चंद्रधारी संग्रहालय में तंत्र पेंटिंग्स का अद्भुत संग्रह
करीब डेढ़ सौ वर्ष पुरानी दर्जनों पेंटिंग्स का किया गया संरक्षण। तंत्र साधना करते व शरीर पर उसके प्रभाव को उकेरा गया है।
दरभंगा [विभाष झा]। मिथिलांचल आदिकाल से तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां राजघराने से लेकर सामान्य परिवारों में भी बड़े-बड़े तंत्र साधक होते रहे हैं। इनके साक्ष्य चंद्रधारी संग्रहालय में मौजूद हैं। तंत्र साधना का एक से बढ़कर एक नमूना यहां देखने को मिलता है। संग्रहालय में करीब डेढ़ सौ वर्ष पुरानी तंत्र पेंटिंग्स का अद्भुत कलेक्शन इसकी गवाही दे रहा है। इन्हें देखकर कहा जा सकता है कि साधना के साथ-साथ इस विद्या को कागज पर भी उकेरने का काम हुआ।
मिथिला को प्राचीनकाल से ही तंत्र भूमि के नाम से जाना जाता था। कालांतर में तंत्र साधना का यह केंद्र कम होता गया। तांत्रिक दरभंगा के बजाय पश्चिम बंगाल के तारापीठ एवं असम के कामाख्या मंदिर का रूख करने लगे। हालांकि अभी भी मिथिलांचल के कुछ हिस्सों में तांत्रिक सिद्धि करते नजर आते हैं। दरभंगा स्थित चंद्रधारी संग्रहालय में डेढ़ सौ वर्ष से अधिक पुरानी बहुत सी पेंटिंग्स मौजूद हैं, जिन्हें देखने के लिए तंत्र साधक पहुंचते हैं। यहां की ज्यादातर पेंटिंग्स पंडित लक्ष्मी नारायण झा की हैं। उनके पुत्र मित्रनाथ झा ने बताया कि पिता तंत्र विद्या के बहुत बड़े ज्ञाता थे। वे कागज पर तंत्र साधना करते और शरीर पर उसके प्रभावों को उकेरा करते थे। कई पेंटिंग्स रखरखाव के अभाव में नष्ट हो गईं। बाद में इनके संरक्षण की दिशा में काम कर कई को बचाया गया।
चंद्रधारी संग्रहालय के क्यूरेटर डॉ. सुधीर कुमार यादव कहते हैं कि जब उनकी यहां पेंटिंग्स हुई तो बहुत सी चीजें जर्जर अवस्था में मिलीं। इनमें तंत्र पेंटिंग्स भी हैं। इन्हें संरक्षित करने की दिशा में कार्य शुरू किया गया है।
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर प्रो. अजयनाथ झा कहते हैं, पश्चिम बंगाल, ओडिशा एवं असम के तंत्र विद्या के केंद्र के रूप में दरभंगा रहा है। यहां एक से बढ़कर एक तांत्रिक साधना के लिए जुटते थे। मिथिलांचल के कई गांव तंत्र साधना के रूप में जाने जाते रहे हैं। इनमें मधुबनी जिले के पंडौल प्रखंड अंतर्गत सरिसहपाही व लखनौर आदि प्रसिद्ध रहे हैं। यहां आज भी लोग तंत्र साधना करते हैं।