Devutthana Ekadashi 2020: आज भक्त उपवास रख मना रहे तुलसी एकादशी, इस वजह से है खास महत्व
Devutthana Ekadashi 2020 श्रद्धालु उपवास रख भगवान विष्णु की आराधना में जुटे हैं। इस वर्ष स्मार्तानाम् एकादशी बुधवार को मनाई जा रही है। गुरुवार 26 नवम्बर को वैष्णवों की एकादशी मनाई जाएगी। इसके साथ ही सभी प्रकार के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे।
पूर्वी चंपारण, जेएनएन। Devutthana Ekadashi 2020: दीपोत्सव के ग्यारह दिन बाद बुधवार को जिले में भक्ति भाव के साथ हरिप्रबोधनी एवं देवोत्थान एकादशी अर्थात तुलसी एकादशी मनाई जा रही है। इस अवसर पर श्रद्धालु उपवास रख भगवान विष्णु की आराधना में जुटे हैं। इस वर्ष स्मार्तानाम् एकादशी बुधवार को मनाई जा रही है। गुरुवार 26 नवम्बर को वैष्णवों की एकादशी मनाई जाएगी। इसके साथ ही सभी प्रकार के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे।
मांगलिक कार्यों का आयोजन शुरू
आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद चन्दन तिवारी ने बताया कि जो वस्तु त्रिलोक में न मिल सके वह हरि प्रबोधिनी एकादशी व्रत से प्राप्त की जा सकती है। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए क्षीर सागर में शयन करते हैं। चार माह बाद वे कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। विष्णु के शयनकाल के चार माह में मांगलिक कार्यों का आयोजन निषेध रहता है। उनके जागरण के पश्चात समस्त मांगलिक कार्यक्रम निर्विघ्नतापूर्वक संपन्न होते हैं।
उपवास बुद्धि और शांति प्रदाता
एकादशी तिथि का उपवास बुद्धि और शांति प्रदाता व संततिदायक है। ‘विष्णु पुराण’ के अनुसार किसी भी कारण से चाहे लोभ के वशीभूत होकर जो एकादशी तिथि को भगवान विष्णु का अभिनंदन करते हैं, वे समस्त दुखों से मुक्त होकर जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। महर्षि सनत कुमार के अनुसार जो व्यक्ति एकादशी व्रत या स्तुति नहीं करता वह नरक का भोगी होता है। महर्षि कात्यायन के अनुसार जो व्यक्ति संतति, सुख सम्पदा,धन-धान्य व मुक्ति चाहता है तो उसे हरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन विष्णु स्तुति, शालिग्राम व तुलसी महिमा का पाठ करना चाहिए व व्रत रखना चाहिए।
समस्त पाप नष्ट हो जाते
ब्रह्माजी जो हिन्दू धर्म में प्रमुख देवता हैं, उन्हें सृष्टि का रचयिता कहा जाता है। मनुष्य को जो फल एक हजार अश्वमेध और एक सौ राजसूय यज्ञों से मिलता है, वह हरि प्रबोधिनी एकादशी से मिलता है। इस दिन जो मनुष्य भगवान की प्रसन्नता के लिए स्नान, दान, तप और यज्ञादि करते हैं, वे अक्षय पुण्य को प्राप्त होते हैं। प्रबोधिनी एकादशी के दिन व्रत करने से मनुष्य के बाल, यौवन और वृद्धावस्था में किए समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन रात्रि जागरण का फल चंद्र, सूर्य ग्रहण के समय स्नान करने से हजार गुना अधिक होता है।
व्रत करने की विधि
ब्रह्ममुहूर्त में जब दो घड़ी रात्रि रह जाए तब उठकर शौचादि से निवृत्त होकर दंत-धावन आदि कर नदी, तालाब, कुआ, बावड़ी या घर में ही जैसा संभव हो स्नानादि करें, फिर भगवान की पूजा करके कथा सुनें। फिर व्रत का नियम ग्रहण करना चाहिए। उस समय भगवान से प्रार्थना करें कि हे भगवन! आज मैं निराहार रहकर व्रत करूँगा। आप मेरी रक्षा कीजिए। रात्रि को बहुत से फूलों, फल, अगरबती, धूप आदि से भगवान का पूजन करना चाहिए। शंखजल से भगवान को अर्घ्य दें।
विधिपूर्वक केशव का पूजन करें
इस प्रकार रात्रि को भगवान का पूजन कर प्रात:काल होने पर नदी पर जाएं और वहां स्नान, जप तथा प्रात:काल के कर्म करके घर पर आकर विधिपूर्वक केशव का पूजन करें। व्रत की समाप्ति पर विद्वान ब्राह्मणों को भोजन कराएँ और दक्षिणा देकर क्षमायाचना करें। इसके पश्चात भोजन, गौ और दक्षिणा दे कर गुरु का पूजन करें ब्राह्मणों को दक्षिणा दें और जो चीज व्रत के आरंभ में छोड़ने का नियम किया था, वह ब्राह्मणों को दें। रात्रि में भोजन करने वाला मनुष्य ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा स्वर्ण सहित बैलों का दान करे। जो मनुष्य मांसाहारी नहीं है वह गौदान करे। आँवले से स्नान करने वाले मनुष्य को दही और शहद का दान करना चाहिए। जो फलों को त्यागे वह फलदान करे। तेल छोड़ने से घृत और घृत छोड़ने से दूध, अन्न छोड़ने से चावल का दान किया जाता है।