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Lockdown Effect: सीमित संसाधन, दावेदार हुए कई तो दिलों में बढ़ने लगीं दरारें

लॉकडाउन के कारण सब अपने अपने गांव लौटे हैं। छोटे से एक घर में पूरा परिवार रह रहा है। जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े पर कई दावेदार हो गए। पंच सरपंच से आगे थाना तक विवाद पहुंचने लगे हैं।

By Murari KumarEdited By: Published: Thu, 28 May 2020 10:52 PM (IST)Updated: Thu, 28 May 2020 10:52 PM (IST)
Lockdown Effect: सीमित संसाधन, दावेदार हुए कई तो दिलों में बढ़ने लगीं दरारें

समस्तीपुर (शाहपुर पटोरी), दीपक प्रकाश। गांव में सोंधी मिट्टी की खुशबू। आंगन में पूरा परिवार और घर की बनी रोटियां। इन्हीं खयालों ने प्रदेश के बेदर्द शहरों को अलविदा कह प्रवासियों को गांव लौट आया था। इन्हें आए पखवारे भी नहीं बीते कि आपसी दरारे बढ़ने लगीं। खून के रिश्ते दिलों के अंदर की दीवारें खींचने लगे हैं। छोटे से एक घर में पूरा परिवार रह रहा है। जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े पर कई दावेदार हो गए। पंच सरपंच से आगे थाना तक विवाद पहुंचने लगे हैं। 

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पटोरी अनुमंडल के 3 प्रखंडों में लगभग 18 हजार प्रवासी आए। लॉक डाउन में काम धंधा बंद हो गया। कोरोना संक्रमण ने मौत का भय उत्पन्न कर दिया। चैन और सुकून के लिए बिना साधन के ही घर के लिए रवाना हो गए। पैदल, साइकिल, ट्रेन, बस जैसे हुआ घर आ गए, किंतु घर पर भी चैन नहीं। दो कमरों के छोटे से घर में चार चार भाई तक रह रहे। उनके बाल बच्चे भी उसी घर में रहते हैं। गर्मी में तो किसी तरह बाहर सो लेते, किंतु आंधी पानी में ईश्वर मालिक। रेन बसेरा बनाने के लिए भाई और पाटीदारों में भी संघर्ष का माहौल बन गया है। 

ग्राम पंचायतों से थाने तक पहुंचने लगे मामले

हाल के दिनों में कुछ मामले तो ग्राम पंचायत स्तर पर सुलझा लिए जाते हैं। लेकिन शिकायतें अब पटोरी थाना तथा कोर्ट तक भी पहुंचने लगी है। शाहपुर उंडी पंचायत के मुखिया मोहन ठाकुर बताते हैं कि पंचायत में कई ऐसे लोग हैं जिनके पास रहने की भूमि नहीं है। छोटे से घर में कई भाई रहते हैं। अक्सर उन में अनबन होती रहती। तारा धमौन के मुखिया प्रवीण राय बताते हैं कि आपसी विवादों को तो स्थानीय स्तर पर सुझाव दिया जाता, किंतु मामला गंभीर होने पर थाने तक पहुंचता है। 

एक दर्जन मामले आ चुके सामने

थानाध्यक्ष मुकेश कुमार बताते हैं कि अनुमंडल क्षेत्र में भूमि विवाद और घरेलू कलह में मारपीट से संबंधित एक दर्जन मामले आ चुके हैं। अस्पताल में भी घायल पहुंच रहे। इनसे संबंधित मामलों को आपसी सहमति से सुलझाने का प्रयास किया जा रहा। लोगों में आम सहमति बने और मामला सुलझ जाए इससे बेहतर और क्या हो सकता। गरीब लोग थाना और कोर्ट कचहरी के चक्कर में आएंगे तो उनका समय और पैसा दोनों बर्बाद होगा। फिलहाल कोर्ट में काम सीमित होने के कारण ऐसे मामले तो कम आए हैं, लेकिन अधिवक्ताओं के यहां लोगों की संख्या बढ़ने लगी है। 

रोजगार नहीं मजदूरी भी कम

आज देश के विकास में मजदूरों का सर्वाधिक योगदान माना जा रहा है किंतु इसके लिए सरकार की योजनाएं इतनी प्रभावशाली नहीं है। ऐसे कई प्रदेश हैं जिनके द्वारा ऐसे मजदूरों को आकर्षक मजदूरी मिलती है। जीना कुशल मजदूरों को बिहार में 193 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से दिए जाते हैं। वहीं हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में 300  रुपये से अधिक की राशि प्रतिदिन दी जाती है। वहां अधिक कुशल मजदूरों को 429  रुपये भी दिए जाते हैं। 506 सदस्यों वाले परिवार के मनरेगा मजदूर बिहार में ऐसी स्थिति में अपना भरण-पोषण कैसे कर पाएंगे यह बड़ी समस्या है।


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