तेजस्वी यादव ने रमई राम से क्यों कर लिया किनारा, इन 05 बिंदुओं में समझें
Bihar assembly by-election 2022 बोचहां विधानसभा उपचुनाव को लेकर सोमवार को पूरे दिन हाइवोल्टेज ड्रामा देखने को मिला। दिन के अंत में जाे तस्वीर सामने आई उसके बाद एक सवाल रह गया आखिर तेजस्वी यादव ने रमई राम से किनारा क्यों कर लिया?
मुजफ्फरपुर [अमरेंद्र तिवारी]। यूं तो बिहार में केवल एक विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव होना है, लेकिन यहां राजनीति के सभी रंग देखने को मिल रहे हैं। शुरू में जो दृश्य एनडीए के अंदर दिख रहे थे कुछ वैसा ही नजारा प्रमुख विरोधी दल राजद के अंदर भी सोमवार को देखने को मिला। टिकट के लिए प्रमुख दावेदार मानी जा रहीं रमई राम की बेटी डा. गीता को दिन के अंत में पार्टी छोड़कर मुकेश सहनी की पार्टी वीआइपी के पास जाना पड़ गया। धोखा देने और गरीबों व दलितों के अपमान की बात यहां भी देखने को मिली। इन तमाम घटनाक्रमों के बीच एक महत्वपूर्ण सवाल पर बात नहीं हो सकी। आखिर तेजस्वी यादव ने ऐसा क्यों किया? यदि इसमें रमई राम और उनकी पुत्री के दावों को भी शामिल कर लें तो राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव व पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आश्वासन के बावजूद उनको धोखा दिया गया। विश्वासघात किया गया। आइये इन पांच बिंदुओं में इसको समझते हैं-
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1. जैसी चर्चा थी अौर अंत में जो तस्वीर सामने आई उसके हिसाब से पूर्व मंत्री रमई राम इस बार खुद चुनाव मैदान में नहीं उतरना चाह रहे थे। वे अपनी जगह बेटी के लिए टिकट की मांग कर रहे थे। कहा जा रहा है कि इस बात से राजद नेता और विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव खुश नहीं थे। वे एक मजबूत उम्मीदवार को ही चुनाव मैदान में उतारना चाह रहे थे। ऐसा उम्मीदवार जिसकी अपनी पकड़ हो। जनाधार हो। यह बात डा.गीता के खिलाफ चली गई।
2. रमई राम के प्रदर्शन को भी एक महत्वपूर्ण कारण के रूप में देखा जा रहा है। पिछले दो चुनाव के आंकड़ों काे देखा जाए तो वे पार्टी की अपेक्षा के अनुसार प्रदर्शन नहीं कर पाए। 2015 में महागठबंधन की आंधी में भी वे अपनी सीट नहीं बचा सके थे। निर्दल बेबी कुमारी के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। आंकड़ों की बात करें तो बेबी कुमारी को 67 हजार 720 मत मिले थे। वहीं जदयू प्रत्याशी के रूप में रमई राम केवल 43 हजार 590 मत ही हासिल कर सके थे।
3. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की बात करें तो रमई राम को मुसाफिर पासवान के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। एक नजर आंकड़े पर डालते हैं। विजयी प्रत्याशी मुसाफिर पासवान को 77 हजार 837 मत मिले थे। जबकि रमई राम 66 हजार 569 मत प्राप्त कर सके थे।
4.सहानुभूति वोट पाने की होड़। यदि चुनाव की परंपरा को देखा जाए तो सीटिंग विधायक के निधन के बाद उनके स्वजन को ही चुनाव मैदान में इसलिए उतारा जाता है क्योंकि सहानुभूति वोट उसके साथ होता है। तेजस्वी यादव की आक्रामक राजनीतिक शैली के अनुसार वे इस सीट को किसी भी कीमत पर हासिल करना चाह रहे हैं। अमर पासवान को अपने पाले में लाने के बाद तेजस्वी को भरोसा है कि वे राजद के आधार वोट बैंक तथा सहानुभूति वोट के सहारे अपने प्रत्याशी को जीत दिलाने में सफल हो जाएंगे।
5. राजद ने औपचारिक रूप से मार्गदर्शक मंडल का गठन तो नहीं कर रखा है, लेकिन तेजस्वी यादव ब्रांड आफ पालीटिक्स युवाओं को आगे लाने की वकालत करता है। उन्हें अधिक से अधिक मौके उपलब्ध कराने की बात करता है जिससे लंबी अवधि के लिए पार्टी को मजबूत किया जा सके। यह फैक्टर भी रमई राम के खिलाफ चला गया।