मुजफ्फरपुर की अब भी शक्ल शहर वाली और पहचान गांव वाली
वर्ष 2006 में सरकार को भेजा गया था निगम क्षेत्र के विस्तार का प्रस्ताव अब तक नहीं हुआ फैसला। पहली बार वर्ष 2002 में हुआ था निगम क्षेत्र का विस्तार। वर्ष 1970 एवं 2007 में आबादी बढऩे पर हुआ वार्डों की संख्या में बढ़ोतरी।
मुजफ्फरपुर, [प्रमोद कुमार]। नगर निगम के सीमावर्ती दर्जनों गांव जमीन पर शहर बन गए, लेकिन आज भी उनको इसका दर्जा नहीं मिल पाया है। शक्ल तो इनकी शहर की है, लेकिन पहचान गांव की ही बनी हुई है। वर्षों पूर्व शहरी इलाका तय हुआ था। आज इसका फैलाव दोगुणा हो गया है मगर नक्शा अब भी पुराना है। लोग शहरी सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं लेकिन निगम टैक्स के दायरे से बाहर हैं। नतीजतन नगर निगम को हर साल करोड़ों का नुकसान हो रहा है। भगवानपुर, बीबीगंज, जीरोमाइल, अखाड़ाघाट, बैरिया, शेरपुर, यादव नगर, शेखपुर, गोबरसही, रामदयालु, मझौलिया, अहियापुर, दामोदरपुर, दादर, चांदनी चौक, सर्वोदय नगर, समेत तीन दर्जन से अधिक मुहल्ले भले की कागज पर गांव कहलाते हो लेकिन हकीकत यह है कि अब वे शहरी स्वरूप ले चुके हैं।
डेढ़ दशक से लंबित निगम क्षेत्र के विस्तार का प्रस्ताव
सरकार ने राज्य के विभिन्न निकायों को अपग्रेड किया लेकिन मुजफ्फरपुर नगर निगम क्षेत्र के विस्तार के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी। जबकि यह प्रस्ताव सरकार के पास वर्ष 2006 से लंबित है। आजादी पूर्व नगरपालिका की स्थापना के समय शहरी क्षेत्र का निर्धारण हुआ था। उस समय शहर को कुल 12 वार्डों में बांटा गया था। वर्ष 1970 में आबादी बढऩे पर वार्डों की संख्या बढ़ाकर 32 कर दी गई। नया क्षेत्र नहीं जुड़ा। वर्ष 2002 में शहर का पहली बार विस्तार हुआ। कई नए इलाके जोड़े गए और वार्डों की संख्या भी बढ़कर 38 हो गई। वर्ष 2007 में एक बार फिर आबादी के हिसाब से हिसाब से वार्डों की संख्या बढ़कर 49 हो गई। मई 2006 में कांटी एवं मुूशहरी के 42 गांवों को निगम क्षेत्र में शामिल करने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया था। 14 साल के वनवास के बाद भी निगम क्षेत्र का विस्तार नहीं हुआ। इस बीच फाइल निगम एवं सरकार के बीच दौड़ लगाती रही।
नगर निगम को हो रहा नुकसान
इधर, शहरी स्वरूप ले चुके ग्रामीण क्षेत्र दोहरा लाभ उठा रहे हैं। इससे निगम को नुकसान उठाना पड़ रहा है। आबादी एवं क्षेत्र के आधार पर शहर को केंद्रीय योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। शहरी सुविधाओं का लाभ लेकर भी लोग निगम के टैक्स के दायरे से बाहर हैं। अप्रत्यक्ष रूप से निगम को उनकी सुविधा पर बड़ी राशि खर्च करनी पड़ रही है। महापौर सुरेश कुमार ने कहा कि शहरी स्वरूप ले चुके सीमावर्ती इलाकों को निगम में शामिल करने का प्रस्ताव डेढ़ दशक पहले सरकार को भेजा गया था। उसके बाद निगम दो-दो बार इस प्रस्ताव को पारित कर भेज चुका है। उम्मीद थी कि इस बार अन्य निकायों की तरह मुजफ्फरपुर निगम अपग्रेड होगा, लेकिन नहीं हुआ।