Bihar Chunav: 'बारूद बदन बन जाए, इश्क बने...' चुनाव प्रचार के दौरान रील में मौके के अनुसार सेट हो रहे गाने
मुजफ्फरपुर में चुनावी प्रचार का तरीका बदल गया है। अब देशभक्ति गानों की जगह फिल्मी गाने और रील्स ने ले ली है। प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने और विरोधियों को संदेश देने के लिए इन गानों का इस्तेमाल कर रहे हैं। स्टूडियो संचालक दीप कुमार चौधरी बताते हैं कि आजकल सामयिक और थीम आधारित गानों का प्रचलन है, जो हाईटेक प्रचार का हिस्सा बन गए हैं।
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प्रचार का बदल गया अंदाज। (जागरण फोटो)
अजय पांडेय, मुजफ्फरपुर। बारूद बदन बन जाए, इश्क बने चिंगारी...है हिंद का एक बेटा सब पर भारी! रुके न तू, थके न तू, झुके न तू... ये बदले दौर का चुनाव है।
प्रत्याशियों के समर्थन में कुछ ऐसे ही गाने बज रहे हैं। चाहे वो मोबाइल पर हो या उनके समर्थन में बने रील में। फिल्मी गीतों का बोलबाला है। गीत-संगीत का वह ट्रैक बदल चुका, जब प्रचार वाहनों के साथ देशभक्ति तराने बजते थे।
स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के बाद के दिनों में ‘है प्रीत जहां की रीत सदा, कर चले हम फिदा, मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरे देश की धरती सोना उगले, ऐ मेरे वतन के लोगों... जैसे गीत चुनावी दौर का अनुभव कराते थे।
नेताओं की चुनावी सभा से पहले भी लाउडस्पीकर पर ऐसे ही गीत बजते थे, लेकिन अब मोबाइल पर चेहरा चमक रहा, नेताजी की विविध गतिविधियों के साथ रील में जोश भरते गाने बज रहे हैं। इनके माध्यम से न सिर्फ मतदाताओं पर प्रभाव डालने की कोशिश हो रही, बल्कि प्रतिद्वंद्वियों को भी संदेश दिया जा रहा।
गानों से भर रहे कार्यकर्ताओं में उत्साह
गीतों में कहीं कैलाश खेर की सूफियाना आवाज है तो कहीं सुखविंदर सिंह का हाई टोन कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम कर रही है। जुबिन नौटियाल की मेलोडी वायस भी लुभा रही। प्रत्याशियों के रील में मौके के अनुसार गाने सेट किए जा रहे हैं।
सामयिक व थीम आधारित गानों की मांग मुजफ्फरपुर के स्टूडियो और साउंड मिक्सिंग लैब संचालक दीप कुमार चौधरी बताते हैं कि आप जिस तरह पूजा-त्योहार में गीत-व्यवहार करते हैं, ठीक उसी तरह चुनाव में पार्टियां देशभक्ति गीतों का उपयोग करती रही हैं।
ये ऐसे गीत होते हैं कि लोग सुनकर आकर्षित-भावुक होते हैं, लेकिन समय और अनुभव ने इसे बदला है। हाईटेक युग में प्रचार हो रहा। आधा से अधिक तो रील और शार्ट वीडियो से हो रहा, ऐसे में बैकग्राउंड म्यूजिक के लिए उन्हीं गानों का उपयोग हो रहा, जो सामयिक और थीम बेस्ड हो।
अभी आपने छठ का दौर देख लिया, कोपी-कोपी बोलेली छठी मईया के साउंड ट्रैक पर ‘उठी-उठी मतदाता मालिक, चुनाव के बिगुल बजल हे..,अपना भइया के विधायक बनाव हे...या इन जैसे कई गीत बजते रहे। पहले के चुनावों में आपने महंगाई डायन...भी बजते सुना होगा, लेकिन अब वो बात भी नहीं रही।

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