बापू की हत्या हो या इमरजेंसी, जेपी का आंदोलन हो या संजय गांधी की मौत...चाहिए संपूर्ण जानकारी तो आइये श्री दुर्गा पुस्तकालय
मड़वन के बड़कागांव निवासी के एक-एक दिन के अखबार को संजोने के शगल ने तैयार की जानकारी की विरासत। करीब 70 वर्ष की घटनाओं का है संग्रह।
मुजफ्फरपुर, प्रेम शंकर मिश्रा। आजादी के बाद देश की सबसे बड़ी घटना हुई थी 30 जनवरी 1948 को। बापू की हत्या। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या, संजय गांधी की विमान हादसे में मौत या पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी। इन सभी घटनाओं को तब अखबारों में किस तरह प्रकाशित किया गया था, यह देखना हो तो मड़वन प्रखंड के बड़कागांव स्थित श्री दुर्गा पुस्तकालय में आ जाइए। गांव के जयप्रकाश का एक-एक अखबारों को सहेजकर रखने के शगल ने नई पीढ़ी के लिए विरासत रख छोड़ा है।
अखबार देखने की सुविधा निश्शुल्क
करीब आठ दशक की प्रमुख घटनाओं के दिन के अखबार यहां आपको मिल जाएंगे। जयप्रकाश के निधन के बाद यह काम उनके पुत्र विश्वपाल राय कर रहे। मगर, अब इसे बचा पाने की चुनौती है। क्योंकि दीमक लगने से ये नष्ट हो रहे हैं। इसे संजोने में यह परिवार लगा है। लोगों को अखबार देखने की सुविधा निश्शुल्क है। इस कारण इसे सहेज पाना मुश्किल हो रहा। इस बीच इस पुस्तकालय के सुंदरीकरण व विस्तार के लिए कला, संस्कृति एवं युवा विभाग से मदद की तैयारी शुरू की गई है। करीब 22 लाख का प्राक्कलन तैयार किया गया है। अगर सरकार की ओर से मदद की जाती है तो इस विरासत को बचा पाना संभव होगा।
इनसाइक्लोपीडिया के रूप में हो सकता इस्तेमाल
प्रमुख घटनाओं के बारे में कभी-कभी अलग-अलग जानकारियां मिलती रहती हैं। सही जानकारी के लिए या रिसर्च के लिए लोग तब के प्रमुख अखबारों, लिखी गईं पुस्तकों या इनसाइक्लोपीडिया का सहारा लेते हैं। बड़कागांव के एक छोटे से मकान में हजारों की संख्या में रखे ये अखबार निश्चित रूप से इनसाइक्लोपीडिया के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। बापू या इंदिया गांधी की हत्या की घटना की खबर के एक-एक बिंदु का विवरण यहां एक साथ कई अखबारों में मिल जाता है। जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दिए जाने की खबर के साथ तब के अखबार में कई जानकारियां हैं, जो सभी जगह उपलब्ध नहीं। कैसे फांसी दिए जाने के आठ घंटे बाद ही उनके शव को दफना दिया गया। किस जेल में फांसी दी गई। किस तरह सूचना को गोपनीय रखा। ये जानकारियां रोमांचित भी करती हैं। प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र-छात्राओं के लिए यह काफी उपयोगी होता है। उन्हें प्रमुख घटनाओं की जानकारी इन अखबारों से मिल जाती है। यही कारण है कि दूसरे राज्यों से भी लोग यहां आकर प्रमुख घटनाओं का विवरण एकत्र करते हैं।
छात्र आंदोलन से लेकर कई सत्ता परिवर्तन की गाथा
देश में लगी इमरजेंसी व उसके बाद जेपी के छात्र आंदोलन की जीवंत गाथा यहां के अखबारों में पढ़ी जा सकती है। बिहार व देश में प्रमुख सत्ता परिवर्तन से लेकर राष्ट्रपति के कई चुनाव की जानकारियां यहां रखे अखबारों से मिल जाएंगी। किस मुख्यमंत्री के सत्ता काल में कौन-कौन मंत्री बने ,यह विवरण हर जगह उपलब्ध नहीं हो पाता। मगर, यहां उपलब्ध हो जाता है।
क्रांतिकारी दुर्गा भाभी के नाम से पुस्तकालय
वर्तमान में पुस्तकालय की देखभाल करते रहे जयप्रकाश के पुत्र विश्वपाल राय बताते हैं कि आजादी की लड़ाई में गांव के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। यहां अंग्रेजों का अत्याचार काफी बढ़ गया था। यहां के करीब 28 लोगों को कालापानी की सजा हुई थी। स्वतंत्रता आंदोलन की मुहिम तेज करने के लिए यूपी के भगवतीचरण वोहरा की पत्नी क्रांतिकारी दुर्गा भाभी यहां आई थीं। बताया जाता है कि भगत सिंह व अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने ही उन्हें दुर्गा भाभी नाम दिया था। उनके नाम की प्रेरणा से ही अखबारों के संग्रह को 'श्री दुर्गा पुस्तकालय' नाम दिया गया है। इस विरासत को बचाने की पहल पूर्व डीएम मो. सोहैल ने शुरू की। मगर, अब तक इसे मूर्त रूप नहीं दिया जा सका है। 22 लाख 17 हजार रुपये की योजना का प्राक्कलन तैयार किया गया है। इसमें पुस्तकालय भवन की मरम्मत व चहारदीवारी का निर्माण किया जाना है। मगर, इसपर काम शुरू नहीं हो सका है।