाहर लाल रोड की अलका वर्मा ने कहा कि पहले फरदो नाला के दोनों तरफ नाला की उड़ाही के लिए जगह छोड़ी गई थी। लेकिन, लोगों ने जमीन पर कब्जा कर मकान में मिला लिया। निगम चुपचाप देखता रहा। परिणाम यह हुआ कि अब फरदो नाला की उड़ाही ठीक से नहीं हो पाती।


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