देवोत्थान एकादशी कल, इस मौके पर यह यज्ञ करने पर आप हो जाएंगे धन-धान्य से पूर्ण
भक्तों ने अपनी ओर से इस तरह की कर ली है तैयारी। पवित्र जलाशय में लगेंगे डुबकी। इस वर्ष तुलसी विवाह 26 को। एकादशी तिथि की शुरुआत 25 नवंबर सुबह पौने तीन बजे से हो जाएगी। एकादशी तिथि का समापन 26 नवंबर सुबह साढे पांच होगा।
मधुबनी, जेएनएन। देवोत्थान एकादशी की तैयारी पूरी कर ली गई है। 25 नवंबर बुधवार को देवोत्थान एकादशी पर जिलेभर के पवित्र तालाबों व जलाशयों में डुबकी लगाई जाएगी। इस एकादशी का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। इससे सूर्य यज्ञ करने जैसे फल की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस दिन से चार माह पूर्व देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और अन्य देवता क्षीर सागर में जाकर सो जाते हैं। इसी से इन चार माह में शादी-विवाह, मुडंन, नामकरण संस्कार जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। ये सभी कार्य देवोत्थान एकादशी से शुरू होते हैं।
कमला, बलान, सोनी नदी संगम संगम तट पर जुटते बड़ी संख्या में लोग
देवोत्थान एकादशी पर जिले के पिपराघाट के कमला, बलान एवं सोनी नदी के संगम तट पर बड़ी संख्या में लोग जुटते है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र संगम में डुबकी लगाते है। इस मौके पर यहां मेला का आयोजन भी होता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण कमला, बलान एवं सोनी नदी का त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने के लिए नेपाल से भी श्रद्धालु पहुंचते है। देवोत्थान एकादशी के लिए फल बाजार की चहल-पहल बढ़ गई है। देव एकादशी के दिन लोग दिन भर व्रत रखकर संध्याकाल में पूजा अर्चना के साथ प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस दिन अधिकांश घरों में धार्मिक माहौल बना रहता है।
तुलसी विवाह अनुष्ठान से कन्या दान फल की प्राप्ति
तुलसी विवाह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष तुलसी विवाह 26 नवंबर मनाई जाएगी। एकादशी तिथि की शुरुआत 25 नवंबर सुबह पौने तीन बजे से हो जाएगी। एकादशी तिथि का समापन 26 नवंबर सुबह साढे पांच होगा। द्वादशी तिथि का प्रारंभ 26 नवंबर सुबह सवा पांच बजे से शुरू होगी। आंगन में या गमले में तुलसी पौधे के चारों तरफ रेशमी कपड़े और केले के पत्तों से मंडप सजाएं जाते है। तुलसी को लाल रंग की चुनरी ओढ़ाकर भगवान शालिग्राम और गणेश भगवान की पूजा-अर्चना किया जाना चाहिए। पंडित पीताम्बर झा बताते है कि तुलसी विवाह के साथ ही मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते है। तुलसी विवाह से कन्या दान के बराबर फल की प्राप्ति होती है। वहीं, पंडित ऋषिनाथ झा कहते है कि कन्या सुख से वंचित लोगों को तुलसी विवाह अनुष्ठान निश्चित रूप से करना चाहिए। इससे कन्या दान के बराबर फल की प्राप्ति होती है।