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कांवर यात्रा की तैयारी में जुटे श्रद्धालु

सावन करीब आते ही लोगों ने कांवर यात्रा की तैयारी शुरू कर दी है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Jul 2018 08:00 AM (IST)Updated: Mon, 23 Jul 2018 08:00 AM (IST)
कांवर यात्रा की तैयारी में जुटे श्रद्धालु
कांवर यात्रा की तैयारी में जुटे श्रद्धालु

मुजफ्फरपुर। सावन करीब आते ही लोगों ने कांवर यात्रा की तैयारी शुरू कर दी है। सुल्तानगंज से देवघर और पहलेजा घाट से बाबा गरीबनाथ धाम की कांवर यात्रा को लेकर लोगों में काफी उत्साह है। लोगों ने पैदल व नंगे पैर चलने का अभ्यास भी शुरू कर दिया है। बाजार में गेरुए वस्त्र भी बिकने लगे हैं। कांवड़ों की सजावट व रंगरोगन का कार्य भी शुरू है। कई लोगों ने बाबा के जलाभिषेक के लिए देवघर जाना भी शुरू कर दिया है। प्रस्थान करने के पूर्व लोग बाबा गरीबनाथ की पूजा-अर्चना कर रहे है। बाबा गरीबनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी पं. विनय पाठक ने बताया कि शुक्रवार को भी कई लोग बाबा गरीबनाथ की पूजा कर देवघर के लिए रवाना हुए।

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परशुराम ने चढ़ाया था पहला कांवर

आचार्य पं.अभिनय पाठक बताते हैं कि शास्त्रों के मुताबिक, भगवान परशुराम ने अपने आराध्य देव शिव के नियमित पूजन के लिए शिव मंदिर बनवाया और कांवर में गंगाजल लाकर पूजन किया। तभी से कांवर यात्रा की शुरुआत हुई। इस कांवड़ यात्रा का धार्मिक के साथ वैज्ञानिक महत्व भी बताया गया है। व्यक्ति को इस लंबी यात्रा के दौरान आत्म निरीक्षण करने का मौका मिलता है। इस धार्मिक यात्रा की विशेषता यह भी है कि सभी कांवरिया केसरिया रंग के वस्त्र ही धारण करते हैं। यह रंग जीवन में ओज, साहस, आस्था और गतिशीलता बढ़ाता है। इस कांवर यात्रा में सभी लोग 'बोल बम' के उद्घोष से एक-दूसरे का मनोबल बढ़ाते हैं।

यात्रा के होते हैं कई रूप

ब्रह्मापुरा स्थित बाबा सर्वेश्वरनाथ मंदिर सह महामाया स्थान के महंत संजय ओझा बताते हैं कि कांवड़ यात्रा के कई रूप हैं। जिनमें झूला कांवड़, खड़ी कावर, डाक कावर व झांकियों वाला कांवर लोगों में काफी लोकप्रिय है। यात्रा के दौरान कांवरिया विश्राम या भोजन के समय कांवर को जमीन पर नहीं रखते। उसे पेड़ या किसी अन्य स्थान पर टांग दिया जाता है। खड़ी कांवड़ यात्रा में कांवड़ को कंधे पर ही रखा जाता है। यदि कांवरियों को विश्राम या भोजन करना हो तो उसे किसी अन्य शिव सेवक को रखने के लिए देना पड़ता है। खड़ी कांवड़ यात्रा बहुत कठिन होती है। डाक कांवड़ यात्रा में कांवरिया जल लेकर संकल्प लेने के बाद बिना कहीं रुके मंदिर पहुंचकर बाबा को जलाभिषेक करते हैं।

बाजार में रौनक नहीं, कारीगर मायूस

सावन शुरू होने में अब केवल सात दिन शेष रह गया है। मगर अन्य वर्षो की तरह इस साल कांवर की खरीदारी को बाजार में कोई खास रौनक नहीं दिख रही। जिसे लेकर कारीगर मायूस हैं। कांवर निर्माता सरैयागंज के जयप्रकाश महतो बताते हैं कि इस बार बाजार बिल्कुल नहीं है। दिन-प्रतिदिन कांवर का कारोबार घटता जा रहा है। पहले सावन शुरू होने के करीब एक महीना पूर्व से ही इसकी बिक्री शुरू हो जाती थी। वैसे लोगों की पसंद को देखते हुए कांवर बनाना शुरू कर दिया गया है। पत्तर के मंदिरनुमा कांवड़ से लेकर ट्रांसपेरेंट कांवर तक कई वेराइटी के कांवर तैयार किए जा रहे हैं।

कांवर दाम (रुपये में)

सामान्य कांवर 150-300

स्टील कांवर 4000-6000

पीतल कांवर 4000-6000

पत्तर का मंदिरनुमा कांवर 300-500

इलेक्ट्राूनिक कांवर 400-650

ट्रांसपेरेंट कांवर 500-800


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