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डा.अरुण शाह का दावा, खाली पेट सोना व सड़े-गले फल खाना एईएस का कारण

बच्चों के लिए गर्मी में काल बनकर आने वाली बीमारी पर डा.अरुण शाह ने किया शोध। कहा है कि रात में भोजन किए बिना सो जाना बगीचा में गिरे सड़े गिले मौसमी फल का सेवन और लंबे समय तक उपवास बच्चों में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम का मूल कारण है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 12 Jul 2021 11:44 AM (IST)Updated: Mon, 12 Jul 2021 11:44 AM (IST)
डा.अरुण शाह का दावा, खाली पेट सोना व सड़े-गले फल खाना एईएस का कारण
पांच प्रखंडों में डा.शाह ने चलाया अभियान, सामने आया परिणाम। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, जासं। बच्चों की बीमारी पर लगातार शोध करने वाले वरीय शिशु रोग विशेषज्ञ डा.अरुण शाह ने एईएस के कारणों की जानकारी दी है। कहा है कि रात में भोजन किए बिना सो जाना, बगीचा में गिरे सड़े गिले मौसमी फल का सेवन और लंबे समय तक उपवास बच्चों में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम का मूल कारण है। डा. शाह ने रविवार को मीडिया को अपने शोध की जानकारी दी। कहा कि डा. अरुण शाह फाउंडेशन द्वारा स्थानीय प्रशासन के सहयोग से 10 लाख से अधिक आबादी वाले प्रखंड में जागरूकता व अन्य पहल की गई। वहां पर एक भी मौत नहीं हुई है।

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25 साल से उतर बिहार बीमारी से तबाह

उन्होंने कहा कि एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम जिसे स्थानीय रूप से चमकी बुखार के रूप में जाना जाता है। पिछले 25 वर्षों में उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर जिला और आस-पास के जिलों में सैकड़ों बच्चों की मौत का प्रमुख कारण बन रहा है। उत्तर बिहार मे 30 जून 2021 तक एईएस के कुल 33 मामले सामने आए और उनमें से 8 बच्चों की मौत हो गई है। जबकि वर्ष 2013 , 2014, 2015, 2019 में बच्चों की मौत हुई।

उनकी ओर से ग्रामीण क्षेत्र में ऑडियो-सिस्टम से लैस 2 ऑटोरिक्शा को लेकर जन जागरूकता अभियान चला। यह अभियान मुजफ्फरपुर जिला के पांच प्रखंड मीनापुर मुसहरी मोतीपुर काटी और बोचहा मे 15 मार्च से 30 जून तक बड़े पैमाने पर चलाया गया जिसमें गांव वालों को बच्चों में होने वाली इस जानलेवा बीमारी से बचाने के लिए आवश्यक परामर्श दिया गया । विश्व प्रसिद्ध वायरोलॉजिस्ट और डा. जैकब जॉन ने डा.शाह के शोध का समर्थन करते हुए कहा है कि मई और जून में यह रोग एक कुपोषित बच्चा द्वारा उच्च मात्रा में विष (हाइपोग लाइकिनए और एमसीपीजी) के साथ कच्चे अर्ध-पके फल के सेवन से शुरू होता है। डॉ जॉन ने कहा कि भले ही बच्चे इस बीमारी से लंबे समय से मर रहे थे। उलखनऊ स्थित इंडियन इंस्टीट््यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी के पूर्व उप निदेशक डा. मुकुल दास ने भी इस बात की पुष्टि की है। डा.शाह ने कहा कि वह अपनी रिपोर्ट सरकार तक लेकर जाएंगे।  


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