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सात साल बाद आखिरकार धुला गीता की मांग का सिंदूर, जानिए पूरा मामला

पुलिस की मौजूदगी में कई स्थानों में खुदाई की गई लेकिन शव नहीं मिला। इस दौरान ग्रामीण उग्र हो गए और पुलिस टीम पर पत्थरबाजी की गई। इस क्रम में पुलिस फायरिंग के दौरान छह लोगों की मौत हो गई।

By Ajit KumarEdited By: Published: Tue, 06 Oct 2020 06:09 PM (IST)Updated: Tue, 06 Oct 2020 06:09 PM (IST)
सात साल बाद आखिरकार धुला गीता की मांग का सिंदूर, जानिए पूरा मामला
चिता सुलगी तो पुराने जख्म हरे हो गए और रामनारायण फूट-फूट कर रोने लगे।

पश्चिम चंपारण, जेएनएन। आखिरकार सात साल के बाद गीता ने यह मान ही लिया कि उसका पति चंदेश्वर महतो अब इस दुनिया में नहीं है। 9 जून 2013 को शादी के महज एक हफ्ते बाद आखिरी बार चंदेश्वर रविकेश नामक युवक के साथ देखा गया था। उसके बाद से वह गायब हो गया। स्वजनों ने खोजबीन के बाद जब पुलिस की शरण ली तो नौरंगिया व वाल्मीकिनगर थाने की पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने से कतराती रही। क्षेत्र का हवाला देकर दोनों थानों की पुलिस एक दूसरे पर जवाबदेही थोपने की कोशिश में थी। हालांकि इसका परिणाम इतना भयावह होगा, तब किसी ने नहीं सोचा था। खैर, सोमवार को नौरंगिया से सटे धोबहां घाट पुल के समीप चंदेश्वर के पुतले का अंंतिम संस्कार कर दिया गया।

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हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार चंदेश्वर का श्राद्धकर्म

इस मौके पर ग्रामीणों के भारी हुजूम के बीच चंदेश्वर के पिता रामनारायण काजी ने मुखाग्नि दी। चिता सुलगी तो पुराने जख्म हरे हो गए और रामनारायण फूट-फूट कर रोने लगे। बताया कि आज से ठीक 16 दिन बाद 20 अक्टूबर को हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार चंदेश्वर का श्राद्धकर्म होगा। उल्लेखनीय है कि चंदेश्वर के गायब होने के बाद जब पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की तो 14 जून की सुबह ग्रामीण नौरंगिया पुलिस के पास गए। इस क्रम में यह दावा किया गया कि मनोर नदी के भूतनी पुल के पास चंदेश्वर का शव गाड़े जाने की जानकारी रविकेश ने दी है। इस आधार पर बड़ी संख्या में महिला-पुरुष जमा हो गए। पुलिस की मौजूदगी में कई स्थानों में खुदाई की गई, लेकिन शव नहीं मिला। इस दौरान ग्रामीण उग्र हो गए और पुलिस टीम पर पत्थरबाजी की गई। इस क्रम में पुलिस फायरिंग के दौरान छह लोगों की मौत हो गई।

चंदेश्वर के साथ गीता के अरमानों का भी अंतिम संस्कार

जून के पहले हफ्ते में चंदेश्वर के साथ सात फेरे लेकर गीता उसके घर आई। तब उसके अरमानों को पंख लग गए थे। लेकिन, 9 जून 2013 की रात पड़ोस के देवताहां गांव में चल रहे अष्टयाम में साउंड सिस्टम लेकर गया चंदेश्वर फिर कभी लौटकर नहीं आया। हालांकि गीता का विश्वास अटल था कि उसका सुहाग ङ्क्षजदा है और वह एक न एक दिन लौटकर जरूर आएगा। नौरंगिया गोलीकांड ने चंदेश्वर के साथ-साथ आधा दर्जन अन्य परिवारों को ऐसे गहरे जख्म दिए जिसे वे आजीवन भूल नहीं सकेंगे। बीते सात वर्षों से गीता प्रतिदिन मांग में ङ्क्षसदूर सजाकर चंदेश्वर की राह ताक रही थी। लेकिन, सोमवार को चंदेश्वर के पुतले के अंत्येष्टि के साथ गीता के अरमानों का भी अंतिम संस्कार हो गया।  


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