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Samastipur: वैज्ञानिक ढंग से करें सिंघाड़े की खेती, जलजमाव वाले गड्ढे का भी होगा उपयोग, होगी बेहतर कमाई

जलजमाव वाले गड्ढे का भी होगा उपयोग जुलाई महीने में डंडे की सहायता से 0.7-1 मीटर की दूरी पर गड्ढे बनाकर पौधे की करें रोपनी बड़े पैमाने पर बेकार भूमि में वैज्ञानिक ढंग अपनाकर उसमें सिंघाड़े की खेती कर अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 19 Jun 2021 05:31 PM (IST)Updated: Sat, 19 Jun 2021 05:31 PM (IST)
Samastipur: वैज्ञानिक ढंग से करें सिंघाड़े की खेती, जलजमाव वाले गड्ढे का भी होगा उपयोग, होगी बेहतर कमाई
जलजमाव वाले गड्ढे में करें स‍िंघाडेे की खेती। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

समस्तीपुर, जासं।  बिहार की मिट्टी एवं जलवायु सिंघाड़े की खेती के लिए उपयुक्त है। सिंघाड़े की खेती तालाब, पोखर, एवं छोटे-छोटे गड्ढों में भी की जा सकती है। यदि वैज्ञानिक ढंग से इसकी खेती की जाए तो अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए उस स्थान का चयन करें जहां एक से 2 फीट पानी लगा हो। बड़े पैमाने पर बेकार भूमि में वैज्ञानिक ढंग अपनाकर उसमें सिंघाड़े की खेती कर अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। यह कहना है डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय अधीनस्थ दरभंगा केवीके के प्रधान विज्ञानी डॉ. दिव्यांशु शेखर का।

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काफी उपयोगी है सिंघारे का फल

सिंघारे के 100 ग्राम कच्चे फल में 70 प्रतिशत पानी, 10 फीसद कार्बोहाइड्रेट, 4.70 प्रतिशत प्रोटीन, के अलावे वसा, रेशा एवं खनिज लवण पाए जाते हैं। सिंघाड़े में पोषक तत्वों के अतिरिक्त कई सारे औषधीय गुण भी विद्यमान होते हैं। इस कारण यह शरीर के लिए काफी उपयोगी है।

जलवायु एवं भूमि का चयन

इसकी खेती के लिए खेत में एक से दो फीट पानी की आवश्यकता होती है। खेत की मिट्टी दोमट या बलूई दोमट जिसका पीएच 57.5 व खेत में जीवांश की मात्रा अच्छी एवं जल स्थिर रहती हो। इस प्रकार इस की खेती छोटे-छोटे गड्ढों में भी की जा सकती है।

इन किस्मों का करें प्रयोग

अगात किस्में : हरा गढुआ, लाल गढ़ुआ, कटीला लाल, चिकनी गुलरी 120 से 130 दिनों में तैयार होती है। विलंब से होने वाली किस्म में करिया हरीरा, गुलरा हरीरा, गाचा किस्म 150 से 160 दिन में तैयार होती है। वहीं आईसीएआर द्वारा वीआर डब्लू एल, एवं बीआरडब्ल्यू सी-3 किस्म शामिल हैं।

ऐसे करें नर्सरी की तैयारी

नर्सरी तैयार करने के लिए फसल की दूसरी तोराई से प्राप्त फलों को बीज एकत्र करके उन्हें जनवरी-फरवरी माह तक पानी में डूबोकर रखा जाता है। अंकुरण से पहले फरवरी के दूसरे सप्ताह में इन फलों को सुरक्षित स्थान में तालाब या टेंट में डाल दिया जाता है। सिंघाड़े की रोपाई पूर्व प्रति हेक्टेयर 8 से 10 टन सड़े गोबर की खाद जलजमाव वाले क्षेत्र में छिड़क दें तथा नेत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश की 40:60:40: प्रति हेक्टेयर की दर से व्यवहार करें। इसके लिए 300 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट 60 किलोग्राम, पोटाश तथा 20 किलोग्राम यूरिया का व्यवहार करें। जल स्रोत में एक तिहाई नेत्रजन पूरा फास्फोरस व पोटाश की मात्रा रोपाई के समय दी जाती है। तथा शेष नत्रजन की मात्रा को दो भागों में बांटकर एक माह के अंतराल पर दे दे। जून जुलाई माह में जब पानी हो तो डंडे की सहायता से 0.7-1 मीटर की दूरी पर गड्ढे बनाकर पौधे की रोपनी करें। इस प्रकार 1 हेक्टेयर में 600 से 700 पौधों की आवश्यकता पड़ती है।

तोरई का समय

अक्टूबर माह से तोरई प्रारंभ करें। अच्छी फसल में 10 दिनों के अंतराल पर लगभग 10 तोरई की जा सकती है। इस प्रकार 1 हेक्टेयर में लगभग 10 से 15 टन सिंघाड़े की उपज प्राप्त की जा सकती है।


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