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अब पहनिए अरहर के डंठल से बने आभूषण, जानें, समस्तीपुर के कृषि वैज्ञानिकों के कमाल

डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विवि पूसा के विज्ञानी फसल अवशेष का कर रहे इस्तेमाल। मोबाइल व कैलेंडर स्टैंड का भी हो रहा निर्माण 200 महिलाओं को दिया गया प्रशिक्षण। इसमें विश्वविद्यालय की छात्राओं समेत आसपास के ग्रामीण इलाकों की 100 महिलाएं काम कर रही हैं।

By Ajit KumarEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 09:44 AM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 09:44 AM (IST)
अब पहनिए अरहर के डंठल से बने आभूषण, जानें, समस्तीपुर के कृषि वैज्ञानिकों के कमाल
बिहार में तकरीबन 40 हजार हेक्टेयर में अरहर की खेती होती है। फोटो: जागरण

समस्तीपुर, [पूर्णेंदु कुमार]। अरहर के जिस डंठल को हम बेकार समझते हैं, उससे गृह उपयोगी वस्तुओं के अलावा फैंसी आभूषण बनाए जा रहे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के विज्ञानियों के प्रयास से नमूने के तौर पर कुछ उत्पादन हुआ है। इसमें विश्वविद्यालय की छात्राओं समेत आसपास के ग्रामीण इलाकों की 100 महिलाएं काम कर रही हैं। इसे व्यावसायिक रूप देने की तैयारी चल रही है।

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बिहार में तकरीबन 40 हजार हेक्टेयर में अरहर की खेती होती है। समस्तीपुर में इसका रकबा करीब 600 एकड़ है। फसल के बाद इसके डंठल का अधिकतर इस्तेमाल जलावन के रूप में होता है। विभिन्न तरह के फसल अवशेष के इस्तेमाल पर कार्य कर रहे कृषि विश्वविद्यालय ने इसका व्यावसायिक उपयोग करने की योजना बनाई। दो साल पहले इस पर काम शुरू हुआ। विज्ञानी डॉ. संगीता देव, अर्चना के प्रयास से मोबाइल स्टैंड, हैंगिंग लैंपशेड, टेबल कैलेंडर स्टैंड और फैंसी आभूषण (झुमका, टॉप्स, माला, ब्रेसलेट, हेयर क्लिप) आदि बन रहे हैं। सामान को विवि के काउंटर से बेचा जा रहा। एक लाख तक का कारोबार हुआ है।

इस तरह होता निर्माण : कृषि विवि परिसर में स्थित अभियंत्रण महाविद्यालय में इंजीनियर डॉ. एसके पटेल का कहना है कि डंठल की खरीद जिले के किसानों से 10 रुपये प्रति किलोग्राम की जाती है। उसका छिलका उतारने के बाद चाकू, रंदा व आरी सहित अन्य उपकरण से उत्पाद बनाए जाते हैं। निर्माण के बाद इसकी रंगाई की जाती है। आभूषणों को खूबसूरत बनाने के लिए उस पर मधुबनी पेंटिंग की जाती है। डॉ. पटेल का कहना है कि अरहर का डंठल स्पंजी और फाइबर युक्त होता है। इसके चलते इस तरह के सामान बनाने में आसानी होती है।

टूथब्रश का हैंडल और अगरबत्ती स्टिक बनाने की तैयारी : अब अरहर के डंठल से टूथब्रश का हैंडल और अगरबत्ती की स्टिक बनाने की तैयारी चल रही है। इसके लिए वुड लेथ मशीन की खरीद हुई है। बांस की तुलना में अरहर के डंठल से स्टिक तैयार करने में 25 से 30 फीसद कम लागत आएगी। बांस की स्टिक का वजन ज्यादा होता है और इसका हल्का। ब्रश का हैंडल व स्टिक तैयार करने वाली एक यूनिट लगाने में लगभग एक लाख खर्च आएगा।

ग्रामीण महिलाओं को दिया जा रहा प्रशिक्षण : विश्वविद्यालय का उद्देश्य ग्रामीण स्तर पर महिलाओं को प्रशिक्षित कर व्यावसायिक उत्पादन करने का है। इसके लिए करीब 200 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया है। सुधा देवी का कहना है कि वे इसके व्यावसायिक उत्पादन की तैयारी कर रही हैं। अन्य महिलाओं को जोडऩे का प्रयास कर रहीं ताकि उन्हें भी रोजगार मिल सके। मोबाइल स्टैंड व टेबल कैलेंडर स्टैंड 150-150 रुपये और फैंसी आभूषण 20 से लेकर 200 रुपये तक में उपलब्ध हैं।  


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