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खून की कमी छीन रही बच्चों की खुशी

चेहरे पर मुस्कान शरीर में स्फूर्ति एवं बिना थके भाग-दौड़ करना बाल्यावस्था की पहचान होती है। लेकिन इसके विपरीत यदि बच्चे का शारीरिक विकास उम्र के मुताबिक नहीं हुआ हो। बच्चे के चेहरे से मुस्कान गायब हो रही हो।

By JagranEdited By: Published: Thu, 26 Dec 2019 02:18 AM (IST)Updated: Thu, 26 Dec 2019 06:14 AM (IST)
खून की कमी छीन रही बच्चों की खुशी
खून की कमी छीन रही बच्चों की खुशी

मुजफ्फरपुर। चेहरे पर मुस्कान, शरीर में स्फूर्ति एवं बिना थके भाग-दौड़ करना बाल्यावस्था की पहचान होती है। लेकिन इसके विपरीत यदि बच्चे का शारीरिक विकास उम्र के मुताबिक नहीं हुआ हो। बच्चे के चेहरे से मुस्कान गायब हो रही हो। वह अन्य बच्चों की तरह खेलकूद में शरीक नहीं हो रहा हो। वह हमेशा सुस्त एवं बीमार रहता हो। पढ़ाई में अपना ध्यान नहीं लगा पा रहा हो। बच्चे की स्मरण शक्ति बेहद कम हो रही हो। स्कूल में वह अन्य बच्चों की तुलना में पिछड़ रहा हो। ऐसी स्थिति में आपको सतर्क होने की जरूरत है। ये लक्षण बच्चे में खून की कमी से है। लेकिन आपको घबराने की जरुरत नहीं है। आपके नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र या समुदाय में इसका उपचार उपलब्ध है। सरकार ने एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के तहत 6 माह से 59 माह तक के बच्चों को एनीमिया( खून की कमी) से बचाने की पहल की है। इसके लिए इस उम्र के बच्चों को सप्ताह में दो बार आयरन सिरप की खुराक निशुल्क दी जा रही है। यह कहना है एनीमिया मुक्त भारत के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. बीके मिश्रा का। उन्होंने कहा कि बच्चे में 6 माह तक लौह-तत्व (हीमोग्लोबिन) का प्राकृतिक रूप से संग्रहण रहता है। लेकिन इसके बाद बच्चे को लौह-तत्व की जरूरत होती है। शरीर में मौजूद हीमोग्लोबिन ही बाहर से ऑक्सीजन अवशोषित कर शरीर के हरेक हिस्से में ऑक्सीजन को भेजने में सहयोग करता है। शरीर में ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा से ही बच्चे का सही शारीरिक एवं मानसिक विकास संभव हो पाता है। हीमोग्लोबिन के अभाव में बच्चा शारीरिक तौर पर कमजोर तो होता है, उसका मानसिक एवं बौद्धिक विकास भी अवरुद्ध हो जाता है।

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प्रतिमाह 8 से 10 ख़ुराक : डॉ. मिश्रा के अनुसार, एक मिलीलीटर यानी 8-10 ख़ुराक प्रति माह बच्चे को देना होता है। सभी आशा को स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से सिरप की 50 मिलीलीटर की बोतलें आवश्यक मात्रा में दी जाती है। प्रथम दो सप्ताह में आशा स्वयं बच्चों को दवा पिलाकर मां को सिखाने का प्रयास करती हैं। प्रथम दो सप्ताह के बाद का खुराक मां द्वारा स्वयं पिलाने तथा अनुपूरण कार्ड में निशान लगाने के विषय में इस कार्यक्रम के दिशा-निर्देश में बल दिया गया है।

इसलिए जरूरी है बच्चों में एनीमिया की रोकथाम : राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक देश के साथ बिहार में भी एनीमिक बच्चों में कमी आई है। लेकिन अभी स्थिति चिंताजनक है। वर्ष 2005-06 में बिहार में 6 माह से 59 माह तक के 78 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी थी, जो वर्ष 2015-16 में घटकर 63.5 प्रतिशत हो गई। जबकि वर्ष 2005-06 में देश में 6 माह से 59 माह तक के 69.4 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी थी, जो वर्ष 2015-16 में घटकर 58.6 प्रतिशत हो गई। लेकिन अभी भी राज्य में 60 प्रतिशत से अधिक बच्चे खून की कमी से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से जूझ रहे हैं।


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